चैत्र नवरात्रि की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि का क्या है महत्व?
वर्ष में चार नवरात्रियां होती हैं। चैत्र, पौष, आषाढ़ और आश्विन माह में आती है नवरात्रियां। चैत्र माह में बसंत नवरात्रि, अश्विन माह में शारदीय नवरात्रि और पौष एवं आषाढ़ में गुप्त नवरात्रि रहती है। सभी नवरात्रियों में सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथियों का विशेष महत्व रहता है। इन तिथियों पर व्रत का समापन करते हैं। समापन के दौरान कई तरह के व्यंजन बनाते हैं। आओ जानते हैं इन तिथियों का महत्व।
1. सप्तमी: सप्तमी के स्वामी सूर्य और इसका विशेष नाम मित्रपदा है। शुक्रवार को पड़ने वाली सप्तमी मृत्युदा और बुधवार की सिद्धिदा होती है। आषाढ़ कृष्ण सप्तमी शून्य होती है। इस दिन किए गए कार्य अशुभ फल देते हैं। इसकी दिशा वायव्य है। सूर्य, रथ, भानु, शीतला, अचला आदि कई सप्तमियों को व्रत रखने का प्रचलन है। सप्तमी की देवी शीतला माता और मां कालरात्रि हैं।
क्या नहीं खाएं : सप्तमी के दिन ताड़ का फल खाना निषेध है। इसको इस दिन खाने से रोग होता है।
2. अष्टमी : इस आठम या अठमी भी कहते हैं। कलावती नाम की यह तिथि जया संज्ञक है। मंगलवार की अष्टमी सिद्धिदा और बुधवार की मृत्युदा होती है। इसकी दिशा ईशान है। अष्टमी की देवी माहागौरी है।
क्या न खाएं : अष्टमी के दिन नारियल खाना निषेध है, क्योंकि इसके खाने से बुद्धि का नाश होता है। इसके आवला तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है।
3. नवमी : यह चैत्रमान में शून्य संज्ञक होती है और इसकी दिशा पूर्व है। शनिवार को सिद्धदा और गुरुवार को मृत्युदा। अर्थात शनिवार को किए गए कार्य में सफलता मिलती है और गुरुवार को किए गए कार्य में सफलता की कोई गारंटी नहीं। नवमी की देवी मां सिद्धिदात्री हैं।
क्या ना खाएं : नवमी के दिन लौकी खाना निषेध है, क्योंकि इस दिन लौकी का सेवन गौ-मांस के समान माना गया है।