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Last Updated :नई दिल्ली , शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024 (13:02 IST)

सुप्रीम कोर्ट ने दी व्यवस्था, बाल विवाह रोकथाम कानून को पर्सनल लॉ नहीं कर सकते प्रभावित

सुप्रीम कोर्ट ने दी व्यवस्था, बाल विवाह रोकथाम कानून को पर्सनल लॉ नहीं कर सकते प्रभावित - Supreme Court's decision on child marriage and personal law
Supreme Court's decision: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को 'पर्सनल लॉ' (personal laws) प्रभावित नहीं कर सकते और बचपन में कराए गए विवाह अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का विकल्प छीन लेते हैं। भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला (Pardiwala) और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए।ALSO READ: CBI ने सुप्रीम कोर्ट को किया सूचित, कोलकाता रेप मर्डर मामले की जांच अत्यंत गंभीरता से जारी
 
प्रधान न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के कानून को 'पर्सनल लॉ' के जरिए प्रभावित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इस तरह की शादियां नाबालिगों की जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं।ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता बरकरार
 
पीठ ने कहा कि अधिकारियों को बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उल्लंघनकर्ताओं को अंतिम उपाय के रूप में दंडित करना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और इसका उन्मूलन सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम का स्थान लिया।ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति, आंखों से हटी पट्‌टी, हाथ में संविधान
 
पीठ ने कहा कि निवारक रणनीति अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बनाई जानी चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब बहुक्षेत्रीय समन्वय होगा। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम इस बात पर जोर देते हैं कि इस मामले में समुदाय आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta