Supreme Court's instructions to Maharashtra Speaker : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को निर्देश दिया कि वह शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों की ओर से दाखिल उन याचिकाओं पर 31 दिसंबर या उससे पहले फैसला करें, जिनमें दोनों ने एक-दूसरे के विधायकों को सदन की सदस्यता से अयोग्य ठहराने का अनुरोध किया है।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान की 10वीं अनुसूची की पवित्रता बनाए रखी जानी चाहिए। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रक्रियात्मक उलझनों के कारण अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर फैसला लेने में देरी नहीं होने देनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष से अजित पवार गुट के नौ विधायकों को सदन की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के अनुरोध वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की याचिका पर भी 31 जनवरी 2024 तक फैसला लेने को कहा। न्यायालय ने कहा, हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि 10वीं अनुसूची की पवित्रता कायम रखी जानी चाहिए।
संविधान की 10वीं अनुसूची लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को दलबदल करने से रोकने से संबंधित है। इसमें दलबदल के खिलाफ कड़े प्रावधान किए गए हैं। पीठ ने कहा, प्रक्रियात्मक उलझनों के कारण अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर फैसले में देरी नहीं होने देनी चाहिए। हम निर्देश देते हैं कि 31 दिसंबर, 2023 तक सुनवाई पूरी कर उपयुक्त निर्देश पारित किए जाएं। इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने तब नाराजगी जाहिर की, जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उसे सूचित किया कि विधानसभा अध्यक्ष को शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट की ओर से दायर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने के लिए 29 फरवरी 2024 तक का समय चाहिए।
मेहता ने दलील दी कि दिवाली की छुट्टियों और विधानसभा के शीतकालीन सत्र के कारण 31 जनवरी से पहले फैसले की उम्मीद करना उचित नहीं होगा। उन्होंने पीठ से अनुरोध किया, मामले को जनवरी के लिए सूचीबद्ध करें और इसमें प्रगति देखें। इस पर पीठ ने कहा, सॉलिसिटर महोदय, हम नहीं चाहते कि चुनाव की घोषणा होने तक ये कार्यवाही लटकती रहे।
जवाब में मेहता ने कहा कि दिवाली की छुट्टियों और विधानसभा सत्र को छोड़कर याचिकाओं पर निर्णय लेने में कठिनाई की कोई वजह नहीं है। वहीं अजित पवार गुट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने राकांपा की ओर से दायर याचिकाओं पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने का विरोध करते हुए कहा कि ये याचिकाएं इस साल जुलाई और सितंबर में दायर की गई थीं।
शरद पवार गुट की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस स्तर पर नौ राकांपा विधायकों के खिलाफ जुलाई में दायर याचिकाओं पर विचार किया जाना चाहिए। इसके बाद पीठ ने अपने आदेश में कहा, हमें उचित समय देना होगा। हमने विधानसभा अध्यक्ष को समूह ए (शिवसेना) पर फैसला लेने के लिए 31 दिसंबर 2023 तक और राकांपा मामले में निर्णय लेने के लिए 31 जनवरी 2024 तक का समय दिया है।
शीर्ष अदालत ने पहले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके वफादार विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के लिए उद्धव ठाकरे गुट की ओर से दायर याचिकाओं पर निर्णय लेने में देरी पर विधानसभा अध्यक्ष के प्रति गहरी नाराजगी जाहिर की थी। न्यायालय ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष शीर्ष अदालत के आदेशों को विफल नहीं कर सकते हैं।
शिंदे गुट ने भी उद्धव ठाकरे के प्रति निष्ठा रखने वाले विधायकों के खिलाफ इसी तरह की अयोग्यता याचिकाएं दायर की हैं। शीर्ष अदालत ने 18 सितंबर को विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर फैसले के लिए समयसीमा बताने का निर्देश दिया था। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour