आषाढ़ माह की देवशयनी के बाद से चार माह के लिए व्रत और साधना का समय प्रारंभ हो जाता है जिसे चातुर्मास कहते हैं। सावन, भादो, आश्विन और कार्तिक। इन चार माह में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं करते हैं। आओ जानते हैं इसके 10 कारण।
1. सो जाते हैं देव : चार माह के लिए देव यानी की श्रहरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसीलिए सभी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य बंद हो जाते हैं, क्योंकि हर मांगलिक और शुभ कार्य में श्रीहिर विष्णु सहित सभी देवताओं का आह्वान किया जाता है।
2. सूर्य और चंद्र का तेज हो जाता है कम : देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते। इसीलिए मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं।
3. पूजा, तप और साधना के चार माह : इस अवधि में यात्राएं रोककर संत समाज एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं, क्योंकि यह चार माह मांगलिक कार्यों के लिए नहीं बल्कि तप, साधना और पूजा के लिए होते हैं। इस माह में की गई पूजा, तप या साधना जल्द ही फलीभूत होती है।
4. भोजन में रखी जाती है सावधानी : मांगलिक कार्यों में हर तरह का भोजन बनता है लेकिन चातुर्मास में वर्षा ऋतु का समय रहता है। इस दौरान भोजन को सावधानी पूर्वक चयन करके खाना होता है अन्यथा किसी भी प्रकार का रोग हो सकता है। चारों माह में किसी तरह का भोजन करना चाहिए और किस तरह का नहीं यह बताया गया है। इसीलिए मांगलिक कार्य बंद कर दिए जाते हैं।
5. होती है मनोकामना पूर्ण : इन महीनों को कामना पूर्ति के महीनें भी कहा जाता है। इन माह में जो भी कामना की जाती है उसकी पूर्ति हो जाती है, क्योंकि इस माह में प्रकृति खुली होती है।
6. सेहत सुधारने के माह : यह चार सेहत सुधारकर आयु बढ़ाने के माह भी होती है। यदि आप किसी भी प्रकार के रोग से ग्रस्त हैं तो आपको इन चार माह में व्रत और चातुर्मास के नियमों का पालन करना चाहिए। इन चार माह में बाल, दाढ़ी और नाखून नहीं काटते हैं। इसीलिए इस माह में मांगलिक कार्यों को करने का कोई मतलब नहीं होता।
7. सूर्य हो जाता है दक्षिणायन : सूर्य जब से कर्म राशि में भ्रमण करने लगता है तो उसके बाद 6 माह वह दक्षिणायन रहता है। दक्षिणायन को पितरों का समय और उत्तरायण को देवताओं का समय माना जाता है। इसीलिए दक्षिणायन समय में किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
8. चार माह नहीं करते हैं ये कार्य : इन चार माह में विवाह, मुंडन, ग्रहप्रवेश, जातकर्म संस्कार आदि कार्य नहीं किए जाते क्योंकि चातुर्मास को नकारात्मक शक्तियों के सक्रिय रहने का मास भी कहा जाता है।
9. शिव के गण रहते हैं सक्रिय : चातुर्मास में श्रीहरि विष्णु चार माह के लिए पाताल लोक में राजा बलि के यहां शयन करने चले जाते हैं और उनकी जगह भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन करते हैं और तब इस दौरान शिवजी के गण भी सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में यह शिव पूजा, तप और साधना का होता है, मांगलिक कार्यों का नहीं।
10. ऋतुओं का प्रभाव : हिन्दू व्रत और त्योहार का संबंध मौसम से भी रहता है। अच्छे मौसम में मांगलिक कार्य और कठिन मौसम में व्रत रखें जाते हैं। चातुर्मास में वर्षा, शिशिर और शीत ऋतुओं का चक्र रहता है जो कि शीत प्रकोप पैदा करता है। इसीलिए सभी तरह के मांगलिक या शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।