शून्य बजट प्राकृतिक खेती के लिए आगे आए सहकारिता- सुभाष पालेकर
शून्य बजट प्राकृतिक खेती के लिए भारत से लेकर मारीशस तक में विख्यात अमरावती के किसान, कृषि वैज्ञानिक और लेखक सुभाष पालेकर ने कहा है कि सहकारी संस्थाओं को इसके लिए आगे आना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय सहकारी दिवस के अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ द्वारा दिल्ली में आयोजित समारोह में सुभाष पालेकर ने कहा कि सहकारी संस्थाओं को खरीफ के फसल में तीन लाख टन खाद की बिक्री का जिम्मा मिला है। लेकिन अब सहकारी संस्थाओं को समझना चाहिए कि रासायनिक खेती किसानों और धरती के लिए मुफीद नहीं रही। लिहाजा उन्हें शून्य बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आगे आना होगा।
पालेकर ने कहा कि सहकारी आंदोलन का विस्तृत नेटवर्क और प्रसार इस खेती को पूरे देश मे फैला सकता है। हर वर्ष जुलाई के पहले शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय सहकारी दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की पहल पर मनाए जा रहे इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय सहकारी दिवस को समावेशी विकास पर केन्द्रित किया गया है।
पालेकर ने आगे कहा कि शून्य लागत आधारित खेती कम से कम लागत पर कृषि उत्पादकता में वृ़द्धि होती है और इससे किसानों के आय में काफी बढ़ोतरी होती है। उन्होंने कहा यह खेती किसानों मे खुशहाली लाने के लिए काफी कारगार सिद्ध हो सकती है। उन्होंने किसानों की बढ़ती आत्महत्या पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि सरकारी आर्थिक सहायता और अन्य प्रकार की सहायता से किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है और उनका जीवन अंधकारमय है। पालेकर ने कहा कि ऐसी स्थिति में यह खेती किसानों के लिए आशा की एक किरण है।
खुद मारीशस में इस खेती को अपना चुके भारत में मारीशस के उच्चायुक्त जे. गोबर्धन ने इस अवसर पर कहा कि मारीशस जैसे छोटे देश मे जीरो आधारित खेती से किसानों की खेती उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि भारत में इसकी सार्थकता काफी सिद्ध हो सकती है।
यूएन खवारे, अतिरिक्त कमिश्नर केन्द्रीय विद्यालय ने कहा कि सहाकारिता में स्कूल के बच्चे एवं नौजवानों को आगे आना होगा। एन. सत्यनरायण, मुख्य कार्यकारी भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ ने शुरुआत पत्र में अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस की महत्ता पर प्रकाश डाला। इस समारोह में राष्ट्रीय सहकारी प्रतिनिधियों के अलावा केन्द्रीय विद्यालय के बच्चे और उत्तरप्रदेश, पंजाब के किसान भी शामिल रहे।