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  4. Kashmir : 4 sarpanch killed in 1.5 months
Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: शनिवार, 16 अप्रैल 2022 (14:28 IST)

कश्मीर में आतंकियों का कहर, डेढ़ महीने में 4 सरपंचों को मार डाला, 3 महीनों में 12 नागरिकों की हत्या

कश्मीर में आतंकियों का कहर, डेढ़ महीने में 4 सरपंचों को मार डाला, 3 महीनों में 12 नागरिकों की हत्या - Kashmir : 4 sarpanch killed in 1.5 months
जम्मू। बौखलाए हुए आतंकियों ने डेढ़ माह में 4 सरपंचों को कश्मीर में मौत के घाट उतार दिया है। वे अन्य नागरिकों को भी नहीं बख्श रहे हैं। सरकारी रिकार्ड के अनुसार, 12 नागरिक पिछले 3 महीनों में मारे जा चुके हैं। इनमें अधिकतर अल्पसख्ंयक समुदाय से संबंधित थे।
 
कश्मीर में आतंकी नया टारगेट लेकर हमलों को तेज कर चुके हैं। एक तो वे जन प्रतिनिधियों पर हमले कर उन्हें मौत के घाट उतार आगामी चुनावों को पटरी से उतारने की कोशिश में जुटे हैं। साथ ही वे कश्मीर में बढ़ते टूरिस्टों के कदमों को रोकने की खातिर अल्पसंख्यक व प्रवासी नागरिकों को निशाना बना रहे हैं। यह इसी से स्पष्ट होता था कि इस साल के पहले तीन महीनों में उन्होंने जिन 12 लोगों को मार डाला उनमें 4 सरपंच और 5 प्रवासी नागरिक व कश्मीरी हिन्दू शामिल थे।
 
शनिवार रात को भी आतंकवादियों ने उत्तरी कश्मीर के बारामुल्ला जिले के पट्टन में एक सरपंच की गोली मारकर हत्या कर दी। पहली मार्च से लेकर अब तक जन प्रतिनिधियों पर आतंकवादियों द्वारा किया गया यह चौथा हमला है। हालांकि सुरक्षाबलों ने पट्टन गोलीकांड के बाद स्थानीय लोगों से मिले सुराग के आधार पर आतंकियों की धरपकड़ शुरू कर दी है।
 
इस बीच, आतंकी संगठन कश्मीर फ्रीडम फाइटर्स ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उसके कैडर ने भाजपा के सरपंच की हत्या की है। पहली मार्च के बाद अब तक कश्मीर में किसी पंचायत प्रतिनिधि की आतंकियों द्वारा हत्या की यह चौथी वारदात है।
 
डेढ़ माह में कश्मीर में जिन चार पंचायत प्रतिनिधियों की हत्या की गई है उनमें 2 मार्च को कुलगाम में पंच मोहम्मद याकूब की हत्या, 9 मार्च को श्रीनगर के खुनमोह में सरपंच समीर अहमद की हत्या, 11 मार्च को कुलगाम के अडूरा में सरंपच शब्बीर अहमद मीर की हत्या तथा 15 अप्रैल को पट्टन में सरपंच की हत्या भी शामिल है।
 
8 और नागरिक कश्मीर में मारे गए हैं इसी अवधि में। इनमें 5 प्रवासी नागरिक थे। तीन अन्य स्थानीय कश्मीरी थे जो अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखते थे और 1990 में आतंकवाद के फैलने के बाद अभी तक टिके हुए थे। ताजा हमलों और हत्याओं का परिणाम यह है कि कश्मीर में अभी भी रूके हुए कश्मीरी हिंदू कश्मीर को त्यागने की तैयारियों में जुट गए हैं तो प्रवासी नागरिकों पर बढ़ते हमलों ने उन्हें कश्मीर में आने से पहले एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है।
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