UN की रिपोर्ट में चेतावनी, भारत में चलेगी प्रचंड लू, होगी तेज बारिश और आएंगे भयंकर चक्रवाती तूफान...
मुख्य बिंदु
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पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा
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हिंदुकुश की पहाड़ियों में मौजूद ग्लेशियरों सिकुड़ेंगे या पिघल जाएंगे
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आगामी दशकों के दौरान प्रचंड लू, तेज बारिश और भयंकर चक्रवाती तूफान आने की आशंका
संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आने वाले दशकों में भारत में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से भारत में चलेगी प्रचंड लू, होगी तेज बारिश और भयंकर चक्रवाती तूफान आएंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पृथ्वी की औसत सतह का तापमान, साल 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। ये बढ़ोतरी पूर्वानुमान से एक दशक पहले ही जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग तेज हो रही है और इसके लिए साफ तौर पर मानव जाति ही जिम्मेदार है। इसे मानवता के लिए 'कोड रेड' कहा गया है।
195 देशों के 234 वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय उपमहाद्वीप में 1850 से 1900 के बीच के मुकाबले औसत तापमान में पहले ही उम्मीद से ज्यादा बढ़ोतरी हो चुकी है। भीषण गर्मियों का समय बढ़ा है और तेज सर्दी का वक्त कम हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुकुश की पहाड़ियों में मौजूद ग्लेशियरों के सिकुड़ने का सिलसिला जारी रहेगा। बर्फ की मौजूदगी और ऊंचाई सीमित होती जाएगी। इलाके में भारी बारिश से बाढ़, भूस्खलन के साथ झीलों से अचानक पानी का बहाव होने की आशंका बढ़ेगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अगले कुछ दशकों के दौरान प्रचंड लू, तेज बारिश और भयंकर चक्रवाती तूफान आने की आशंका है। देश में सूखे के हालात पैदा होंगे और साथ बारिश होने के पैटर्न में भी बड़ा बदलाव दिखाई देगा। दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशियाई मानसून वायु प्रदूषण की वजह से पहले ही कमजोर हो चुका है। वहीं हिंद महासागर का जल स्तर बाकी दुनिया के मुकाबले कहीं तेजी से बढ़ा है। इससे तटीय इलाकों को नुकसान हो रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, गर्मी बढ़ने के साथ, भारी वर्षा की घटनाओं से बाढ़ की आशंका और सूखे की स्थिति का भी सामना करना होगा। अगले 20-30 वर्षों में भारत में आंतरिक मौसमी कारकों के कारण बारिश में बहुत इजाफे की बात नहीं है मगर 21वीं सदी के अंत तक सालाना और ग्रीष्मकालीन बारिश, दोनों बढ़ेंगे।
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान में वैज्ञानिक स्वपना पणिकल ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा कि उत्सर्जन को कम करके अब ग्लेशियरों को कम होने से नहीं रोका जा सकता क्योंकि वह बहुत धीमी प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि मौसम प्रणाली में ग्लेशियर सबसे धीमी प्रतिक्रिया करने वाले हिस्से हैं। इसलिए अब तापमान की मौजूदा दर से ग्लेशियरों को कम होने से रोकने की उम्मीद नहीं कर सकते। अगर हम उत्सर्जन को रोक भी दें और वैश्विक तापमान में वृद्धि डेढ़ डिग्री तक सीमित भी कर दें तो भी हम ग्लेशियर को और कम होते देखेंगे।
ऑस्ट्रेलिया में 4 डिग्री बड़ा तापमान : ऑस्ट्रेलिया एक ऐसे व्यापक और तीव्र जलवायु परिवर्तन का अनुभव कर रहा है, जैसा पिछले हजारों सालों में नहीं देखा गयाह है और इसके प्रभाव से सदी में 4 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक गर्म हो सकता है।
सोमवार को जारी किए गए आकलन में जंगलों में आग, बाढ़ और सूखे जैसी चरम सीमाओं में अभूतपूर्व वृद्धि की भी चेतावनी दी गई है। लेकिन इसका कहना है कि उत्सर्जन में गहरी और तीव्र कटौती करने से ऑस्ट्रेलिया और दुनिया को सबसे गंभीर पृथ्वी ताप और इससे जुड़े नुकसान से बचाया जा सकता है।