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Written By WD

रंगपंचमी तक छाई रहेगी फागुन की मस्ती

फागुन मास के व्रत-त्योहार

फागुन मास के व्रत त्योहार
- अनिता मोदी
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फागुन के रंग हवाओं में उतरने लगे हैं। टेसू के फूलों से लदे पेड़, आमों पर की बौराती डालियां, मंद-मंद बयारों की हिलोरें, कहीं सरसों से वासंती होती धरा तो कहीं सुनहरी गेहूं की बालियां रंगीले फागुन के आने के संकेत देने लगे हैं। कहीं फसलों के पकने की खुशी तो कहीं वसंत के स्वागत में उत्सव मनाए जाने लगे हैं।

फागुन मास में मंदिरों में फाग उत्सव होंगे। 17 फरवरी को स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती, विजया एकादशी (दो दिन), वसंतारंभ, 20 फरवरी को महाशिवरात्रि, 4 मार्च को आमलकी एकादशी, 7 मार्च होलिका पूजन व व्रत की पूनम, 8 मार्च धुलंडी होगी। 1 मार्च से होलाष्टक प्रारंभ होकर 8 मार्च को पूर्ण होगा।

मंदिरों में फाग खेलकर ठाकुरजी पर खुशियों के रंग बरसाए जाने लगे हैं। हिन्दू पंचांग का बारहवां और अंतिम मास फागुन 8 फरवरी से लग गया है। फागुन मास वसंत ऋतु का मास कहलाता है। अन्य व्रत-त्योहारों के साथ प्रमुख रूप से होली का त्योहार इस मास में पड़ेगा।

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यह आनंद का मास है। इसमें गाए जाने वाले गीतों को फाग कहा जाता है। इस उत्सव में एक-दूसरे पर रंग-गुलाल डालकर वसंत के स्वागत में और होली की मस्ती के गीत गाए जाते हैं। पिया संग खेलूं होली फागण आयो रे...फागुन का महीना केसरिया रंग घोर....सांवरिया थारी याद सतावे रे महीनो फागन को..मेहंदी री लाली चुरा लायो फागण... आदि।

फागुन को रंगीला मास कहा गया है। फागुन का नाम लेते ही रंगों के त्योहारों की मस्ती याद आ जाती है। इस समय मौसम न अधिक गर्म होता है न अधिक ठंडा। दिन बड़े होने लगे हैं। वसंत पंचमी से ही प्रकृति का एक नया रूप दिखाई देने लगता है। इसे वसंत ऋतु का मास भी कहा जाता है। रंगों के उत्सवों का सिलसिला रंगपंचमी तक चलता है।

फागुन मास यह सिखाता है कि जिस तरह पेड़-पौधे अपने जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों को उतार फेंक नई कोपलों के रूप में नए वस्त्र धारण करते हैं। उसी तरह हमें पुराने-बुरे विचारों को त्याग नए और अच्छे विचारों को अपनाना चाहिए। फागुन में पड़ने वाला होली का त्योहार बुराइयों को खत्म करने और सभी भेदभाव भूलाकर एक होने का संदेश देता है।