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Last Modified: नई दिल्ली , सोमवार, 29 मई 2023 (22:31 IST)

दिल्ली HC ने यासीन मलिक को जारी किया नोटिस, NIA ने दी थी निचली अदालत के फैसले को चुनौती

Yasin Malik
Notice issued to Yasin Malik : दिल्ली उच्च न्यायालय ने आतंकवाद के वित्त पोषण के एक मामले में अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मौत की सजा दिए जाने के अनुरोध वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की याचिका पर मलिक को सोमवार को एक नोटिस जारी किया। मलिक फिलहाल उम्रकैद की सजा काट रहा है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल एवं न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ ने मलिक को नौ अगस्त को उसके समक्ष पेश करने के लिए वारंट भी जारी किया। एनआईए की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि मामले को दुर्लभतम मानते हुए, आतंकवाद और पृथकतावादी गतिविधियों में लिप्त आरोपी को मौत की सजा दी जानी चाहिए।

मेहता ने कहा कि मलिक ने भारतीय वायुसेना के चार अधिकारियों की सनसनीखेज हत्या की और यहां तक कि तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कराया, जिसके कारण चार खूंखार अपराधियों को रिहा कर दिया गया, जिन्होंने मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए हमले की साजिश रची।

अदालत ने अपने आदेश में कहा, यह ध्यान में रखते हुए कि इस याचिका में इकलौते प्रतिवादी यासीन मलिक ने भारतीय दंड संहिता की धारा 121 के तहत आरोपों पर लगातार जुर्म कबूल किया है, जिसमें मौत की सजा के विकल्प का प्रावधान है। हम उसे नोटिस जारी करते हैं, जो जेल अधीक्षक द्वारा उसे दिया जाएगा।

आदेश में कहा गया कि अगली सुनवाई में उसे पेश करने के लिए वारंट जारी किया जाए। अदालत ने एनआईए के उस आवेदन पर भी मलिक को नोटिस जारी किया जिसमें मौजूदा अपील को फिर से दाखिल करने में देरी को माफ करने की मांग की गई थी। मेहता ने अदालत से देरी के लिए माफी का आग्रह करते हुए कहा कि तकनीकी समस्याओं का ऐसे मामलों में कोई असर नहीं होना चाहिए।

गौरतलब है कि 24 मई 2022 को एक निचली अदालत ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के मलिक को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम (यूएपीए) अधिनियम तथा भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत अपराधों में दोषी ठहराया था और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

मलिक ने यूएपीए सहित अन्य आरोपों पर जुर्म कबूला था, उसे दोषी करार दिया गया था और उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। एसजी मेहता ने अदालत के समक्ष कहा कि एनआई की याचिका दंड आदेश के खिलाफ एक अपील है।

उन्होंने कहा कि एक आतंकवादी को आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जा सकती क्योंकि वह अपना जुर्म कबूल चुका है और यह कह चुका है कि वह मुकदमे की कार्यवाही का सामना नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि आरोपी को मृत्युदंड से बचने के लिए यह हथकंडा अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसे पता है कि अगर उसने मुकदमे का सामना किया तो उसे मौत की सजा सुनाई जा सकती है।

मेहता ने कहा, इस तरह तो कोई भी आतंकवादी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देकर अपना जुर्म कबूल कर सकता है और अदालत कह सकती है कि चूंकि उसने अपराध स्वीकार कर लिया है, इसलिए उसे मृत्युदंड न देकर आजीवन कारावास की सजा दी जाती है।

उन्होंने कहा कि यहां तो अलकायदा के संस्थापक ओसामा बिन लादेन को भी जुर्म कबूल करने की अनुमति दे दी जाती और शायद इसीलिए अल कायदा के संस्थापक से निपटने का अमेरिका का तरीका सही था। इस पर अदालत ने कहा कि मलिक और लादेन की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि लादेन ने कभी मुकदमे का सामना नहीं किया और वह विदेशी संबंधों को प्रभावित करने वाले मामलों पर टिप्पणी नहीं करेगी।

अपनी दलील के दौरान, मेहता ने कहा कि मलिक प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान गया। वह पत्थरबाजी की घटनाओं में शामिल था और सोशल मीडिया पर यह अफवाह फैला रहा था कि सुरक्षा बल दमन कर रहे हैं।

एनआईए ने सजा को बढ़ाकर मौत की सजा किए जाने का अनुरोध करने वाली अपनी याचिका में कहा कि अगर इस प्रकार के खूंखार आतंकवादियों को जुर्म कबूलने के आधार पर मौत की सजा नहीं दी गई, तो सजा सुनाने की नीति का पूर्ण क्षरण होगा और आतंकवादियों को मौत की सजा से बचने का रास्ता मिल जाएगा।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)

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