हिन्दी का प्रथम व्याकरण डच व्यापारी ने लिखा
जब भारत में पश्चिमी देशों के विदेशी व्यापारियों का आना-जाना शुरू हुआ तो अंग्रेज, फ्रेंच, डच, पुर्तगाली आदि व्यापारियों के सामने सम्पर्क भाषा का संकट था। प्रसिद्घ भाषा शास्त्री सुनीति कुमार चटर्जी ने अपनी पुस्तक में एक डच यात्री जॉन केटेलर का उल्लेख किया है, जो सूरत में व्यापार करने के लिए आया था। सूरत के आसपास व्यापारी वर्ग में जो भाषा बोली जाती थी, वह हिन्दी गुजराती का मिश्रित रूप था। उसका व्याकरण हिन्दी परक था। केटेलर ने इस भाषाई संकट को दूर करने के लिए डच भाषा में हिन्दी का प्रथम व्याकरण लिखा। इसके बाद ईसाई प्रचारक बैंजामिन शुल्गे मद्रास आया और उसने 'ग्रेमेटिका हिन्दोस्तानिक' नाम से देवनागरी अक्षरों में हिन्दी व्याकरण की रचना की। उसी समय हेरासिम लेवेडेफ नामक ईसाई पादरी ने भाषा पंडितों की सहायता से शुद्घ और मिश्रित पूर्वी हिन्दुस्तान की बोलियों का व्याकरण अंग्रेजी में लिखा। गुजरात और मद्रास जैसे अहिन्दी प्रदेशों में विदेशी विद्वानों ने भाषा ज्ञान के लिए एवं माध्यम भाषा के लिए जिन व्याकरण ग्रन्थों का निर्माण किया वे हिन्दी व्याकरण थे यानी उस भाषा के व्याकरण थे जो दो सौ वर्ष पहले इस देश की लोकप्रिय सार्वभौमिक भाषा थी। उसका विकास किसी दबाव, लालच, शासकीय प्रबन्ध या प्रेरणा से न हो कर आर्थिक विकास की जरूरत के मुताबिक खुद ही हो रहा था।