मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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शारदीय नवरात्रि में जानिए माता सती और पार्वती का रहस्य

Shardiya Navratri | शारदीय नवरात्रि में जानिए माता सती और पार्वती का रहस्य
त्रिदेवजननी : कई जगह माता अम्बा को त्रिदेवजननी कहा गया है और कई जगह वह आदिशक्ति भी कही गई है जो सदाशिव की पत्नी हैं। कहते हैं कि उन्होंने ही कालांतर में कई लोगों के यहां जन्म लिया था। इस संबंध में विस्तार से हमने लिखा है। फिलहाल जानें कि ब्रह्मा के पुत्र राजा दक्ष की पुत्री सती जब यज्ञ की अग्नि में जलकर भस्म हो गई तो उन्होंने दूसरे जन्म में हिमावान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया।
 
 
इन्हीं सती माता के ही 51 शक्तिपीठ हैं। माता सती को ही कालांतर में पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरीजा, अम्बे, शेरांवाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुंडा, तुलजा, अम्बिका आदि नामों से भी जाना जाने लगा। कहते हैं कि माता सती के ही ये नए जन्म थे। यह किसी एक जन्म की कहानी नहीं कई जन्मों और कई रूपों की कहानी है। जो भी हो इस गुत्थी को सुलझाना थोड़ा मुश्किल है।

देवियों की पहचान : प्रत्येक देवी का वाहन अलग अलग है। देवी दुर्गा सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती शेर पर। पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं उन्हें सिंह पर सवार दिखाया गया है। कात्यायनी देवी को भी सिंह पर सवार दिखाया गया है। देवी कुष्मांडा शेर पर सवार है। माता चंद्रघंटा भी शेर पर सवार है। जिनकी प्रतिपद और जिनकी अष्टमी को पूजा होती है वे शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर सवारी करती है। माता कालरात्रि की सवारी गधा है तो सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है। इसी तरह देवी के हाथों को देखकर भी उन्हें पहचाना जाता है। देवी दुर्गा चारभुजाधारी हैं।
 
 
माता पार्वती का परिचय : माता पार्वती शिवजी की दूसरी पत्नीं थीं। मान्यता अनुसार शिवजी की तीसरी पत्नी उमा और चौथी काली थी। हालांकि इन्हें पार्वती का ही भिन्न रूप भी माना जाता है। पार्वती माता अपने पिछले जन्म में सती थीं। माता सती के ही रूप हैं जिसे 10 महाविद्या कहा जाता है- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। पुराणों में इनके संबंध में भिन्न भिन्न कहानियां मिलती है। दरअसल ये सभी देवियों की कहानी पुराणों में अलग-अलग मिलती है। इनमें से कुछ तो पार्वती का रूप या अवतार नहीं भी है।
 
दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम ।
त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्न्मस्तिके च।।
 
देवी पार्वती के पिता का नाम हिमवान और माता का नाम रानी मैनावती था। माता पार्वती की एक बहन का नाम गंगा है, जिसने महाभारत काल में शांतनु से विवाह किया था और जिनके नाम पर ही एक नदी का नाम गंगा है।
 
माता पार्वती को ही गौरी, महागौरी, पहाड़ोंवाली और शेरावाली कहा जाता है। अम्बे और दुर्गा का चित्रण पुराणों में भिन्न मिलता है। अम्बे या दुर्गा को सृष्टि की आदिशक्ति माना गया है जो सदाशिव (शिव नहीं) की अर्धांगिनी है। माता पार्वती को भी दुर्गा स्वरूप माना गया है, लेकिन वे दुर्गा नहीं है। नवरात्रि का त्योहार माता पार्वत के लिए ही मनाया जाता है। पार्वती के 9 रूपों के नाम हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
 
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति.चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
 
माता पार्वती के 6 पुत्रों में से प्रमुख दो पुत्र हैं:- गणेश और कार्तिकेय। भगवान गणेश के कई नाम है उसी तरह कार्तिकेय को स्कंद भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक पुराण भी है। इसके अलावा उन्होंने हेति और प्रहेति कुल के एक अनाथ बालक सुकेश को भी पाला था। सुकेश से ही राक्षस जाति का विकास हुआ। इसके अलावा उन्होंने भूमा को भी पाल था जो शिव के पसीने से उत्पन्न हुआ था। जलंधर और अयप्पा भी शिव के पुत्र थे लेकिन पार्वती ने उनका पालन नहीं किया था। माता पार्वती की दो सहचरियां जया और विजया भी थीं।
 
पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान शिव की चार पत्नियां थीं। पहली सती जिसने यज्ञ में कूदकर अपनी जान दे दी थी। यही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनकर आई, जिनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं। फिर शिव की एक तीसरी पत्नी थीं जिन्हें उमा कहा जाता था। देवी उमा को भूमि की देवी भी कहा गया है। उत्तराखंड में इनका एकमात्र मंदिर है। भगवान शिव की चौथी पत्नी मां काली है। उन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक दानवों का संहार किया था।