'हार' ने अजय को बना दिया योगी आदित्यनाथ
जीवन में सफल वही होता है जो कभी हार से नहीं घबराता। हार ही जीवन में नए रास्तों को बनाती है। यही बात उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी लागू होती है। आज उत्तरप्रदेश और हर समाचार चैनलों पर एक ही नाम गूंज रहा है योगी आदित्यनाथ। लेकिन एक समय था जब योगी आदित्यनाथ को एबीवीपी ने टिकट तक नहीं दिया था। छात्रसंघ चुनाव में एक हार ने योगी की राह बदल दी और कभी अजय सिंह के नाम से जाने जाने वाला यह शख्स योगी आदित्यनाथ के नाम से जाना जाता है।
उत्तराखंड के छोटे से कस्बे कोटद्वार में 1991 के छात्रसंघ चुनाव में यदि अजय सिंह को हार नहीं मिलती तो शायद वक्त आज उन्हें यह बुलंदी नहीं मिलती। एक छोटी-सी हार ने उनके सामने भविष्य का सुनहरा रास्ता खोल दिया। उनके एक मित्र के मुताबिक योगी आदित्यनाथ का हिन्दुत्व की ओर रुझान शुरू से था और कॉलेज राजनीति में पहचान बनाने के लिए हम लोग एबीवीपी में शामिल हो गए थे।
योगी को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने टिकट नहीं दिया तो हमने उन्हें अकेले ही चुनाव लड़वा दिया। इस चुनाव में वे हार गए। वे छात्रसंघ के पराजय से इस कदर आहत हुए कि उन्होंने अपने मामा महंत अवैद्यनाथ को पत्र लिखकर गोरखपुर बुलाने का आग्रह किया और गोरखपुर पहुंच गए। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अजयसिंह बिष्ट से योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए।