Gayatri Jayanti 2022 : मान्यता है कि माता गायत्री का प्राकट्य ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि को हुआ था। इस बार गात्री जयंती 11 जून 2022 शनिवा रको मनाई जा रही है। ऋग्वेद की शुरुआत गायत्री मंत्र से ही होती है। आओ जानते हैं कि गायत्री मंत्र, पूजा की विधि, मुहूर्त, स्तुति, कथा और रहस्य।
1. गायत्री मंत्र : 'ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
2. गायत्री प्रकटोत्सव तिथि : एकादशी तिथि: एकादशी तिथि10 जून 2022 को प्रातः काल 07:25 बजे से प्रारंभ होकर 11 जून 2022 को प्रातः काल 05:45 बजे समाप्त होगी। पंचांग भेद से इसके समय में थोड़ा बहुत अंतर रहेगा।
3. गायत्री जयंती का महत्व : गायत्री माता की पूजा और उनके मंत्र का जाप करने का बहुत ही ज्यादा महत्व माना गया है। यह जातक की सभी तरह की मनोकामना पूर्ण करती हैं। इनका पूजन और इनके मंत्र का जाप करने से वेदों के वेदों के अध्ययन करने के बराबर का पुण्य फल प्राप्त होता है।
4. गायत्री पूजा के शुभ महूर्त :
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:30 से 12:25 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:15 से 03:09 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:35 से 06:59 तक।
अमृत काल मुहूर्त : शाम 05:51 से 07:21 तक।
सायाह्न संध्या मुहूर्त : शाम 06:48 से 07:50 तक।
निशिथ मुहूर्त : रात्रि 11:37 से 12:18 तक।
5. गायत्री पूजा विधि :
1. प्रात: काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर माता गायत्री की मूर्ति या तस्वीर को पाट पीले वस्त्र बिछाकर विजराम करें।
2. गंगाजल छिड़कर स्थान को पवित्र करें और सभी देवी और देवताओं का अभिषेक करें।
3. इसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित करें और धूप बत्ती लगाएं।
4. अब माता की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करें। पंचोपचार यानी पांच तरह की पूजन सामग्री से पूजा करने और षोडशोपचार यानी 16 तरह की सामग्री से पूजा करने। इसमें गंध, पुष्प, हल्दी, कुंकू, माला, नैवेद्य आदि अर्पित करते हैं।
5. इसके बाद गायत्री मंत्र का 108 बार जप करें।
6 . पूजा जप के बाद माता की आरती उतारते हैं।
7. आरती के बाद प्रसाद का वितरण करें।
गायत्री रहस्य :
6. माता गायत्री को वेदमाता भी कहा जाता है। उनके हाथों में चारों वेद सुरक्षित हैं। वे वेदज्ञ है। मां गायत्री का वाहन श्वेत हंस है। इनके हाथों में वेद सुशोभित है। साथ ही दुसरे हाथ में कमण्डल है।
7. उन्हीं के नाम पर गायत्री मंत्र और गायत्री छंद की रचना हुई है। वे ही गायत्री मंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। यह मंत्र ऋग्वेद का प्रथम मंत्र होने के कारण इसे दुनिया का भी प्रथम मंत्र माना गया है।
8. गायत्री कथा के अनुसार माना जाता है कि ब्रह्माजी की 5 पत्नियां थीं- सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती। मान्यता है कि पुष्कर में यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थित में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था। यह गायत्री संभवत: उनकी पुत्री नहीं थी। इससे सावित्री ने रुष्ट होकर ब्रह्मा को जगत में नहीं पूजे जाने का शाप दे दिया था। हालांकि इसके बारे में भी पुराणों में स्पष्ट नहीं है।
9. गायत्री कथा के अनुसार गायत्री माता को आद्याशक्ति प्रकृति के पांच स्वरूपों में एक माना गया है। कहते हैं कि किसी समय में यह सविता की पुत्री के रूप में जन्मी थीं, इसलिए इनका नाम सावित्री भी पड़ा। कहीं-कहीं सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया था जिसके चलते इनका एक नाम ब्रह्माणी भी हुआ।
10. राजस्थान के अजमेर पुष्कर के निकट मणिबन्ध मणिदेविक गायत्री शक्तिपीठ है। पुष्कर में ही गायत्री माता का प्राचीन मंदिर भी है। उल्लेखनीय है कि हरिद्वार शांतिकुंज वाले गायत्री परिवार ने देश-दुनिया में गायत्री शक्तिपीठ स्थापित कर रखें हैं वहां पर आप गायत्री मंदिर में माता गायत्री के दर्शन कर सकते हैं।