सिमी आतंकी मुठभेड़ पर बवाल शर्मनाक! राजनीति से बाज आओ...
सिमी आतंकवादियों से मुठभेड़ को नेताओं ने जिस तरह से राजनीतिक रंग दिया उससे न सिर्फ पुलिसकर्मियों के मनोबल पर बुरा असर पड़ा है बल्कि एक शर्मनाक स्थिति भी खड़ी कर दी है। जेल में पुलिस के जवान की हत्या के बाद फरार होने वाले आतंकियों के समर्थन में जिस तरह की बातें हो रही है उससे ऐसा प्रतित हो रहा है मानो मारे गए आतंकी सिमी के सदस्य नहीं आम इंसान थे।
आतंकियों का समर्थन कर रहे लोग यह भी भूल गए कि देश में आंतकी हमले की आशंकाओं को देखते हुए हाईअलर्ट घोषित किया गया है और भागने वाले आतंकी किसी भी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं। मुठभेड़ जाली है या असली यह तो जांच का विषय और इसके नतीजे आने पर ही इसकी सत्यता का पता चल सकेगा लेकिन बड़ी बात यह है कि चारों ओर चर्चा केवल सिमी आतंकियों की हो रही है कोई उस शहीद जवान की बात नहीं कर रहा है जिसकी बेटी की आठ दिन बाद शादी है।
इससे पहले भी कई सिमी आतंकी जेल तोड़कर फरार हो चुके हैं। अगर 2013 में फरार हुए आतंकियों को भी मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया होता तो आज देश में सिमी की कमर टूट चुकी होती। दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेता का यह बचकाना सवाल कि हमेशा मुसलमान ही जेल तोड़कर क्यों भागते हैं, हिंदू क्यों नहीं? बड़ा अचरज पैदा करता है। जेल तोड़कर भागने वाले कब से हिंदू, मुसलमान हो गए? क्या कैदियों का भी जातियों का आधार पर वर्गीकरण जायज है? कम से कम आतंकियों और संदिग्ध आतंकियों को तो हम इस चश्में से न देखें।
यह सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि पुलिसकर्मी फरार बदमाश का पीछा करते समय यह सोचें की भागने वाला हिंदू है, मुस्लिम है या कोई ओर। हिंदू है तो उसके लिए अलग तरह से कार्रवाई और मुस्लिम है तो अलग रूप से। फिर तो लोग जवान की जाति पूछने को भी जायज मानेंगे। हिंदू ने गोली मारी या मुस्लिम ने।
अब इन नेताओं को कौन समझाए कि न तो पहली बार कोई बदमाश जेल से भागा है और न ही पहली बार किसी फरार व्यक्ति पर गोलियां चलाई गई है। पुलिस का तो काम ही समाज की सुरक्षा करते हुए अपराधियों को जेल पहूंचाना है, कई बार गोलीबारी होती है, कभी इसमें जवान शहीद होता है तो कभी बदमाश। अब नेताओं की तरह गोलियां तो इस तरह सवाल नहीं करती।
चार्ल्स शोभराज, शेरसिंह राणा, जैसे कई कुख्यात बदमाश पहले भी जेल तोड़कर भाग चुके हैं। 2014 में झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले से 15 कैदियों ने भागने की कोशिश की थी। इस दौरान हुई गोलीबारी में दो कैदी मारे गए थे और तीन अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे। 2002 में बिहार की जहानाबाद जेल में 150 कैदी फरार हो गए थे।