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Written By नृपेंद्र गुप्ता

नरेन्द्र मोदी और वर्ष 2015: धुंधला होता उम्मीदों का आसमान...

नरेन्द्र मोदी और वर्ष 2015: धुंधला होता उम्मीदों का आसमान... - Narendra Modi, economy and 2015
2014 में प्रधानमंत्री मोदी की देश में लहर थी। हर जुबां पर केवल एक ही नाम था मोदी। उस वर्ष पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए, महंगाई घटी, नौकरियों की बहार आई, निवेशकों को यहां की परिस्थितियों ने रिझाया और मोदी का जादू मेक इन इंडिया से होते हुए मेड इन इंडिया तक जा पहुंचा। चारों ओर सकारात्मकता की लहर दिखाई दे रही थी। 
 
महंगाई, बेरोजगारी, सुशासन, कालाधन, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सवार होकर मोदी लहर के सहारे प्रधानमंत्री पद प्राप्त करने वाले नरेन्द्र मोदी लगता है 2015 में जनता से किए अपने वादे भूल गए। उनके राज में भी संप्रग सरकार की तरह ही जनता त्रस्त दिखाई दे रही है। महंगाई बढ़ रही है, रोजगार का पता नहीं है, ई-कॉमर्स ने छोटे-मोटे व्यापारियों के काम-धंधों में सेंध लगा दी है, कालेधन पर केवल बयानबाजी हो रही है और भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए लगता है सरकार को अभी बहुत लंबा सफर तय करना है। सरकार ने 2015 की विदाई से पहले आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 7-7.5 प्रतिशत कर दिया जो पहले 8.1-8.5 प्रतिशत था। 
 
मोदीजी के विदेश दौरे बढ़ते ही जा रहे हैं और हाल ही में बिहार चुनाव में पीएम मोदी की रैलियों और महागठबंधन तथा राजग के नेताओं के बीच हुए वाकयुद्ध को सुनकर ऐसा लगता है कि विकास को पीछे छोड़कर देश में केवल बयानबाजी और भाषणबाजी ही हो रही है। 2015 की कहानी, इन बिंदुओं की जुबानी...

महंगाई : लोकसभा चुनाव से पहले मोदीजी अपने हर भाषण में जनता से महंगाई कम करने का वादा करते थे। भाजपा के घोषणा पत्र में भी कहा गया था कि गरीब की सुनने व सोचने वाली सरकार होनी चाहिए। यह भी वादा किया गया था कि भाजपा सरकार में आई तो महंगाई काबू करने के लिए फंड बनाया जाएगा लेकिन यह क्या मोदी राज में जनता तो आवश्यक वस्तुओं के दाम कम होने का इंतजार ही करती रह गई और दाल के दाम 200 रुपए पार हो गए। चावल के दामों पर भी कालाबाजारियों की नजर लग गई और कई स्थानों पर हरा मटर 160 रुपए किलो त‍क पहुंच गया। टमाटर, आलू और प्याज के दाम सुन आम आदमी के मुंह का निवाला ही छिन गया।

जनता महंगाई से त्रस्त है और सरकारी मंत्री और अधिकारी कह रहे हैं कि महंगाई कम हो रही है। थोक मुद्रास्फीति के आंकड़ों को देखकर जनता दांतों तले अंगुलियां ही चबाने को मजबूर है। मोदी राज की तरह ही भाजपा शासित राज्यों में भी जनता पर महंगाई की मार कांग्रेस शासित राज्यों से ज्यादा पड़ गई है।
अगले पन्ने पर...कहां है नौकरियों की बहार
मोदीजी ने वादा किया था कि अगर वह प्रधानमंत्री बने तो यूपी, बिहार के लोगों को रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में नहीं जाना होगा। उनके अपने जिले में ही रोजगार की व्यवस्था कर दी जाएगी। वह जब जनता से कांग्रेस के 60 सालों का हिसाब मांगते थे और मोदी मॉडल के सहारे विकासित भारत के जो सपने युवाओं को दिखाते थे वैसा तो कहीं भी नहीं दिखाई दे रहा है।

मोदी राज में न तो देश के करोड़ों बेरोजगारों को रोजगार के नए अवसर मुहैया कराए गए न युवाओं में वह स्कील ही डेवलप हो पाई कि वह अपने बेरोजगार साथियों को रोजगार दे सके। पर्यटन स्थलों को विकसित कर उससे रोजगार उत्पन्न करने का उनका वादा भी चुनाव बाद ही हवा हो गया। हालांकि एक सर्वेक्षण में कहा गया कि आईटी और दूरसंचार क्षेत्र में नौकरियां बढ़ी है और 2016 में मोदी की नीतियों से जॉब सेक्टर में बूम आएगा।   
अगले पन्ने पर...एफडीआई को लेकर दौरे कई, जमीन पर प्रोजेक्ट नहीं
 

प्रधानमंत्री के विदेश दौरों को लेकर अकसर देश में सवाल उठते हैं। इसके जवाब में कहा जाता है कि वह जब विदेश दौरों पर जाते हैं तो देश में विदेशी निवेश आता है जिससे देश में विकास की गंगा बहेगी। इन डेढ़ वर्षों में मोदीजी कई देशों के दौरों पर गए, वहां की संसदों में भाषण दिए, वहां के भारतीयों को संबोधित किया, वहां की तकनीकों को देखा, बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुईं, अरबों डॉलर के एमओयू साइन हुए। इस दौरान अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान आदि दिग्गज देशों का दिल जीत चुके हैं हमारे प्रधानमंत्रीजी। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि मोदीजी के लच्छेदार भाषणों की तरह ही यह सब भी हवाई महल ही दिखाई पड़ता है।

जमीन पर तो अब भी कम ही प्रोजेक्ट मूर्तरूप लेते दिखाई पड़ रहे हैं। विकास को बढ़ावा देने के लिए बंदरगाह, हवाईअड्डों और राजमार्ग जैसे आधारभूत ढांचे को दुरुस्त करने के लिए मार्च 2017 तक करीब 1,000 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी। हालांकि सरकार ने संसद में दावा किया है कि मोदी राज में एफडीआई 24 प्रतिशत बढ़कर 60.69 अरब डॉलर का हो गया है।
 
अगले पन्ने पर...एक भारत, श्रेष्ठ भारत

मोदीजी ने अपने घोषणा पत्र में एक भारत, श्रेष्ठ भारत का नारा दिया था। वह अपने भाषणों में भी प्रांतवाद से उठकर ही बातें किया करते थे। उनकी बातें मन मोह लेती थीं। सरकार बनाने के बाद शायद वह यह बात भूल गए कि वह भाजपा के नहीं देश के प्रधानमंत्री हैं। मोदीजी चाहे देश में हो या विदेश में, उनके आसपास केवल भाजपा शासित राज्यों के ही मुख्यमंत्री दिखाई देते हैं। चुनावों में विकास का मुद्दा पीछे छुट जाता है और असहिष्णुता पर बहस होने लगती है। 

विपक्ष विरोध को अपना धर्म मानकर संसद नहीं चलने देता है और टीवी चैनलों पर बैठे सत्ता पक्ष से जुड़े नेता इस तरह अपनी बात रखते हैं मानों चुनावी सभा में बोल रहे हों। जनता महंगाई से त्रस्त है और नेता बयानबाजी में मस्त नजर आ रहे हैं। मोदीजी का यह सुंदर सपना भी अमीर, गरीब, जाति, आरक्षण आदि में बंटता नजर आ रहा है। जनता अब भी चाहती है कि देश एक भारत, श्रेष्ठ भारत के रूप में आगे बढ़े और विकास की नई ऊंचाइयां तय करे।
अगले पन्ने पर... तेल के खेल में सरकार भारी...

तेल का खेल : मोदीराज में किस्मत से पेट्रोल के दाम तो घटे लेकिन आम आदमी को इसका ज्यादा फायदा नहीं हुआ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम लगातार गिरते रहे और सरकार ने इसे कमाई का अवसर बना लिया। सरकार ने टैक्स बढ़ाकर जनता की जेब पर भार कम नहीं होने दिया। पेट्रोल और डीजल पर फ्रीहोल्ड पा चुकी कंपनियों ने इस अवसर को भुनाकर भारी मुनाफा वसूला।

केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों ने भी इस पर जनता से जमकर मुनाफा वसूली की। आम आदमी सब्सिडी और गैर सब्सिडी वाली एलपीजी में उलझकर कर रह गया। भले ही मोदी राज में आज भले ही पेट्रोल 60 रुपए लीटर मिल रहा हो, डीजल के दाम भले ही कम हो गए हो पर आम आदमी को अब भी किराए और माल भाड़े के बढ़े दामों से मुक्ति नहीं मिल पाई है। मुंबई तक आते-आते यही पेट्रोल 67 का हो जाता है।
अगले पन्ने पर... आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया 

