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Written By निष्ठा पांडे
Last Updated : मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021 (21:37 IST)

Ground Report : रूला रहा है तपोवन जल विद्युत परियोजना के बाहर पसरा तबाही का मंजर, अपनों को तलाश रहीं हैं आंखें

Ground Report : रूला रहा है तपोवन जल विद्युत परियोजना के बाहर पसरा तबाही का मंजर, अपनों को तलाश रहीं हैं आंखें - Uttarakhand glacier burst Tapovan Hydroelectric Project
तपोवन। उत्तराखंड के तपोवन जल विद्युत परियोजना के बाहर पसरा तबाही का मंजर रह-रहकर लोगों को रुला रहा है। उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से आस-पास के इलाकों में काफी तबाही हुई है। इस आपदा में तपोवन-रैणी क्षेत्र में स्थित ऊर्जा परियोजना में काम करने वाले करीब 197 लोग अब भी लापता हैं।

इस घटना के चपेट में कितने स्थानीय आए, इसकी अभी पूरी जानकारी तक नहीं मिली है। स्थानीय ग्रामीणों के बारे में पता लगाने गोनों में पटवारियों कों सर्वे करने के काम में लगाया गया है।  तबाही में जौनसार बावर के 9 युवाओं के लापता होने की आशंका है।

इनमें विक्रम सिंह (30) पुत्र नारायण सिंह निवासी पाटा, संदीप चौहान (26) पुत्र ज्वारसिंह निवासी पंजिया, जीवन सिंह (24) पुत्र ज्वारसिंह निवासी पंजिया, हर्ष चौहान (24) पुत्र पूरण सिंह निवासी पंजिया, कल्याण सिंह (34) पुत्र मल सिंह निवासी पंजिया, जगदीश तोमर (20) पुत्र धूमसिंह निवासी साहिया, अनिल (26) पुत्र थेपा निवासी ददोली, अनिल (26) पुत्र भगतू निवासी ददोली, सरदारसिंह (35) पुत्र जुहिया निवासी फटेऊ लापता हैं।

ऋषिगंगा प्रोजक्ट में काम करने वाले जौनसार के नौ युवाओं का कोई पता नहीं है। सभी के फोन स्विच ऑफ जा रहे हैं। लापता युवकों के परिजन घटनास्थल पर पहुंच चुके हैं, लेकिन इन लोगों का अब तक पता नहीं चला। ऋषिगंगा और धौलीगंगा में बीते रोज आई बाढ़ से नदी तट के आसपास रहने वाले कई परिवारों के दुखों की रात की कोई सुबह नहीं है।

आपदा के दिन जंगल चारा लेने और पशुओं को चराने के लिए गए कई लोग वापस नहीं लौटे। तपोवन गांव की एक मां-बेटी बाढ़ के बाद से गायब हैं जबकि करछों के एक पिता-पुत्र का भी अब तक पता नहीं है। बाढ़ स्थानीय लोगों की करीब 200 बकरियां को भी लील गई हैं।

रैणी के प्रधान भवानसिंह बताते हैं कि गांव की 80 वर्षीय अमृता देवी 20 बकरियों के साथ रैणी पल्ली पार के जंगल में गई थीं। घटना के दिन से वह वापस नहीं लौंटी हैं। गांववालों को डर है कि कहीं वे बाढ़ की चपेट में न आ गई हो।  बकरी और खच्चर लेकर वनों में गए कई ग्वालों का पता नहीं चला है। करछों गांव के कुलदीपसिंह और उनके बेटे आशुतोष का भी पता नहीं चल रहा है। ये सभी लोग घटना के दिन जंगल में घास लकड़ी लेने और बकरियों के साथ थे।

रैणी में कार्यरत पुलिसकर्मी मनोज चौधरी और बलबीरसिंह भी घर नहीं लौटे। स्थानीय लोगों ने बताया कि तपोवन की सरोजनी देवी और उनकी बेटी अंजलि भी घटना के दिन जंगल गई थी। तब से वो भी घर नहीं लौटी हैं। 
तेज लहरें आईं और मां-बेटी को बहा ले गईं :  रिंगी गांव की कमला देवी बाढ़ की चर्चा करते हुए आंखों में आंसू भर लाती हैं। वे बताती हैं कि हमारे गांव की सरोजनी और उनकी बेटी अंजलि उस दिन साथ ही थीं। लक्ष्मी देवी और मनोरमा देवी भी उस दिन उनके साथ ही नदी के पास थीं। वो दोनों नदी के ज्यादा करीब थीं। मेरी आंखों के सामने ही दोनों महिलाओं को बाढ़ की लहरों ने लील डाला। पलभर का मौका तक उन्हें संभलने के लिए नहीं मिला। जल विद्युत परियोजना के बाहर नदी में आई गाद, रेत और मिट्टी चारों ओर बिखरी पड़ी है। 
अंधेरी सुरंग में जिंदगी की तलाश : अंधेरी सुरंग में जिंदगी तलाशने के लिए रेस्क्यू अभियान देर रात तक चलाया जा रहा है। सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, प्रशासन, पुलिस समेत सेवा इंटर नेशनल के स्वयं सेवी 24 घंटे सुरंग के बाहर सेवा, खोजबीन और राहत बचाव अभियान में लगे  हैं। टनल के भीतर कई मीटर तक टनों कीचड़ ही कीचड़ होने से टनल के भीतर एक कदम उठाना जोखिम उठाने  से कम नहीं। 
 
एडीआरएफ के कमांडेंट नवनीत भुल्लर की कमान में रेस्क्यू टीम टनल से कीचड़ को हटाकर भीतर फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए जूझ रही है। 80 मीटर तक टनल को साफ कर लिया गया है। आगे गाद टनल की छत तक भरी है।  रेस्क्यू अभियान को नेवी टीम का साथ भी मिल गया है। तपोवन विद्युत सुरंग में फंसे 35 लोगों की तलाश के लिए युद्ध स्तर पर कार्य हो रहा है। यह सुरंग 3 मीटर चौड़ी है। इसके प्रवेश द्वार से एक बार में एक ही मशीन अंदर जा सकती है। 
रैणी गांव में मलारी को जोड़ने वाला वाहन पुल बहने और सड़क में हजारों टन मलबा जमा होने  के बाद रैणी में रेस्क्यू और नए पुल निर्माण आदि का जिम्मा बीआरओ के शिवालिक प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर एएस राठौर ने संभाल रखा है। चीफ इंजीनियर राठौर ने बताया कि यहां पर मलबा हटाने और नई सड़क और वैली ब्रिज बनाने का कार्य चल रहा है। इसमें अभी कुछ दिन लग सकते हैं।
 
रैणी गांव में बीते रविवार को आए जलजले में मलारी को जोड़ने वाला वाहन पुल बह गया था। पैंग मुरंडा, जुआ ग्वाड़, जगजू, पल्ला रैणी आदि गांव देश दुनिया से अलग-थलग पड़ गए हैं। इन गांवों को जोड़ने वाले सारे पुल बह गए हैं और रास्ते टूटे हैं। गांव के लोगों को सहायता की दरकार है।
मुख्यमंत्री ने लिया स्थिति का जायजा : मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्रसिंह रावत ने आपदा प्रभावित सीमांत गांव रैणी एवं लाता जाकर वहां की स्थिति का जायजा लिया। मुख्यमंत्री ने स्थानीय ग्रामीणों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं की जानकारी ली और हरसंभव सहायता के प्रति आश्वस्त किया।

उन्होंने जिलाधिकारी चमोली को निर्देश दिए कि कनेक्टीवीटी से कट गए गांवों में आवश्यक वस्तुओं की कमी न रहे। रविवार को तपोवन क्षेत्र में हुई भीषण त्रासदी में जोशीमठ ब्लॉक के लगभग 1 दर्जन गांवों का सड़क से सम्पर्क टूट गया था।
 
इससे पूर्व मुख्यमंत्री ने जोशीमठ में आईटीबीपी अस्पताल में आपदा में घायल हुए लोगों से मिलकर उनका हालचाल जाना। मुख्यमंत्री ने चिकित्सकों से घायलों के ईलाज के बारे में जानकारी प्राप्त की।
 
गौरतलब है कि सोमवार देर सांय मुख्यमंत्री तपोवन जोशीमठ पहुंचे थे। वहां उन्होंने आपदा राहत कार्यों का जायजा लिया और राहत कार्यों में लगे सेना, आईटीबीपी, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, पुलिस के जवानों का उत्साहवर्धन किया। 

मुख्यमंत्री ने सोमवार को ही देर सांय विभिन्न अधिकारियों के साथ बैठक कर पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन की समीक्षा की थी। मुख्यमंत्री ने तपोवन, जोशीमठ में ही रात्रि प्रवास किया था। आपदा में सड़क पुल बह जाने के कारण नीति वैली के जिन 13 गांवों से संपर्क टूट गया है उन गांवों में जिला प्रशासन चमोली द्वारा हैलीकॉप्टर के माध्यम से राशन, मेडिकल एवं रोजमर्रा की चीजें पहुंचाई जा रही है।

गांवों में फंसे लोगों को राशन किट के साथ 5 किलो चावल, 5 किग्रा आटा, चीनी, दाल, तेल, नमक, मसाले, चायपत्ती, साबुन, मिल्क पाउडर, मोमबत्ती, माचिस आदि राहत सामग्री हैली से भेजी जा रही हैं। आपदा प्रभावित क्षेत्र के साथ ही अलकनन्दा नदी तटों पर जिला प्रशासन की टीम लापता लोगों की खोजबीन में जुटी हैं।
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