• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. इस्लाम धर्म
  4. Moharram history and relation of Tajia
Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 27 जून 2025 (12:12 IST)

मोहर्रम मास 2025: जानें मुहर्रम का इतिहास, धार्मिक महत्व और ताजिये का संबंध

Moharram month 2025
Muharram Tarikh 2025: इस साल वर्ष 2025 में इस्लामिक महीना मुहर्रम का चांद 26 जून, गुरुवार को दिखाई दिया, इसलिए 27 जून यानी आज मुहर्रम की पहली तारीख है। बता दें कि यह तारीख चांद दिखने पर निर्भर करती है, इसलिए इसमें थोड़े बदलाव की संभावना भी बनी रहती है। और मुहर्रम का सबसे महत्वपूर्ण दिन, जिसे आशूरा या यौम-ए-आशूरा कहा जाता है, जो कि हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में रोज-ए-आशूरा के रूप में मनाया जाता है, वह इस बार 6 जुलाई 2025, रविवार को पड़ने की संभावना है।ALSO READ: इस साल मुहर्रम कब है और क्या होता है?
 
मुहर्रम का इतिहास: मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर (हिजरी वर्ष) का पहला महीना है। यह इस्लाम के चार पवित्र महीनों में से एक है। जिस तरह अंग्रेजी कैलेंडर में नया साल 1 जनवरी से शुरू होता है, उसी तरह इस्लामी कैलेंडर का नया साल मुहर्रम महीने से शुरू होता है। हालांकि यह इस्लामी नववर्ष की शुरुआत का महीना है, मुहर्रम खुशियों का नहीं, बल्कि शोक और मातम का महीना माना जाता है। खासकर शिया मुस्लिम समुदाय में इस महीने को गहन शोक के रूप रूप में मनाया जाता है।
 
इसके पीछे शोक का कारण यह हैं कि मुहर्रम का महीना इस्लाम के इतिहास की एक दुखद घटना की याद दिलाता है। लगभग 1400 साल पहले (61 हिजरी में), मुहर्रम की 10वीं तारीख, जिसे आशूरा कहा जाता है, को पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे (नाती) हज़रत इमाम हुसैन (र.अ.) को कर्बला, जो आज के इराक में स्थित के मैदान में यज़ीद की सेना द्वारा शहीद कर दिया गया था। इमाम हुसैन ने अपने परिवार और 72 साथियों के साथ अन्याय और सत्य के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।
 
मुहर्रम, शोक और मातम का संबंध: इसी कारण शिया समुदाय के लोग इस महीने में शोक मनाते हैं, मजलिसें/ शोक सभाएं आयोजित करते हैं, काले कपड़े पहनते हैं और इमाम हुसैन व उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए आंसू बहाते हैं। वे शोक गीत/ नौहे  पढ़ते हैं और जुलूस निकालते हैं।
 
ताजिया: मुहर्रम की 10वीं तारीख (आशूरा) को कई जगहों पर ताज़िया निकाले जाते हैं। ताज़िया इमाम हुसैन और उनके साथियों के मकबरे या मजार के प्रतिरूप होते हैं, जिन्हें फूलों और रोशनी से सजाया जाता है। ये जुलूस मातम और शहादत को याद करने का प्रतीक होते हैं।
 
रोज़ा (उपवास): सुन्नी मुस्लिम समुदाय के लोग मुहर्रम की 9वीं और 10वीं तारीख को रोज़ा यानी उपवास रखते हैं। यह अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की सुन्नत (परंपरा) मानी जाती है।
 
इबादत और दान: इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत पर ज़ोर देते हैं और दान-पुण्य के कार्य करते हैं।
 
संक्षेप में कहें तो, मुहर्रम इस्लाम का पहला महीना है, जो पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत और बलिदान की याद में शोक और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: इस्लाम और यहूदी धर्म में क्या है समानता?
 
ये भी पढ़ें
आषाढ़ी देवशयनी एकादशी पूजा की शास्त्र सम्मत विधि