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Last Modified: गुरुवार, 5 मई 2022 (17:09 IST)

अमरनाथ गुफा में हिमलिंग को बचाने की कवायद शुरू

अमरनाथ गुफा में हिमलिंग को बचाने की कवायद शुरू - Efforts to save Himling started in Amarnath cave
जम्मू। अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने इसके प्रति दावा किया है कि इस बार अमरनाथ गुफा के भीतर तापमान बराबर रखने की खातिर आवश्यक उपकरण स्थापित किए जा रहे हैं। ऐसा कर वे हिमलिंग को लंबे समय तक बचाए रखने की कवायद करना चाहते हैं जो अक्सर कई बार ग्लोबल वार्मिंग या फिर भक्तों की सांसों की गर्मी के कारण पिघल जाया करता है।

अधिकारियों के मुताबिक, इस बार हमने ऐसी व्यवस्था की है कि कोई भी श्रद्धालु यात्रा शुरू होने और यात्रा के बाद हिमलिंग को न छूने पाए ताकि हिमलिंग की पवित्रता को बरकरार रखा जाए तथा उसे भक्तों के हाथों की गर्मी से पिघलने से बचाया जा सके। भक्तों की सांसों की गर्मी से हिमलिंग को बचाने की खातिर अमरनाथ की गुफा को तकनीक के सहारे ठंडा और वातानुकूलित बनाने की योजना लागू की जाएगी।

अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के सूत्रों के अनुसार, गुफा को पूरी तरह से वातानुकूलित करने, आइस स्केटिंग रिंक तकनीक का इस्तेमाल करने की भी योजना है। इसी के तहत कई अन्य प्रस्तावों पर भी विचार किया जा रहा है जिनमें एयर कर्टन, रेडियंटस कूलिंग पैनलस और फ्रोजन ब्राइन टेक्‍नीक का इस्तेमाल भी शामिल है। श्राइन बोर्ड के अधिकारियों को रेडियंट कूलिंग पेनलस का विकल्प बहुत ही जायज लग रहा है।

इतना जरूर है कि अतीत में कुछ उन उन्मादी श्रद्धालुओं के हाथों से, जो यात्रा शुरू होने से पहले ही गुफा तक पहुंच जाते हैं, हिमलिंग को बचाने की खातिर बोर्ड ने कुछ उपाय जरूर कर दिए थे जो भक्तों की भीड़ के आगे टिक नहीं पाए थे।

श्राइन बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि इस बार श्रद्धालुओं को पहले से कहीं ज्यादा बेहतर सुविधाएं उपलब्ध होंगी। पवित्र गुफा में श्रद्धालु हिमलिंग के दर्शन बिना किसी रुकावट के कर सकें इसके लिए विशेष प्रबंध किया है। लोहे की ग्रिल को हटा लिया है। यह ग्रिल एक अवरोधक थी जो श्रद्धालुओं को पवित्र हिमलिंग को छूने से रोकती थी पर साथ ही इसके कारण श्रद्धालुओं को हिमलिंग के दर्शन भी सही तरीके से नहीं हो पाते थे।

लोहे की ग्रिल वर्ष 2007 में लगाई गई थी ताकि श्रद्धालु हिमलिंग की मर्यादा को भंग न कर सकें। इससे पूर्व वर्ष 2006 में कुछ लोगों ने पवित्र गुफा में हिमलिंग के साथ कथित तौर पर छेड़छाड़ की थी। अब ग्रिल नहीं है, इसके स्थान पर एल्यूमीनियम  की पैनलिंग के सहारे पारदर्शी कांच की दीवार बनाई है। इसके जरिए श्रद्धालु आराम से हिमलिंग के दर्शन कर सकेंगे। गुफा में श्रद्धालुओं के खड़ा होने और पूजा करने का स्थान भी बढ़ाया गया है।

