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  4. Supreme Court gave this order in the matter of provision of DSPE law
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Last Modified: नई दिल्ली , मंगलवार, 12 सितम्बर 2023 (00:41 IST)

DSPE कानून के प्रावधान मामले में Supreme Court ने दिया यह आदेश...

Supreme court
Provision case of DSPE Act : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को फैसला सुनाया कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम का वह प्रावधान 11 सितंबर, 2003 को इसे शामिल किए जाने की तारीख से रद्द हो जाएगा, जिसके तहत केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के पद के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में जांच शुरू करने से पहले केंद्र की मंजूरी को अनिवार्य बनाया गया था।
 
सर्वसम्मत फैसले में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत का 6 मई, 2014 का फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा। इस फैसले के तहत शीर्ष अदालत ने डीएसपीई अधिनियम, 1946 की धारा 6-ए (1) को रद्द कर दिया था, जो भ्रष्टाचार के मामलों में अधिकारियों को छूट प्रदान करती थी।
 
पीठ ने कहा कि संसद ने कानून में संशोधन किया है और 26 जुलाई, 2018 से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में धारा 17ए शामिल की है, जिसमें मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की वैधानिक आवश्यकता प्रदान की गई है, लेकिन सरकारी सेवकों के वर्गीकरण के बिना।
 
एक तरह से भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत मामलों में सरकारी अधिकारियों को मिले संरक्षण को केंद्र द्वारा 2018 में एक संशोधन के माध्यम से पुनर्जीवित किया गया था और यह प्रावधान कानून की किताब में बना हुआ है। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एएस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी भी शामिल थे।
 
पीठ ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया कि क्या छह मई 2014 को संविधान पीठ द्वारा की गई इस घोषणा को संविधान के अनुच्छेद 20 के संदर्भ में पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जा सकता है, जिसके अनुसार डीएसपीई अधिनियम की धारा 6ए असंवैधानिक है।
 
संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में सुरक्षा प्रदान करता है। उच्चतम न्यायालय ने मई 2014 को दिए अपने फैसले में कानून की धारा 6ए(1) को अमान्य करार दिया था और कहा था कि धारा 6ए में दी गई छूट में भ्रष्ट लोगों को बचाने की प्रवृत्ति है।
 
सोमवार को दिए गए अपने फैसले में पीठ ने कहा कि यह बिलकुल स्पष्ट है कि एक बार किसी कानून को संविधान के भाग-3 का उल्लंघन करते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है, तब संविधान के अनुच्छेद 13(2) और आधिकारिक घोषणाओं द्वारा इसकी व्याख्या के मद्देनजर इसे प्रारंभ से ही निरस्त और अप्रवर्तनीय माना जाएगा।
 
पीठ ने अपने 106 पन्नों के आदेश में कहा, इस प्रकार सुब्रमण्यम स्वामी के मामले में संविधान पीठ द्वारा की गई घोषणा (6 मई, 2014 को) पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगी। डीएसपीई अधिनियम की धारा 6ए को इसे शामिल किए जाने की तारीख यानी 11 सितंबर, 2003 से लागू नहीं माना जाता है।
 
शीर्ष अदालत ने कहा कि मई 2014 का फैसला सुनाते समय संविधान पीठ ने यह तय नहीं किया था कि अधिनियम की धारा 6ए(1) को संविधान के अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता) का उल्लंघन घोषित करने का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा या यह आगे की तारीख से लागू होगा।
 
इसने तीन प्रश्नों पर गौर किया, जिन पर विचार करने की आवश्यकता थी-क्या डीएसपीई अधिनियम की धारा 6ए प्रक्रिया का हिस्सा है या यह दोषसिद्धि या सजा का प्रावधान करती है, क्या संविधान के अनुच्छेद 20(1) का धारा 6ए को असंवैधानिक घोषित करने के संदर्भ में कोई प्रभाव या प्रासंगिकता होगी।
 
तीसरा सवाल है, डीएसपीई अधिनियम की धारा 6ए को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन घोषित करने का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा या यह असंवैधानिक घोषित होने की तारीख से भावी रूप से लागू होगा? शीर्ष अदालत ने माना कि अधिनियम की धारा 6ए केवल वरिष्ठ सरकारी सेवकों को सुरक्षा के रूप में प्रक्रिया का एक हिस्सा है और यह कोई नया अपराध नहीं जोड़ती है और न ही सजा को बढ़ाती है।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)