When is Kajri Teej 2025: 'कजली सतवा तीज' जिसे आमतौर पर कजरी तीज के नाम से जाना जाता है, यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व पति की लंबी उम्र, वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस साल, कजरी तीज 12 अगस्त 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी। इसे सातुड़ी तीज या बूढ़ी तीज भी कहते हैं।
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पंचांग के अनुसार, भाद्रपद कृष्ण तृतीया तिथि का आरंभ 11 अगस्त को सुबह 10:33 बजे होगा और इसका समापन 12 अगस्त को सुबह 08:40 बजे होगा। चूंकि हिंदू धर्म में कोई भी व्रत उदया तिथि के अनुसार ही रखा जाता है, इसलिए कजरी तीज का पर्व 12 अगस्त को ही मनाया जाएगा। आइए जानते हैं इस पर्व के बारे में...
कजली तीज पूजा का शुभ मुहूर्त:
तृतीया तिथि प्रारंभ- 11 अगस्त 2025 को 10:33 ए एम बजे
तृतीया तिथि समाप्त- 12 अगस्त 2025 को 08:40 ए एम बजे
इस दिन पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त बन रहे हैं:
• ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:49 से 05:34 बजे तक।
• अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12:18 से 01:09 बजे तक।
• विजय मुहूर्त: दोपहर 02:52 से 03:43 बजे तक।
• गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:08 बजे से 07:30 बजे तक।
• निशिथ काल मुहूर्त: 12:21 ए एम, अगस्त 13 से 01:06 ए एम, अगस्त 13 तक।
• सर्वार्थ सिद्धि योग- 11:52 ए एम से 06:19 ए एम, अगस्त 13 तक।
भाद्रपद तीज के दिन क्या करते हैं? कजरी तीज का व्रत करवा चौथ की तरह ही बहुत कठिन होता है और इसे सुहागिन महिलाएं निर्जला रखती हैं। इस दिन किए जाने वाले मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:
1. व्रत और पूजा: इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं। शाम को, वे सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। कुछ जगहों पर नीमड़ी माता की पूजा भी की जाती है।
2. सत्तू और पकवान: इस व्रत में सत्तू का विशेष महत्व है, इसलिए इसे सातुड़ी तीज भी कहा जाता है। महिलाएं व्रत खोलने के लिए जौ, चना, चावल और गेहूं के सत्तू से बने पकवान और मिठाइयां बनाती हैं।
3. चंद्रमा को अर्घ्य: शाम को पूजा करने के बाद महिलाएं चंद्रमा के निकलने का इंतजार करती हैं। चांद निकलने पर उसे अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। अर्घ्य देने के बाद सत्तू, फल या मिठाई का सेवन किया जाता है।
4. झूला झूलना और कजरी/ कजली सतवा तीज के गीत : इस दिन महिलाएं घरों में झूले लगाती हैं और साथ में लोक गीत गाती हैं जिन्हें कजरी गीत कहा जाता है। यह परंपरा इस पर्व की खूबसूरती को और बढ़ा देती है।
5. गायों की पूजा: कुछ क्षेत्रों में इस दिन गायों की भी पूजा की जाती है और उन्हें हरी घास या रोटी खिलाई जाती है। गायों को धार्मिक रूप से बहुत पवित्र माना जाता है।
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