एरण्ड, जिसे अरण्ड, अरण्डी, अण्डी आदि और बोलचाल की भाषा में अण्डउआ भी कहते हैं, यह गाँव के बाहर आमतौर पर पाया जाता है। इसके पत्ते पाँच चौड़ी फाँक वाले होते हैं
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पीना चाहिए। बच्चों को आधा चम्मच दें। गोद के शिशु को 8-10 बूँद दें। असर न होने पर इसकी मात्रा दूसरे दिन बढ़ाकर लेना चाहिए। इस जुलाब से कमजोर व्यक्ति, रोगी या गर्भवती स्त्री को कोई खतरा नहीं रहता।
आँव : आँव में चिकना, चीठा मल निकलता है और मल विर्सजन के समय पेट में हल्की-हल्की मरोड़ भी होती है। आँव का जल्दी इलाज न हो तो यही आगे चलकर आमातिसार, आमवात, सन्धिवात, अमीबायोसिस आदि रोगों को उत्पन्न कर देती है। रात को एक गिलास दूध में आधा चम्मच पिसी सोंठ डालकर खूब उबालें फिर उतारकर ठण्डा करके इसमें 2 चम्मच केस्टर ऑइल डालकर सोते समय पिएँ। 2-3 दिन यह प्रयोग करने पर पेट की सारी आँव मल के साथ निकल जाती है।शिथिल स्तन : स्तनों की शिथिलता दूर करने के लिए एरण्ड के पत्तों को सिरके में पीसकर स्तनों पर गाढ़ा लेप करने से कुछ ही दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।बवासीर : इसके हरे पत्ते पीसकर लुगदी बनाकर गुदा पर रखकर बाँधने और सोते समय केस्टर ऑइल दूध में पीने से कुछ दिन में ही बवासीर रोग ठीक हो जाता है।अण्डवृद्धि : एरण्ड की जड़ को सिरके में कूट-पीसकर महीने लेप बना कर गर्म करें, कुनकुना गर्म अण्डकोषों पर लेप करें। इस उपाय से अण्डकोषों की सूजन उतर जाती है।