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basoda 2022 : बसौड़ा पर्व, शीतला सप्तमी-अष्टमी का महत्व, पूजन विधि, मुहूर्त, मंत्र, आरती एवं कथा

basoda 2022 : बसौड़ा पर्व, शीतला सप्तमी-अष्टमी का महत्व, पूजन विधि, मुहूर्त, मंत्र, आरती एवं कथा - basoda 2022 date time shubh muhurt
इस वर्ष 25 मार्च को रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी तिथि पर शीतला माता का खास पर्व शीतला सप्तमी (basoda 2022 date) मनाया जाएगा। इस अवसर पर माताएं अपने पुत्र की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए यह व्रत करती है। 
 
Importance महत्व- मान्यतानुसार शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप है। अत: इस दिन माताएं शीतला माता का पूजन करके उन्हें ठंडा या बासी खाने का भोग लगाकर खुद भी ग्रहण करती है। अधिकतर घरों में इस दिन परिवार के सभी लोग माता शीतला की उपासना करते हुए बासी भोजन का सेवन करते हैं तथा इस दिन पूजन से पूर्व गैस अथवा चूल्हा न जलाने की परंपरा भी आज तक चली आ रही है।

इस दिन घर की महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए पूर्ण श्रद्धा एवं विश्‍वास के साथ माता का पूजन करके परिवार की सुख-समृद्धि तथा बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य को लेकर माता से प्रार्थना करती है। कई घरों में यह व्रत पुरुषों द्वारा भी किया जाने का रिवाज है, जिसे पुरुष भी शालीनता के साथ करते हैं।

मान्यतानुसार इस पर्व के दिन घरों में गरम भोजन नहीं बनाया जाता है, बल्कि उसी चढ़े हुए बासी भोग को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। शीतला सप्तमी की तरह ही अष्टमी के एक दिन पूर्व ही विभिन्न प्रकार के पकवान माता शीतला को भोग लगाने के लिए तैयार करके अष्टमी के दिन उन्हें इन्हीं बासी पकवान ही नैवेद्य के रूप में देवी शीतला माता को समर्पित किए जाते हैं।

व्रत पूजन विधि-Puja VIdhi
 
 
- शीतला सप्तमी-अष्टमी के दिन अलसुबह जलदी उठकर माता शीतला का ध्यान करें। 
 
- शीतला सप्तमी के दिन व्रती को प्रातःकालीन कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करना चाहिए।
 
- स्नान के पश्चात निम्न मंत्र से संकल्प लेना चाहिए-
'मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये'

 
- संकल्प के पश्चात विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें।
 
- सप्तमी के दिन महिलाएं मीठे चावल, हल्दी, चने की दाल और लोटे में पानी लेकर पूजा करती हैं। 
 
- पूजन का मंत्र- 'हृं श्रीं शीतलायै नम:' का निरंतर उच्चारण करें। 
 
- माता शीतला को जल अर्पित करें और उसकी कुछ बूंदे अपने ऊपर भी डालें। जो जल चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद जो जल बहता है, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। यह जल पवित्र होता है। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती है। 
 
- इसके पश्चात एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) खाद्य पदार्थों, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं। ज्ञात हो कि शीतला सप्तमी के व्रत के दिन घरों में ताजा भोजन नहीं बनता है। अत: भक्त इस दिन एक दिन पहले बने भोजन को ही खाते हैं और उसी को मां शीतला को अर्पित करते हैं।
 
- तत्पश्चात शीतला स्तोत्र का पाठ करें और कथा सुनें।
 
- कथा पढ़ने के बाद माता शीतला को भी मीठे चावलों का भोग लगाएं।
 
- रोगों को दूर करने वाली मां शीतला का वास वट वृक्ष में माना जाता है, अतः इस दिन वट पूजन भी भी करना चाहिए।
 
- कई स्थानों पर शीतला सप्तमी को लोग गुड़ और चावल का बने पकवान का भोग लगाते हैं। पूजा करने के बाद गुड़ और चावल का प्रसाद का वितरण भी किया जाता है। जिस घर में सप्तमी-अष्टमी तिथि को शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत का पालन किया जाता है, वहां घर में सुख, शांति बनी रहती है तथा रोगों से मुक्ति निजात भी मिलती है।
 
- इसी तरह चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भी देवी मां शीतला की पूजा करने का विधान है। 

- मंत्र: 'ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नम:'
 
- रोग दूर करने का मंत्र- 
'वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्‌, 
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्‌।'
 
- अर्थात् मैं गर्दभ पर विराजमान, दिगंबरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता/करती हूं। 

बसौड़ा पर्व के शुभ मुहूर्त-basoda 2022 date time shubh muhurt
शीतला सप्तमी- 24 मार्च 2022, गुरुवार।
शीतला सप्तमी का शुभ समय- 6:00 से 7:30 मिनट तक।
 
चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 25 मार्च 2022, शुक्रवार।
चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ- गुरुवार, 24 मार्च 2022 को रात 12.09 मिनट से।
अष्टमी तिथि की समाप्ति- शुक्रवार, 25 मार्च 2022 को रात 10.04 मिनट पर। 
पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त- 25 मार्च, सुबह 6.8 मिनट से 6.41 मिनट तक।

शीतला माता की आरती-Aarti 
 
जय शीतला माता... मैया जय शीतला माता, 
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।
जय शीतला माता...

