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Written By भाषा
Last Updated :नई दिल्ली , गुरुवार, 30 जनवरी 2025 (11:23 IST)

लोगों ने पकड़ा था गाँधीजी के हत्यारे को

Mahatma Gandhi | लोगों ने पकड़ा था गाँधीजी के हत्यारे को
30 जनवरी 1948 को राजधानी स्थित बिड़ला हाउस में शाम के वक्त प्रार्थना सभा के बाद जब महात्मा गाँधी को गोली मारी गई तो उनके हमलावर को वहाँ मौजूद आम लोगों ने पकड़ा था क्योंकि गाँधीजी के निर्देश पर परिसर के अंदर पुलिस के आने पर मनाही थी।

गाँधीजी की हत्या के चश्मदीद रहे कृष्ण देव मदान बताते हैं कि जिस वक्त गाँधीजी को गोली मारी गई थी उससे ठीक पहले वह उनकी प्रार्थना सभा के बाद होने वाले नियमित संबोधन को रिकॉर्ड कर अपने उपकरण समेट रहे थे।

मदान ने बताया कि बाद में जब उन्होंने गोली की आवाज सुनी तो देखा कि तीन गोली लगने के बाद गाँधीजी गिर पड़े थे और उनका हमलावर जो गाँधीजी से कुछ दूरी पर था, उसे वहाँ मौजूद आम लोग पकड़ने का प्रयास कर रह थे। उन्होंने कहा कि गोली चलाने वाले (नाथूराम) गोडसे ने इस काम को अंजाम देने के बाद खुद ही अपने हथियार लोगों को सौंपकर आसानी से खुद को उनके सुपुर्द कर दिया।

इस दौरान मौजूद रहे एक और प्रत्यक्षदर्शी तथा लेखक, पत्रकार एवं चिंतक देवदत्त के अनुसार उस दौरान बिड़ला हाउस (अब गाँधी स्मृति) में कोई पुलिस नहीं आई थी और आम लोगों ने ही हमलावर को पकड़ा था।

उस वक्त 24 साल के रहे मदान ने बताया कि गाँधीजी ने अपने आश्रम में पुलिस के आने पर रोक लगा रखी थी और पुलिस वाले केवल आम आदमी की तरह ही अंदर आ सकते थे।

मदान उस वक्त आकाशवाणी के लिए कार्यक्रम अधिकारी के तौर पर गाँधीजी के संबोधनों की रिकॉर्डिंग किया करते थे, जिसका प्रसारण हर रोज रात साढ़े आठ बजे होता था। उन्होंने 19 सितंबर 1947 से रिकार्डिंग शुरू की थी और तब से 30 जनवरी 1948 को गाँधीजी की हत्या वाले दिन तक नियमित रिकॉर्डिंग की।

गाँधी स्मृति और दर्शन समिति समेत पाँच गांधीवादी संस्थाओं द्वारा ‘गाँधी स्मृति’ में आज आयोजित कार्यक्रम में गाँधीजी की हत्या के दोनों चश्मदीदों ने जब भावुक होकर इन संस्मरणों को याद किया तो लोगों की आंखें नम हो गईं।

इस मौके पर गाँधीजी पर 1937 में बने एक वृत्तचित्र का भी प्रदर्शन किया गया, जिसे तमिलनाडु के फिल्मकार एके चेट्टियार ने बनाया था और उन्होंने इसके लिए काफी मेहनत की थी।

फिल्म ढाई घंटे की बनाई गई थी, लेकिन तब अंग्रेजों की पाबंदी के कारण इसकी प्रतियों को जहाँ-तहाँ छिपा दिया गया और कुछ साल पहले काफी खोजे जाने पर इस फिल्म का करीब 81 मिनट का एक हिस्सा मिला है, जिसे दुरुस्त करने का काम किया जा रहा है। इस वृत्तचित्र में गांधी जी के वास्तविक चित्र हैं और उनकी अंतिम यात्रा का भी चित्रण है। (भाषा)
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