लिंगभेद को समाप्त करने की कोशिश में इस साल टोक्यो ओलंपिक 2020 का ध्वज एक महिला और पुरुष खिलाड़ी साथ पकड़कर चलेंगे, लेकिन इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो ओलंपिक को एक समय महिलाओं से बैर था।
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में महिलाओं का भाग लेना तो क्या दर्शक दीर्घा में बैठने पर मौत की सजा हो जाती थी जिससे आधुनिक ओलिम्पिक के जनक बैरोन पियरे डि कूबेर्टन भी कुछ हद तक प्रभावित थे क्योंकि वह खेलों में महिलाओं के भाग लेने के विचार से सहमत नहीं थे।
कूबेर्टन ने जब 1896 में ओलिम्पिक खेलों को नए रूप में पेश किया था तो उन्होंने साफ कर दिया कि कोई भी महिला इन खेलों में भाग नहीं लेगी। कूबेर्टन ने कहा था ओलंपियाड में महिलाओं की हिस्सेदारी अव्यवहारिक, अरुचिकर और अनुचित होगी।
अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति के सदस्यों के बीच इस पर लंबी चर्चाएं भी हुईं लेकिन महिलाओं की हिस्सेदारी पर मुहर नहीं लग सकी। अचरज भरी बात यह है कि कुबेर्टन ने अंतिम सांस लेने तक महिलाओं की हिस्सेदारी का विरोध किया।
महिलाओं ने इसके चार साल बाद 1900 में टेनिस और गोल्फ के जरिए ओलिम्पिक में अपना पहला कदम रखा, लेकिन आधी दुनिया के प्रति आईओसी का रवैया इतना कड़ा था उसने 1896 से 1981 लगभग 86 साल तक किसी महिला को अपना सदस्य नहीं बनाया।
प्राचीन ओलिम्पिक में शादीशुदा महिलाएं हिस्सा नहीं ले सकती थीं और उनके दर्शक दीर्घा में बैठने पर भी प्रतिबंध था और अगर ऐसा होता तो उनके लिए मौत की सजा का प्रावधान था। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दर्शक दीर्घा में वेश्याओं और कुंवारियों के बैठने पर पांबदी नहीं थी।
पुरुषों के इस रवैये पर महिलाएं हालांकि आज से कई सदियों पहले भी चुप नहीं बैठी रहीं। महिलाओं ने अपने लिए अलग स्पर्धा (पैदल रेस) का आयोजन किया, जिन्हें ओलिम्पिक खेलों के देवता जीयर्स की बड़ी बहन और पत्नी हेरा को समर्पित किया गया।
इस रेस का आयोजन चार साल के बाद ओलिम्पिक की तरह ओलंपिया स्टेडियम में किया जाता था जिसमें उम्र के आधार पर तीन ग्रुप बनाए हुए थे। यह रेस ओलिम्पिक का हिस्सा नहीं थी और ओलिम्पिक वर्ष में ही कराई जाती थी।
आधुनिक ओलिम्पिक की शुरुआत यानी 1896 में भी एक दिलचस्प वाकया देखने को मिला था। महिलाएं क्योंकि ओलिम्पिक में भाग नहीं ले सकती थीं, इसलिए एक यूनानी महिला स्टामाटीम रेविथी ने स्टेडियम के बाहर अनधिकृत मैराथन में हिस्सा लिया।
वह पुरुष मैराथन के एक दिन बाद दौड़ी और उन्होंने यह रेस पूरी करके सबको हैरत में डाल दिया था। अधिकारी तब उनका नाम नहीं जानते थे तो उन्होंने उसे मेलपोमीन नाम दे दिया जिसका मतलब यूनानी भाषा में शोक की देवी होता है क्योंकि उस समय महिलाओं का ओलिम्पिक में हिस्सा लेना दुखद माना जाता था।
आधुनिक ओलिम्पिक में महिलाओं का प्रवेश पेरिस में 1900 में हुए ओलिम्पिक से हुआ जिसमें उन्हें सिर्फ दो स्पर्धाओं टेनिस और गोल्फ में खेलने की अनुमति दी गई। ब्रिटेन की चार्लोट कूपर टेनिस एकल स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक हासिल करने वाली महिला एथलीट बनीं।
इसके बाद लंदन में 1908 में 36 महिलाओं ने स्केटिंग और टेनिस स्पर्धा में शिरकत की। इन खेलों के बाद ही ब्रिटिश ओलिम्पिक संघ ने सिफारिश की कि भविष्य के ओलिंपिक में महिलाओं को तैराकी, गोताखोरी और जिम्नास्टिक में भी हिस्सा लेने की अनुमति दी जाए।
स्वीडन की आयोजन समिति ने 1912 स्टाकहाम खेलों में तैराकी में दो और गोताखोरी में एक महिला को भाग लेने को मंजूरी दी। अंतत: 1924 में आईओसी ने महिलाओं को ओलिम्पिक में काफी संख्या में भाग लेने की अनुमति देने का फैसला किया। हालांकि इसके साक्ष्य भी काफी कम मिले क्योंकि बर्लिन में हुए 1936 खेलों में इनके लिए केवल चार ही स्पर्धाएं उपलब्ध थीं।
लंदन में 1948 ओलिम्पिक में अधिकतर देशों ने अपने दल में महिलाओं को भी शामिल किया लेकिन इन खेलों में भी उनके लिए सिर्फ पांच स्पर्धाएं ही थीं। मैक्सिको सिटी में 1968 में हुए खेलों में इनकी संख्या छह कर दी गई।
लेकिन 1976 के बाद ही उनके खेलों की संख्या में काफी बढ़ोतरी की गई। 1996 अटलांटा खेलों में महिला एथलीटों के लिए 26 खेल और 97 स्पर्धाएँ मौजूद थीं जो पुरुषों की 163 प्रतियोगिताओं से काफी कम थी।
सिडनी में हुए 2000 खेलों में कुल 10651 प्रतिभागियों में 4069 महिलाओं ने हिस्सा लिया। वहीं 2004 एथेंस ओलिम्पिक में 28 खेलों में से 27 में महिलाओं ने हिस्सा लिया और उनके लिए 135 स्पर्धाएं मौजूद थीं जो एक रिकॉर्ड था। बीजिंग ओलिम्पिक खेलों में भी महिलाओं ने रेकॉर्ड संख्या में भागीदारी निभाई।(भाषा)