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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 9 नवंबर 2019 (09:21 IST)

TOP - 20 प्वाइंट से समझें अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की पूरी इनसाइड स्टोरी

TOP - 20 प्वाइंट से समझें अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की पूरी इनसाइड स्टोरी - TOP-20 Ponit on Ayodhya Ram mandir Andolen
अयोध्या राममंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हर कोई राममंदिर आंदोलन की पूरी इनसाइड स्टोरी जानना चाह रहा है। अयोध्या में राममंदिर को लेकर कैसे देश में एक आंदोलन खड़ा हुआ और कैसे 1992 में बाबरी का विध्वंस के बाद पूरा मामला कोर्ट के दरवाजे तक पहुंचा।  अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन से जु़ड़े ऐसे 20 अहम पड़ाव जिसने पूरे आंदोलन को अपने लक्ष्य तक पहुंचाया।  
 
1.अयोध्या में राममंदिर को लेकर 1983 में एक जनआंदोलन की अवधारणा सबसे पहले सामने आई। परमहंस रामचंद्र दास, प्रोफेसर राजेंद्र खन्ना (रज्जू भैय्या) और दाऊद दयाल महंत ने जनअंदोलन की बात कही। 
 
2. एक साल बाद 1984 में जब दिल्ली में पहली धर्म संसद का आयोजन हुआ उसमें फैसला किया गया है कि अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्मस्थल को शांतिपूर्ण जनआंदोलन के जरिए मुक्त कराया जाएगा। इसके लिए इसी साल रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया। 
 
3.अयोध्या में राममंदिर में लगे ताले खुलवाने के लिए 1984 के सितंबर -अक्टूबर में बिहार के सीतामढ़ी से अयोध्या तक पहली जनजागरण यात्रा शुरु की गई।
 
4.19 जनवरी 1986 को लखनऊ में हुए धार्मिक सम्मेलन में तय किया गया कि 8 मार्च (महाशिवरात्रि ) तक राममंदिर का ताला नहीं खोला गया तो तालों को तोड़ दिया जाएगा।  
 
5.1989 में हिमाचाल प्रदेश के पालमपुर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के राममंदिर आंदोलन से जुड़ने का निर्णय लिया गया है। 
 
6. 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और राष्ट्रीय मोर्चा गठबंधन के प्रमुख नेता के रुप में वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने और भाजपा और वामदलों ने बाहर से समर्थन किया। 
 
7. अयोध्या में रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े नेताओं ने 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा करने का निर्णय लिया।
 
8. भाजपा के राममंदिर आंदोलन से जुड़ने के बाद भाजपा ने रामरथ यात्रा के निकालने का निर्णय लिया। रामरथ यात्रा का प्रस्ताव भाजपा नेता प्रमोद महाजन ने सुझाया और यात्रा प्रारम्भ करने का दिन 25 सितंबर दीनदयाल जयंती रखा गया। रथयात्रा के 30 अक्टूबर 1990 के अयोध्या पहुंचकर कारसेवा में शामिल होने का निर्णय लिया गया।
 
9.भाजपा की रथयात्रा गुजरात के सौराष्ट्र के सोमनाथ से शुरु होकर महाराष्ट्र होते हुए अयोध्या पहुंचने का लक्ष्य रख गया। लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में निकलने वाली रामरथ यात्रा में नरेंद मोदी, प्रमोद महाजन, राजमाता विजयाराजे सिंधिया और सिकंदर बख्त थे।
 
10. भाजपा की रामरथ यात्रा जब 24 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में प्रवेश करने वाली थी उसके ठीक पहले 23 अक्टूबर को समस्तीपुर में बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यावद के निर्देश पर यात्रा को रोक दिया गया और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। 
 
11. लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने केंद्र की वीपी सिहं सरकार से समर्थन वापस ले लिया। वीपी सिंह की सरकार गिर गई और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने कांग्रेस ने समर्थन दिया। 
 
12.पहले से तय समय 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में कारसेवा शुरु हुई, इसके दौरान कारसेवकों का एक जत्था जब जन्मभूमि की ओर जा रहा था उस पर पुलिस ने फायरिंग की। जिसमें कई कारसेवकों की मौत हुई। इसे बाद 2 नवंबर को फिर कारसेवक बाबरी मस्जिद की ओर बढ़े फिर गोली चलाई जिसमें कई कारसेवकों की मौत।  
 
13.1991 में देश में फिर आम चुनाव हुए और भाजपा को राममंदिर आंदोलन से जुड़ने और आंदोलन की अगुवाई करने का फायदा मिला और सीधे इसकी सीटों की संख्या 119 तक पहुंच गई। 
 
14. 30 अक्टूबर 1992 को धर्मसंसद में अयोध्या में 6 दिसंबर को कारसेवा प्रारंभ करने की घोषणा की गई।
15.अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए लोगों को एकजुट करने के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने वाराणसी से और मुरली मनोहर जोशी ने मथुर से अलग-अलग यात्रा शुरु की।
 
16. 6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा (3 गुंबद वाला) ढहाया जा रहा था तो लालकृष्ण आडवाणी के साथ प्रमोद महाजन, उमाभारती अयोध्या में रामकथा कुंज की छत पर मौजूद थे। इससे पहले इन नेताओं ने कारसेवकों को संबोधित किया था।
 
17.लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा ‘मेरा देश मेरा जीवन’ के मुताबिक कारसेवा सुबह 10 बजे शुरु हुई और आखिरी गुंबद दोपहर 4.50 बजे गिरा दिया गया। 
 
18.विवादित ढांचा गिरने के बाद रात में अस्थाई मंदिर का निर्माण कर दिया गया। 
 
19.अयोध्या में विवादित ढांचा गिरते ही शाम 5.30 बजे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण ने इस्तीफा दे दिया और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 
 
20. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरे विवाद को लेकर अपना फैसला सुनाया। फैसले से अंसतुष्ट होकर केस से जुड़े पक्षकार सुप्रीमकोर्ट पहुंचे और अब सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने जा रहा है।   
 
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