- रमेश जोशी
ग्यारह सितंबर 2014 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले की बरसी थी। 2001 को इसी दिन हम यह हमला हुआ था और ये दोनों टॉवर पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे तथा कोई तीन हजार निर्दोष लोग मारे गए। चूंकि यह हमला दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश पर हुआ था इसलिए इसने सर्वाधिक ध्यान भी आकर्षित किया और आज भी इसकी बरसी सारे अमेरिका में मनाई जाती है।
अभी पिछले महीने श्राद्ध पक्ष भी गुजरा है। यह अपने पितरों को श्रद्धा से स्मरण करने का अवसर होता है, लेकिन अमेरिका पर हुआ यह हमला श्रद्धा नहीं बल्कि अविवेक और हिंसा का घृणित उदाहरण है। किसी भी कारण से अमेरिका से सहमत न होने वालों के लिए भी यह कोई खुशी का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का दिन होना चाहिए।
गीता में जब कृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं तब वे राज्य के लिए नहीं बल्कि अन्याय के प्रतिकार के लिए हथियार उठाने का तर्क देते हैं। इसे कृष्ण धर्मयुद्ध का नाम देते हैं। युद्ध के जो नियम तय हुए उनके अनुसार युद्ध बाकायदा दोनों ओर से पूर्णतया सन्नद्ध होने पर शुरू होगा। रथी रथी से ही युद्ध करेगा, पैदल पैदल से। कोई भी निहत्थे पर वार नहीं करेगा जब तक कि वह शस्त्र नहीं उठा ले। रात में कोई किसी पर छुपकर हमला नहीं करेगा। एक के साथ एक ही युद्ध करेगा आदि-आदि। लेकिन नियमों पर आधारित युद्ध शुरू होने पर कब नियमों से परे: छल-कपट में बदल गया; पता ही नहीं चला। इसीलिए युद्ध को निवारणीय माना गया है। इसीलिए कृष्ण उसे हर हालत में टालने का प्रयत्न करते रहे।
धर्म के नाम पर युद्धों का इतिहास योरप और मध्यपूर्व में सबसे पुराना और सर्वाधिक प्रचलित रहा है, जो आज भी किसी न किसी रूप में दुनियाभर में फैला हुआ है और समस्त विश्व के लिए खतरा बना हुआ है। इसे कभी जिहाद तो कभी क्रूसेड कहा गया। इनके पीछे जनता की कोई शत्रुता नहीं, बल्कि धार्मिक नेताओं की लिप्सा थी। सामान्य आदमी कभी भी और किसी भी देश में युद्ध नहीं चाहता। वह तो ओम और शांति का जीवन जीना चाहता है। उसे तो कभी धर्म, तो कभी बेहतर जीवन के लालच में, तो कभी जन्नत का हसीन ख्वाब दिखाकर उल्लू बनाया जाता है।
जहां तक तथाकथित धर्म की बात है तो वह मनुष्य के साथ धरती पर नहीं उतरा है और न ही वह अंतिम होता है। यदि ऐसा होता तो वह बदलता ही नहीं, जबकि हम इन धर्मों की शुरुआत के बारे में जानते हैं अर्थात पहले कोई और धर्म था जिसे लोगों ने अपने लिए बदला और अब भी या तो उसे बदलना चाहते हैं या कोई नया धर्म शुरू करना चाहते हैं या दूसरों को बलपूर्वक अपने तथाकथित धर्म में मिलाना चाहते हैं। यही धर्म है, जो खतरे में पड़ता है और यही वह धर्म है, जो सबके लिए खतरा है।
प्रकृति के सभी अवययों की तरह, सामाजिक प्राणी बन चुके मानव का भी एक धर्म होता है, जो उससे पास-पड़ोस और पारिवारिक रिश्तों को निभाने के रूप में अपेक्षित होता है। यही वह धर्म है जिसकी संसार को आवश्यकता है और यही वह धर्म है, जो दुनिया को जीने लायक बनाता है अन्यथा इन तथाकथित धर्मों के खतरे आप हम सब झेल ही रहे हैं। ऐसे ही तथाकथित धर्मों के कारण यह दुनिया एक डरी हुई दुनिया हो गई है, जैसे कि रात में जंगल में डर से चौंक पड़ने वाले शाकाहारी जीव।
इस हमले के अतिरिक्त भी दुनिया में तथाकथित धर्म या देश के नाम पर करोड़ों निर्दोष लोगों की जानें ली गई हैं। इसलिए इसके साथ योरप के क्रूसेड, मध्य एशिया के जिहाद और हिटलर का यहूदियों का संहार, अमेरिका का जापान पर बम गिराना, जापान का चीन आदि देशों में नरसंहार, योरपीय देशों का एशिया-अफ्रीका और अमेरिका में 500 साल पूर्व किया गया वहां के मूल निवासियों का कत्लेआम, जलियांवाला बाग की गोलीबारी- सभी समान रूप से निंदनीय हैं।
आज भी दुनिया में ऐसे कत्लेआम धर्मयुद्ध के नाम पर हो रहे हैं। जो तथाकथित धर्म के साथ भाईचारे के नाम पर चुप हैं, वे मूर्ख, दुष्ट या अज्ञानी हैं। वे नहीं जानते कि यह दूर पहाड़ों पर जलती आग उन तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी और तब दूसरे भी इसे पराया दु:ख मानकर तटस्थ हो जाएंगे।
यह समय सारी दुनिया पर भारी है और इसका मुकाबला भी धर्म, फिरके, नस्ल और देश से ऊपर उठकर किया जाना चाहिए अन्यथा हानि हम सब सामान्य आदमियों की होगी और मरहम लगाने वाला कोई नहीं होगा। यदि धर्म से ऊपर उठकर सच्चा मानवीय भाईचारा हो तो इस धरती मां में हमारा पोषण करने की पर्याप्त क्षमता है।
डर के दो रोचक उदाहरण देखें- ईरान में वॉट्सऐप पर इसलिए प्रतिबंध लगा दिया गया, क्योंकि उससे जुदा हुआ जुकरबर्ग यहूदी है और यहूदियों और इस्लाम का विरोध है।
जेनेवा से न्यूयॉर्क जाने के लिए एक 33 वर्षीय फ्रांसीसी महिला अपने पति और दो बच्चों के साथ जेनेवा एयरपोर्ट पहुंची, लेकिन उसे बोर्ड नहीं करने दिया गया, क्योंकि उसका नाम ऐडा एलिक (AIDA ALIC) था और जैसा कि यहां होता है, सरनेम (लास्ट नेम) या जाति जैसा जो होता है, उसे पहले लिखा जाता है। सो पासपोर्ट में लिखा था (ALIC AIDA)। उसे एकसाथ पढ़ने से जो ध्वनि बनी वह एलिक ऐडा से चलते हुए अलकायदा हो गई। बस, उसे न्यूयॉर्क (अमेरिका) जाने देने से रोकने के लिए पर्याप्त था। अलकायदा वाली घटना के बाद दाढ़ी वाले एशियन और कुछ सरदारों पर हुए हमले इसी का विस्तार थे, क्योंकि अमेरिका में वहां के छात्रों को स्कूल में और वयस्कों को मीडिया द्वारा अमेरिका और उसकी श्रेष्ठता के बारे में ही पढ़ाया जाता है। ऐसी एकांगी शिक्षा भी इस दुनिया में भय को और बढ़ाती है।
ज्ञान और तत्वज्ञान से ही इस प्रकार के भय के निवारण का मार्ग निकलेगा।