क्या होता है आरक्षित जातियों में क्रीमी लेयर, SC आरक्षण पर क्या बोले CJI बीआर गवई
What is creamy layer in reservation: भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने एक बार फिर यह कहकर बहस छेड़ दी है कि वह अनुसूचित जातियों के आरक्षण में क्रीमी लेयर को शामिल नहीं करने के पक्ष में हैं। हालांकि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण में क्रीमी लेयर का सिद्धांत अभी तक आधिकारिक तौर पर लागू नहीं किया गया है, लेकिन यह ओबीसी में लागू है।
कौन आता है क्रीमी लेयर में : दरअसल, क्रीमी लेयर (Creamy Layer) से तात्पर्य ओबीसी समुदाय के उन सदस्यों से है, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्नत हो चुके हैं। यह अवधारणा ओबीसी वर्ग में इसलिए लाई गई ताकि आरक्षण का लाभ वास्तव में सबसे पिछड़े और जरूरतमंद लोगों तक पहुंच सके, न कि केवल उसी वर्ग के उन संपन्न परिवारों तक जो पहले ही आगे बढ़ चुके हैं। वर्तमान में, जिन परिवारों की कुल वार्षिक आय एक निश्चित सीमा से अधिक है, वे क्रीमी लेयर में आते हैं। यह सीमा समय-समय पर संशोधित होती रहती है और वर्तमान में यह आय सीमा 8 लाख प्रति वर्ष है। इसे आखिरी बार 2017 में संशोधित किया गया था।
ऐसे बच्चों के माता-पिता जो संवैधानिक पदों पर हैं या केंद्र/राज्य सरकार की सेवाओं में ग्रुप 'A' या समकक्ष अधिकारी के रूप में सीधी भर्ती से नियुक्त हुए हैं या जिनके दोनों माता-पिता ग्रुप 'B' अधिकारी हैं, वे भी क्रीमी लेयर में आते हैं, भले ही उनकी आय सीमा से कम हो। जो व्यक्ति क्रीमी लेयर के अंतर्गत आते हैं, उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है।
हालांकि समय-समय पर क्रीमी लेयर को लेकर बहस होती रहती है और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सिद्धांत को SC/ST पर लागू करने के पक्ष में मत व्यक्त किए हैं। ओबीसी वर्ग में यह अवधारणा इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार (1992) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लागू हुई थी।
क्या कहना है सीजेआई का : दरअसल, सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने एक बार फिर कहा है कि वह अनुसूचित जातियों के आरक्षण में क्रीमी लेयर को शामिल नहीं करने के पक्ष में हैं। उन्होंने कहा कि आरक्षण के मामले में एक आईएएस अधिकारी के बच्चों की तुलना एक गरीब खेतिहर मजदूर के बच्चों से नहीं की जा सकती। जो ओबीसी वर्ग पर लागू होता है, वही अनुसूचित जातियों पर भी लागू होना चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर मेरे फैसले की व्यापक रूप से आलोचना हुई है।
उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति गवई ने 2024 में भी कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच भी क्रीमी लेयर की पहचान करने तथा उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं देने के लिए एक नीति बनानी चाहिए। जस्टिस गवई ने कहा कि मेरा अब भी मानना है कि जजों से सामान्यतः अपने फैसलों को सही ठहराने की अपेक्षा नहीं की जाती है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala