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  4. When Kashmir experiences bone chilling cold, Then these special vegetables are useful
Last Modified: बुधवार, 8 जनवरी 2025 (18:23 IST)

जब कश्मीर में पड़ती है हाड़ गलाने वाली ठंड, तब काम आती हैं ये 'खास' सब्जियां

Kashmir
Bone chilling cold in Jammu and Kashmir: 'होख स्यून' की पारंपरिक प्रथा, धूप में सुखाई गई सब्जियों को संरक्षित करने और खाने की एक विधि, चिल्ले कलां के दौरान कश्मीरी परिवारों का एक अभिन्न अंग बनी हुई है, जो इस क्षेत्र में सबसे ठंडी 40 दिवसीय सर्दियों की अवधि है। होख स्यून में सूखी सब्जियों को गर्म पानी में भिगोना शामिल है, जब तक कि वे नरम न हो जाएं, इसके बाद उन्हें तेल और मसालों के साथ पकाया जाता है। यह सदियों पुरानी परंपरा, जो अभी भी ग्रामीण और शहरी कश्मीर दोनों में प्रचलित है। कठोर सर्दियों के दौरान परिवारों को खुद को बनाए रखने में मदद करती है।
 
बांदीपोरा की निवासी नसरीन बेगम ने इस प्रथा के महत्व को समझाते हुए बताया कि हम गर्मियों के दौरान शलजम, बैंगन और टमाटर जैसी सब्जियां सुखाते हैं। ये सर्दियों के दौरान आवश्यक हो जाती हैं जब ताजी सब्जियां कम होती हैं और ये गर्मियों की गर्मी को हमारे भोजन में ले आती हैं। बारामुला के गुलाम हसन जैसे किसान भी इस परंपरा में आर्थिक लाभ देखते हैं। वे बताते थे कि मैं सर्दियों के बाजार में नादेर हचे (कमल के तने) और अल-हचे (बोतल लौकी) जैसी सूखी सब्जियां बेचता हूँ। हसन ने बताया कि गर्मियों में ताजा उपज की तुलना में उन्हें बेहतर कीमत मिलती है।
 
शहरी क्षेत्रों में, श्रीनगर में अब्दुल रशीद जैसे विक्रेता बढ़ती मांग को पूरा कर रहे हैं। वे कहते थे कि हर किसी के पास अब घर पर सब्जियां सुखाने का समय नहीं है, इसलिए हम बाजारों में स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं। सूखे टमाटर, पालक और मछली जैसे होख स्यून दिसंबर से फरवरी तक लोकप्रिय आइटम हैं। स्थानीय निवासी होख स्यून को इसकी व्यावहारिकता और स्वाद के लिए महत्व देते हैं। कुपवाड़ा के एक दुकानदार फारूक अहमद का कहना था कि जब बाहर बर्फ गिर रही हो तो सूखे पालक की करी की एक गर्म प्लेट के बारे में कुछ आरामदायक होता है। यह मुझे मेरे बचपन की याद दिलाता है।
 
होख स्यून का स्वाद अलग : कंगन की शाइस्ता अख्तर बताती थीं कि भले ही ताजी सब्जियां पूरे साल उपलब्ध हों, लेकिन होख स्यून का स्वाद अलग है। यह हमें हमारी जड़ों और उन सर्दियों से जोड़ता है, जिनमें हम बड़े हुए हैं। होख स्यून की परंपरा बांदीपोरा, बारामुला और कुपवाड़ा जैसे क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित है, जहां बैंगन, लौकी, पालक, शलजम और टमाटर जैसी सब्जियां आमतौर पर धूप में सुखाई जाती हैं। करगिल, लेह और जम्मू जैसे अन्य क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान सूखी सब्जियों की मांग अधिक रहती है। स्थानीय निवासियों ने ठंड के दिनों में शरीर को गर्म रखने में इनकी भूमिका का हवाला देते हुए इन सब्जियों के प्रति अपनी प्राथमिकता व्यक्त की।
 
बारामुला के निवासी मोहम्मद शफी के बकौल, चिल्ले कलां के दौरान हमारे घर में सूखी सब्जियां बहुत जरूरी होती हैं। वे बताते थे कि हम आमतौर पर सप्ताह में कम से कम एक बार रुवांगन हचे (सूखे टमाटर) और अल-हचे (लौकी) का सेवन करते हैं। हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञ धूप में सुखाई गई सब्जियों को संयमित मात्रा में खाने की सलाह देते हैं।
 
वे कहते थे कि सप्ताह में एक या दो बार धूप में सुखाई गई सब्जियां खाना सुरक्षित है, लेकिन उनकी तैयारी और भंडारण में सावधानी बरतनी चाहिए। विशेषज्ञों का कहना था कि फफूंद वाली अनुचित तरीके से सुखाई गई सब्जियां स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा कर सकती हैं, जिसमें हानिकारक विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना भी शामिल है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala