कर्मचारियों का अधिकार सबसे ऊपर : जयंत सिन्हा
नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने रविवार को कहा कि नए दिवाला कानून से अवरुद्ध ऋणों की वसूली तेज होगी और अगर यदि कंपनी दिवालिया होती है तो उसकी संपत्ति को बाजार पर चढ़ाने से होने वाली आय में सबसे पहला हिस्सा कर्मचारियों का लगेगा।
वित्त राज्यमंत्री ने यह भी कहा कि नए कानून से खस्ताहाल कंपनियों को समेटने में लगने वाले समय में भी उल्लेखनीय कमी आएगी और पूरी प्रक्रिया ज्यादा आसान होगी।
सिन्हा ने कहा कि दिवालिया कानून से वसूली प्रक्रिया आसान और प्रभावी होने जा रही है। संसद के दोनों सदनों ने दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता 2015 को मंजूरी दे दी। यह एक सदी पुराने 4 कानूनों को एकीकृत करने वाला है जिनकी सीमाएं एक-दूसरे के साथ गड्डम-गड्ड होती थीं।
नए कानून का उद्देश्य देश में कारोबारी इकाई से निकलने या उसे परिसमाप्त करने की प्रक्रिया सरल बनाकर, कुल मिलाकर कारोबार करने को सुगम बनाना है। नया कानून बैंक कर्ज के पुनर्भुगतान में गंभीर चूक जैसे वित्तीय दबाव के पहले के संकेत के आधार पर कर्मचारियों, ऋणदाताओं तथा शेयरधारकों को कंपनी बंद करने की प्रक्रिया शुरू करने को लेकर सशक्त बनाता है। इसके तहत मामलों को 180 दिन के अंदर निपटा दिया जाएगा। निर्णायक अधिकारी प्रवर्तकों को समाधान के लिए 90 दिन का अतिरिक्त समय भी दे सकते हैं।
नया कानून संबंधित कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति में कर्मचारियों के हितों की रक्षा करता है। कंपनी की संपत्ति को बाजार पर चढ़ाने से प्राप्त राशि का उपयोग कर्मचारियों के 24 महीने तक के वेतन भुगतान में प्राथमिक आधार पर करने का प्रावधान है।
सिन्हा ने कहा कि कर्मचारियों तथा ऋणदाताओं का अधिकार उल्लेखनीय रूप से मजबूत हुआ है और अगर वास्तव में चूक का मामला आता है तो कर्मचारियों को सबसे पहले उनका अधिकार मिलेगा। नए कानून में 'भारतीय शोधन अक्षमता एवं दिवाला परिषद' नाम की एक नई संस्था के गठन का प्रावधान है, जो शोधन अक्षमता से जुड़े पेशेवरों तथा सूचना कंपनियों को नियंत्रित करेगी।
जयंत सिन्हा ने कहा कि शोधन अक्षमता से संबद्ध पूरा बुनियादी ढांचा समेत पूरा ढांचा अगले 12 महीने में अस्तित्व में आ जाएग तथा शोधन अक्षमता परिषद शोधन अक्षमता से जुड़े पेशेवरों तथा सूचना प्रदाताओं को नियमित करेगी। परिषद के लिए प्रतिष्ठित व विशिष्ट व्यक्तियों को चुना जाएगा। इसके लिए एक चयन समिति बनाई जाएगी।
अगर शोधन अक्षमता के मामले का समाधान नहीं हो सकता है तो कर्जदार कंपनी की संपत्ति को बेचा जा सकता है ताकि ऋण देने वालों के पैसे को लौटाया जा सके। मामले के लंबित होने तक देनदार का प्रबंधन समाधान करने वाले पेशेवरों के हाथों में होगा।
नए कानून में कंपनियों तथा सीमित जवाबदेही वाली भागीदारी कंपनियों के लिए मामलों के निपटान के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) का प्रावधान है और व्यक्तियों तथा भागीदारी वाली कंपनियों के लिए यही काम ऋण वसूली न्यायाधिकरण करेगा। उन्होंने कहा कि लेकिन इसके अलावा हमें एनसीएलटी तथा इसके अपीलीय न्यायाधिकरण एनसीएलएटी को मजबूत करना है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल देश में शोधन अक्षमता के मामलों के समाधान में 4.3 साल लगते हैं और प्रति डॉलर 25.7 सेंट प्राप्त होते हैं, वहीं अमेरिका में यह अनुपात 80.4 सेंट है। (भाषा)