मोदी राज में जहां कालाबाजारियों की चांदी है वहीं गरीबों का हाल बेहाल है। उनकी हालत आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया वाली हो गई है। नित नए कर लगाए जा रहे हैं। इससे महंगाई बढ़ रही है। सरकार ने गरीबों के बैंक खाते खोले, इससे उसकी बचत सरकारी खाते में जमा हो गई। सब्सिडी भी उसे खाते में मिलने लगी लेकिन गैस एजेंसियों ने तो उससे नकद धन ही लिया। बीमा योजनाओं के नाम पर उसकी जेब से पैसा निकाल लिया गया।

आय के स्रोत तो नहीं बढ़े पर आटे-दाल के दाम जरूर बढ़ गए। दो जून की रोटी का जुगाड़ भी महंगा पड़ रहा है। गरीब किसान तो कंगाली की कगार पर पहुंच गया। फसल बीमा के नाम पर उसे जितना धन मिला उसने रही सही कसर भी पूरी कर दी। एक ओर चौकीदार को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है तो दूसरी ओर सरकारी कर्मचारियों के लिए सातवां वेतनमान लागू करने की तैयारी की जा रही है। इसकी मार भी अप्रत्यक्ष रूप से आम आदमी पर ही पड़ना है।
अगले पन्ने पर... क्या देश में हो रहा है तेजी से विकास... 

लोकसभा चुनावों ने मोदीजी ने कांग्रेस के 60 साल के राज में हुए विकास पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया है। उन्होंने जिस विकसित भारत का सपना दिखाया था उससे लोगों को ऐेसा लगने लगा था कि देश में मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही 'रामराज' आ जाएगा। मोदी को अपार समर्थन मिला, वह प्रधानमंत्री बने और जिस गति से वह काम कर रहे हैं उसे देख ऐसा नहीं लगता कि इन पांच सालों में देश की तस्वीर पुरी तरह बदल जाएगी।

मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया, स्किल इंडिया, क्लीन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी आदि जितनी भी योजनाओं के माध्यम से मोदी ने भारत की तकदीर बदलने का वादा किया था सबकी गति बेहद धीमी है। ऐसा नहीं है कि मोदी राज में काम ही नहीं हुआ लेकिन जो काम हुआ है उनसे जुड़ी अपेक्षाओं से काफी कम है।

सरकार ने 2015 की विदाई से पहले आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 7-7.5 प्रतिशत कर दिया जो पहले 8.1-8.5 प्रतिशत था। हां इस साल सरकार ने कर की उगाही जरूर पिछले वर्ष से ज्यादा की है इसमें अप्रत्यक्ष कर का योगदान प्रत्यक्ष कर के मुकाबले अधिक है।
 
अगले पन्ने पर... शेयर बाजार की कहानी 2015 की जुबानी...
भारतीय शेयर बाजार के लिए 2015 चार साल का सबसे बुरा दौर रहा। इस दौरान विदेशी निवेशकों के शुरुआती रुझान ने सेंसेक्स प्रमुख सूचकांकों को अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंचा ला दिया पर बाद में उन्होंने स्थानीय बाजार से अरबों डॉलर निकाल कर इसकी हवा निकाल दी। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में इस वर्ष करीब छह प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी गई। आम जनता को उम्मीद थी कि मोदीजी प्रधानमंत्री बनेंगे तो रेल यात्रा पहले से ज्यादा सुविधाजनक हो जाएगी। लेकिन इसके उलट मोदी के पीएम बनने के बाद ट्रेन में सफर करना खासा महंगा हो गया। प्लेटफार्म टिकट की दर बढ़ाई गई, न्यूनतम किराए को पांच रुपए से बढ़ाकर 10 रुपए कर दिया गया है, रिजर्वेशन चार्जेंस बढ़ाए गए, अब टिकट रद्द करना महंगा करने की तैयारी है। नया नियम लागू होने के बाद यात्रियों को 48 घंटे पहले टिकट रद्द करवाने पर फर्स्ट AC और एक्जीक्यूटिव क्लास में 240 रुपए, सेकंड एसी क्लास में 200, थर्ड एसी में 180, स्लीपर में 120 और सेकंड क्लास में 60 रुपए की कटौती का सामना करना पड़ेगा। वहीं, ट्रेन रवाना होने से 12 घंटे पहले टिकट रद्द करवाने वालों को ऊपर दी गई राशि के अलावा 25 फीसदी और राशि काटी जाएगी। इतने पर भी सरकार का मन नहीं भरा। उसने आरक्षण नियमों में लगातार बदलाव कर यात्रियों की नाक में दम कर दिया।