उन्होंने बताया कि 14500 फुट की ऊंचाई पर स्थित गुफा के पास सिर्फ आपात परिस्थितियों में ही हेलीकॉप्टर को उतरने की अनुमति होगी। हेलीकॉप्टर के बार-बार आवागमन और शोर का असर भी गुफा के मौसम और स्थानीय पर्यावरण पर प्रतिकूल असर होता है। श्रद्धालुओं को गुफा के भीतर फोटोग्राफी की मनाही रहेगी। कैमरा और मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि यह भी गर्मी पैदा करते हैं।

अमरनाथ यात्रा में प्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की संस्तुतियों का होगा पालन : अमरनाथ यात्रा के दौरान अब प्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की उन संस्तुतियों का पूरी तरह से पालन होगा जिसके प्रति फाइलें अभी तक धूल खा रही थीं। ऐसा अमरनाथ यात्रा के दौरान पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता बनाए रखने के इरादे से होगा।

इन संस्तुतियों पर अमल करते हुए श्राइन बोर्ड ने फैसला सुनाया है कि रास्तों में पड़ने वाले नदी-नालों में सीधे तौर पर कचरा नहीं बहाया जाएगा, बल्कि इसका सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में पर्यावरण अनुकूल विधि से निस्तारण होगा। बालटाल और पहलगाम से आगे यात्रा मार्ग पर कचरा संग्रह के लिए अलग-अलग रंगों के आठ सौ डस्टबिन रखे जा रहे हैं।

दरअसल श्राइन बोर्ड से प्रदेश प्रदूषण बोर्ड कई सालों से नाराज था क्योंकि नाराजगी का कारण यात्रा मार्ग पर फैलने वाली गंदगी है। इससे पहाड़ भी बेहाल हैं। इस संबंध में तैयार की गई रिपोर्ट में प्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड का कहना था कि पिछले कुछ सालों से यात्रा में शामिल होने वालों की बढ़ती संख्या का परिणाम है कि लिद्दर दरिया का पानी पीने लायक नहीं रहा और बैसरन तथा सरबल के जंगल, जो अभी तक मानव के कदमों से अछूते थे, अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

अपनी रिपोर्ट में यात्रा में शामिल होने वालों की संख्या सीमित करने का आग्रह करते हुए प्रदूषण बोर्ड कहता था कि बढ़ती संख्या से पहाड़ों और दरियाओं का संतुलन व इको सिस्टम बिगड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यात्रा में अधिक संख्या में शामिल होने की अनुमति देकर आर्थिक रूप से कुछ संगठन अपने आपको मजबूत कर रहे हैं पर वे पर्यावरण को बचाने हेतु कुछ नहीं कर रहे।

हालांकि इस बार भी श्राइन बोर्ड ने घोषणा की है कि श्रद्धालुओं को अपने साथ प्लास्टिक के लिफाफे या प्लास्टिक से बनाई गई कोई भी वस्तु ले जाने की अनुमति नहीं दी होगी पर वर्ष 2019 में भी ऐसी घोषणा के बावजूद जो 55 हजार किग्रा कूड़ा करकट यात्रा मार्ग पर एकत्र किया गया था उसमें आधा प्लास्टिक ही था और जो दरियाओं में बहा दिया गया था उसका कोई हिसाब नहीं है।

समुद्र तल से करीब 14500 फुट की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ की यात्रा इस वर्ष 30 जून से शुरू हो रही है जो 11 अगस्त को संपन्न होगी। इस वर्ष करीब आठ लाख श्रद्धालुओं के इस तीर्थ यात्रा में भाग लेने की उम्मीद है। अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ और उनके लिए सुविधाओं को जुटाने की प्रक्रिया से पर्यावरण को लेकर कई पर्यावरणविद् चिंता व्यक्त करते आए हैं।

यात्रा मार्ग पर सैकड़ों टन कचरा पैदा होता है जो अंततः नाला-सिंध, बालटाल नाला और लिद्दर दरिया में जाता है या फिर यह पहाड़ों पर खुले में रहते हुए पर्यावरण को बिगाड़ता है। फिलहाल श्राइन बोर्ड सिर्फ संख्या के प्रति की जाने वाली किसी भी संस्तुति को मानने को राजी नहीं है।
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