शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर भारत में उग्र प्रदर्शन, मोदी का पुतला फूंका
Written By
Last Modified: सोमवार, 18 नवंबर 2019 (23:58 IST)

नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर भारत में उग्र प्रदर्शन, मोदी का पुतला फूंका

Citizenship Amendment Bill | नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर भारत में उग्र प्रदर्शन, मोदी का पुतला फूंका
गुवाहाटी/शिलांग/आइज़ोल/ईटानगर/कोहिमा। प्रस्तावित 'नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019' के खिलाफ पूर्वोत्तर राज्यों में सोमवार को प्रदर्शन हुए और असम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला फूंका गया। विरोध रैलियां संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन निकाली गई हैं। इस विधेयक को इसी सत्र में पेश किए जाने की संभावना है।

गुवाहाटी में विभिन्न स्थानों पर धरने दिए गए और युवा संगठन एजेवाईसीपी ने राज्य के विभिन्न स्थानों पर मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का पुतला दहन किया। ये प्रदर्शन नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (एनईएसओ) और इसके घटक 'कृषक मुक्ति संग्राम समिति', 'असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद्' (एजेवाईसीपी) और 'लेफ्ट डेमोक्रेटिक मंच', असम समेत अन्य ने आयोजित किया था।

एनईएसओ के तहत क्षेत्र के छात्र संगठन आते हैं। एनईएसओ ने पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यपालों के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को नागरिकता (संशोधन) विधेयक के खिलाफ ज्ञापन भेजे। एनईएसओ और एएएसयू ने अन्य के साथ मिलकर गुवाहाटी के उज़ान बाजार में स्थित अपने मुख्यालय से राजभवन तक रैली निकाली और विधेयक के खिलाफ नारेबाजी की।

एनईएसओ और एएएसयू के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा, असम और पूर्वोत्तर अवैध बांग्लादेशियों के लिए डंपिग ग्राउंड नहीं है। असम समझौते के तहत हम पहले ही 1971 तक असम में अवैध तरीके से घुसने वाले हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही बांग्लादेशियों को अपना चुके हैं। हम अब उस साल के बाद असम में घुसने वालों को नहीं अपनाएंगे।

उन्होंने कहा, केंद्र सरकार 2014 को कट ऑफ तारीख तय करके 43 सालों में देश में घुसने वाले अवैध बांग्लादेशियों को असम पर थोपने की कोशिश कर रही है। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। हम इसका विरोध करते हैं। भट्टाचार्य ने कहा, यह आंदोलन असम और पूर्वोत्तर में चलता रहेगा। विधेयक के कानून बनने से बहुत सी समस्याओं के हल होने के असम के मंत्री हिमंत बिस्व सरमा और अन्य के दावे पर भट्टाचार्य ने कहा, वे भाजपा का वोट बैंक सुरक्षित रखना चाहते हैं।

वे (भाजपा) अवैध बांग्लादेशियों का वोट चाहते हैं। उनके पास दिल्ली (संसद) में संख्या बल है और वह विधेयक को हम पर थोपेंगे। उन्होंने कहा, हम नागरिकता संशोधन विधेयक को स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए हमने विधेयक के खिलाफ आंदोलन शुरू किया है। एएएसयू के अध्यक्ष दीपांक नाथ ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक असमी समुदाय को खत्म करने वाला है। यह असमी लोगों को विलुप्त कर देगा। यह और बांग्लादेशियों के असम में घुसने के लिए दरवाजे खोल देगा।

मेघालय में खासी स्टूडेंट्स यूनियन ने तीसरे सचिवालय के पास विवादित विधेयक के खिलाफ धरना दिया और कहा कि इसका समूचे क्षेत्र के लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मिजो जिरलाई पव्ल (एमजेडपी) ने विधेयक के खिलाफ सोमवार को आइजोल में एक रैली निकाली। एमजेडपी के नेताओं ने आशंका जताई कि अगर यह विधेयक कानून बना तो बांग्लादेश के चटगांव हिल्स ट्रैक्ट्स (सीएचटी) से अवैध रूप से मिजोरम आ गए चकमा समुदाय के हजारों लोग वैध हो जाएंगे।

इसने मिजोरम के राज्यपाल पीएस श्रीधरन पिल्लई को राजभवन में एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें उसने कहा कि वह प्रस्तावित नागरिकता (संशोधन) विधेयक का कड़ा विरोध करती है और मांग करती है कि पूर्वोत्तर राज्यों को इसके दायरे से बाहर रखा जाए। ईटानगर में एनईएसओ के घटक ऑल अरुणाचल स्टूडेंट्स यूनियन (एएपीएसयू) और अन्य संगठनों ने राजभवन के सामने विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन किया।

कोहिमा में ज्वाइंट कमेटी ऑन प्रिवेंशन ऑफ इल्लीगल इमीग्रेंट्स (जेसीपीआई) ने मंगलवार को इस मुद्दे पर नगालैंड में 18 घंटे का बंद बुलाया है। जेसीपीआई के संयोजक केजी चोपी और सचिव टी लोंगचार ने एक बयान में कहा कि इस विवादित विधेयक के कानून बनने के बाद यह समूचे पूर्वोत्तर की जनसांख्यिकी को हमेशा के लिए बदल देगा, जहां त्रिपुरा की तरह मूल निवासी अपनी ही भूमि पर अल्पसंख्यक हो जाएंगे।

इस विवादित विधेयक को इस साल 8 जनवरी को लोकसभा ने पारित कर दिया था, लेकिन यह राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका और इसकी मियाद समाप्त हो गई। यह विधेयक 7 साल तक भारत में रह चुके पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिन्दू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसियों को भारतीय नागरिकता देने की बात कहता है, भले ही उनके पास कोई दस्तावेज नहीं हो।
ये भी पढ़ें
कश्मीर में 105 दिनों से कैद राजनीतिक बंदियों का मामला फिर गर्माया