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता, 
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता।
जय शीतला माता...

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता, 
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता।
जय शीतला माता... 
 
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा, 
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता।
जय शीतला माता...

घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता, 
करै भक्तजन आरती लखि-लखि हरहाता।
जय शीतला माता... 
 
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु-पिता-भ्राता।
जय शीतला माता... 
 
जो भी ध्यान लगावें, प्रेम भक्ति लाता, 
सकल मनोरथ पावे, भवनिधि तर जाता।
जय शीतला माता... 
 
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता, 
कोढ़ी पावे निर्मल काया, अंध नेत्र पाता।
जय शीतला माता... 
 
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता, 
ताको भजै जो नाहीं, सिर धुनि पछिताता।
जय शीतला माता... 
 
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता, 
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता।
जय शीतला माता... 
 
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता, 
भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता। 

shitala mata story-पौराणिक कथा :
 
एक बार एक राजा के इकलौते पुत्र को शीतला (चेचक) निकली। उसी के राज्य में एक काछी-पुत्र को भी शीतला निकली हुई थी। काछी परिवार बहुत गरीब था, पर भगवती का उपासक था। वह धार्मिक दृष्टि से जरूरी समझे जाने वाले सभी नियमों को बीमारी के दौरान भी भली-भांति निभाता रहा। घर में साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता था। नियम से भगवती की पूजा होती थी। नमक खाने पर पाबंदी थी। सब्जी में न तो छौंक लगता था और न कोई वस्तु भुनी-तली जाती थी। गरम वस्तु न वह स्वयं खाता, न शीतला वाले लड़के को देता था। ऐसा करने से उसका पुत्र शीघ्र ही ठीक हो गया।

 
उधर जब से राजा के लड़के को शीतला का प्रकोप हुआ था, तब से उसने भगवती के मंडप में शतचंडी का पाठ शुरू करवा रखा था। रोज हवन व बलिदान होते थे। राजपुरोहित भी सदा भगवती के पूजन में निमग्न रहते। राजमहल में रोज कड़ाही चढ़ती, विविध प्रकार के गर्म स्वादिष्ट भोजन बनते। सब्जी के साथ कई प्रकार के मांस भी पकते थे। इसका परिणाम यह होता कि उन लजीज भोजनों की गंध से राजकुमार का मन मचल उठता। वह भोजन के लिए जिद करता। एक तो राजपुत्र और दूसरे इकलौता, इस कारण उसकी अनुचित जिद भी पूरी कर दी जाती।

 
इस पर शीतला का कोप घटने के बजाय बढ़ने लगा। शीतला के साथ-साथ उसे बड़े-बड़े फोड़े भी निकलने लगे, जिनमें खुजली व जलन अधिक होती थी। शीतला की शांति के लिए राजा जितने भी उपाय करता, शीतला का प्रकोप उतना ही बढ़ता जाता। क्योंकि अज्ञानतावश राजा के यहां सभी कार्य उलटे हो रहे थे। इससे राजा और अधिक परेशान हो उठा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सब होने के बाद भी शीतला का प्रकोप शांत क्यों नहीं हो रहा है।

 
एक दिन राजा के गुप्तचरों ने उन्हें बताया कि काछी-पुत्र को भी शीतला निकली थी, पर वह बिलकुल ठीक हो गया है। यह जानकर राजा सोच में पड़ गया कि मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा व अनुष्ठान में कोई कमी नहीं, पर मेरा पुत्र अधिक रोगी होता जा रहा है जबकि काछी पुत्र बिना सेवा-पूजा के ही ठीक हो गया। इसी सोच में उसे नींद आ गई।
 
श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा- 'हे राजन्‌! मैं तुम्हारी सेवा-अर्चना से प्रसन्न हूं। इसीलिए आज भी तुम्हारा पुत्र जीवित है। इसके ठीक न होने का कारण यह है कि तुमने शीतला के समय पालन करने योग्य नियमों का उल्लंघन किया। तुम्हें ऐसी हालत में नमक का प्रयोग बंद करना चाहिए। नमक से रोगी के फोड़ों में खुजली होती है। घर की सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इसकी गंध से रोगी का मन उन वस्तुओं को खाने के लिए ललचाता है। रोगी का किसी के पास आना-जाना मना है क्योंकि यह रोग औरों को भी होने का भय रहता है। अतः इन नियमों का पालन कर, तेरा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा।' विधि समझाकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं। प्रातः से ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी कार्यों की व्यवस्था कर दी। 
 
इससे राजकुमार की सेहत पर अनुकूल प्रभाव पड़ा और वह शीघ्र ही ठीक हो गया। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण और माता देवकी का विधिवत पूजन करके मध्यकाल में सात्विक पदार्थों का भोग लगाने की मान्यता है। इस तरह पूजन एवं कथा वाचन से पुण्य की प्राप्ति तथा कष्टों का निवारण होता है।

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