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Last Updated : शुक्रवार, 29 जुलाई 2016 (09:26 IST)

'नदी को कंपनियों की खातिर 'वेश्या' बना दिया'

'नदी को कंपनियों की खातिर 'वेश्या' बना दिया' - Medha Patkar
भोपाल। नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवा मेधा पाटकर ने विभिन्न कंपनियों द्वारा नर्मदा नदी के पानी का दोहन किए जाने पर चिंता जताते हुए कहा है कि नर्मदा नदी को वेश्या बना दिया गया है। उसका उपभोग कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। 
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में गुरुवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए पाटकर ने कहा कि नर्मदा नदी से हर रोज 172 करोड़ लीटर पानी कंपनियों द्वारा लिया जा रहा है। गुजरात में अदानी व अंबानी की कंपनियों को पानी देने के लिए सरदार सरोवर का जलस्तर बढ़ाया जा रहा है। कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए 'नर्मदा को वेश्या बना दिया गया है और उसका उपभोग कंपनियों द्वारा किया जा रहा है।
 
 
मेधा के नेतृत्व में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध प्रभावित परिवारों को उनका हक दिलाने के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन शुक्रवार 29 जुलाई को इंदौर से 'रैली फॉर द वैली' शुरू कर रहे हैं। वहीं 30 जुलाई से बड़वानी के राजघाट पर 'नर्मदा जल-जमीन हक सत्याग्रह' शुरू हो रहा है।
 
उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के तमाम दिशा निर्देशों की अवहेलना कर सरदार सरोवर बांध का जल स्तर बढ़ाया जा रहा है और अब गेट लगाकर उन्हें बंद करने की तैयारी चल रही है। इससे मध्यप्रदेश के 244 गांव और एक नगर धर्मपुरी डूब जाएगा। उनका आरोप है कि 45 हजार परिवारों का पुनर्वास नहीं किया गया है और बांध पर गेट लगाए गए हैं। राज्य में सिर्फ 50 परिवारों का ही पुर्नवास किया गया है।
 
उनका आरोप है कि सरदार सरोवर का एक बूंद पानी भी मध्यप्रदेश को नहीं मिलने वाला है। सबसे ज्यादा प्रभावित यहां के लोग ही हो रहे हैं। इस बांध का जलस्तर बढ़ने से एक तरफ विस्थापन बढ़ेगा वहीं घर, खेत, पशुधन, दुकानें, धार्मिक स्थल, लाखों की संख्या में पेड़ की जल समाधि हो जाएगी।
 
मेधा पाटकर ने केंद्र सरकार में वन व पर्यावरण मंत्री अनिल दवे को भी आड़े हाथों लिया। वे नर्मदा के सामाजिक प्रभाव को नहीं जानते। नर्मदा बचाओ आंदोलन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी से पहले इस देश में हुए प्रधानमंत्रियों ने कई दफा नर्मदा आंदोलन से जुड़े लोगों से सीधे संवाद किया, मगर मोदी सीधे संवाद करने को तैयार नहीं हैं। इसके लिए कई बार उनसे संपर्क किया गया, उसके बाद भी वे सीधे संवाद तो दूर पत्र का जवाब भी केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती के विभाग के जरिए दे रहे हैं।
 
मेधा ने आगे कहा कि मोदी मन की बात करते हैं, वास्तविकता तो यह है कि वे 'मनमानी बात' के आदी हो चुके हैं। वे सरदार सरोवर के प्रभावितों का दर्द सुनना ही नहीं चाहते। नर्मदा बचाओ आंदोलन के पत्र का केंद्र सरकार की ओर से जो जवाब दिया गया है, उसमें दर्ज किए गए आंकड़ों को भी उन्होंने सवाल के कटघरे में खड़ा किया।
 
उन्होंने केंद्र सरकार के जवाब पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरदार सरोवर बांध के बैक वाटर से 30 वर्ष पूर्व प्रभावित होने वाले परिवारों में से 15,909 परिवारों को इससे अलग कर दिया गया है, यानी डूब से अप्रभावित करार दे दिया और पुनर्वास के लिए अपात्र मान लिया। सवाल उठता है कि बांध का जलस्तर बढ़ा तो बैक वाटर के प्रभावितों की संख्या कम कैसे हो गई? मेधा का आरोप है कि केंद्र सरकार ने जो जवाब भेजा है वह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से 2000 में बनाए गए एक्शन प्लान को ही 2016 में वर्तमान एक्शन प्लान के रूप में पेश किया गया है। 
 
उन्होंने बताया कि सत्याग्रह में हिस्सा लेने देशभर के विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग बड़वानी पहुंचेंगे। संवाददाता सम्मेलन में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव बादल सरोज, जसवंत सिंह, पूर्व विधायक सुनीलम व आराधना भार्गव भी उपस्थित थे। (भाषा)