अब अमरनाथ यात्रा का मोर्चा कश्मीर में
श्रीनगर। 2 जुलाई से जम्मू कश्मीर अब भक्तिमय होने जा रहा है। दो महीनों तक राज्य प्रशासन सभी कामकाज छोड़कर उन धार्मिक यात्राओं से जूझने जा रहा है जो कई बार भारी भी साबित हुई हैं। इनमें सबसे अधिक लम्बी और भयानक समझी जाने वाली अमरनाथ यात्रा है जिसको क्षति पहुंचाने के लिए अगर आतंकी कमर कस रहे हैं तो सुरक्षाबल भी।
अमरनाथ यात्रा समेत कई धार्मिक यात्राएं जुलाई और अगस्त के दौरान राज्य में संपन्न होती हैं। अधिकतर एक से 7 दिनों तक चलने वाली होती हैं मगर अमरनाथ यात्रा डेढ़ से दो महीने चलती है। मतलब दो महीनों तक राज्य प्रशासन की सांस गले में इसलिए भी अटकी रहती है क्योंकि आतंकी उसे क्षति पहुंचाने का कोई अवसर खोना नहीं चाहते हैं।
16 दिनों के बाद अमरनाथ यात्रा का पहला आधिकारिक दर्शन होगा। सेना समेत अन्य सुरक्षाबलों ने अभी से सुरक्षा का जिम्मा संभाल लिया है। हजारों केरिपुब जवानों को भी तैनात किया जा रहा है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर डेढ़ लाख से अधिक सुरक्षाकर्मी अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा में जुट जाएंगे फिर भी यह चिंता का विषय इसलिए बनी हुई है क्योंकि सूचनाएं और खबरें कह रही हैं कि आतंकी किसी भी कीमत पर इसे निशाना बनाना चाहते हैं।
सबसे अधिक खतरा 300 किमी लम्बे जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर आतंकी हमलों और बारूदी सुरंगों का है। यात्रा से पूर्व हाईवे पर तैनात रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) की संख्या कई गुना बढ़ा दी गई है। आरओपी की 70 पार्टियों को हाईवे पर तैनात किया है और प्रत्येक पार्टी के दो सैनिकों को 12 मीटर के हाईवे की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया है। इन आरओपी को प्रशिक्षित डॉग स्कवॉड के सुसज्जित किया गया है ताकि हाईवे पर लगाई गई किसी भी आईडी का पता लगाया जा सके। इन डॉग स्कवॉड के कुत्तों की खासियत है कि यह आईडी मिलते ही बैठ जाते हैं, जिससे सुरक्षाबलों को उस स्थान की निशानदेही करने में आसानी होती है।
सुरक्षा के चाक-चौबंद प्रबंध पिछले कुछ दिनों से मिल रही आतंकी धमकियों के मद्देनजर किए गए हैं। जानकारी के अनुसार, सेना ने कुछ संदेश पकड़े हैं, जिनमें वार्षिक अमरनाथ यात्रा व माता वैष्णोदेवी यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को निशाना बनाने की धमकी दी गई है। वार्षिक अमरनाथ यात्रा से पूर्व इस प्रकार की धमकियों को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। यह बात अलग है कि हिज्ब कमांडर बुरहान वानी ऐसी किसी धमकी से इनकार कर रहा है।
सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में एसओजी ने भी कुछ संदिग्ध लोगों को पकड़ा है, जिनसे जम्मू में आतंकी हमलों की सूचना मिली है। इस प्रकार की सभी जानकारियों को विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां साझा कर रही हैं और सुरक्षा का मुख्य जिम्मा सेना को सौंपा गया है। पहलगाम से गुफा और बालटॉल से गुफा तक के रास्तों पर आतंकी हमलों से बचाव का जिम्मा सही मायनों में भगवान भरोसे इसलिए है, क्योंकि इन पहाड़ों में सुरक्षा व्यवस्था के दावे हमेशा झूठे पड़ते नजर आए हैं।
अब राजमार्ग पर सेना, यात्रा मार्ग पर उसका साथ अन्य सुरक्षाबल दे रहे हैं तो जम्मू के बेस कैंप में सभी सुरक्षाबलों को एक साथ तैनात किया जाएगा। अधिकारी आप मानते हैं कि जम्मू के बेस कैंप में खतरा ज्यादा इसलिए है क्योंकि वहां से पाकिस्तान अधिक दूर नहीं है तो पुराना बेस कैंप शहर के बीचोंबीच होने के कारण खतरे से जूझता रहा है। ऐसे में अमरनाथ यात्रा कितनी सुरक्षित साबित होगी, इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।