दिल्ली में करोड़ों की बारिश चोरी, थाने में शिकायत, जानिए क्या है पूरा मामला
Cloud seeding fails in Delhi: दिल्ली में कृत्रिम बारिश (Cloud Seeding) करने का रेखा गुप्ता सरकार का दावा फुस्स हो गया। इस प्रयोग में मात्र 0.3 एमएम बारिश हुई, लेकिन वह भी उत्तर प्रदेश के नोएडा में हो गई। बताया जा रहा है कि कृत्रिम बारिश की इस पूरी कवायद करोड़ों रुपए का खर्च आया है। बाबवजूद इसके दिल्लीवासियों को राहत नहीं मिली। इस बीच, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि दिल्ली में करोड़ों रुपए की बारिश चोरी हो गई है।
वैज्ञानिकों की टीम ने प्रयोग रोका : कृत्रिम बारिश कराए जाने में नाकामी मिलने के बाद अब आईआईटी कानपुर की टीम ने अगला प्रयोग रोकने का निर्णय लिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब तक वातावरण में पर्याप्त नमी (करीब 50 फीसदी से अधिक) न हो जाए तब तक कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया को रोक दिया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हालांकि बारिश नहीं हो सकी, लेकिन प्रदूषण के लिहाज से परिणाम सकारात्मक रहे हैं। दिल्ली में लगाए गए मॉनिटरिंग स्टेशनों से जो डेटा मिला, उसके आंकड़ों में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में 6 से 10 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई।
क्या कहा कांग्रेस ने : इंडियन यूथ कांग्रेस ने एक्स पर पोस्ट कर कहा- दिल्ली में करोड़ों रुपए की बारिश चोरी हो गई है। आखिरी बार ये कृत्रिम बारिश दिल्ली सरकार के मंत्रियों के वादों और TV पर देखी गई थी। खबर है कि करोड़ों रुपए फूंके गए, प्लेन उड़ाए गए लेकिन बारिश होने के पहले ही भाजपा नेता वाहवाही लूट ले गए। और फिर न मेघ बरसे, न भाजपाई दिखे... इस संबंध में दिल्ली युवा कांग्रेस अध्यक्ष अक्षय लाकरा ने संसद मार्ग थाने में शिकायत दर्ज कराई है।
उल्लेखनीय है कि प्रयोग से पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा था कि यह पहल न सिर्फ तकनीकी दृष्टि से ऐतिहासिक है, बल्कि दिल्ली में प्रदूषण से निपटने का एक वैज्ञानिक तरीका भी स्थापित करने जा रही है। सरकार का उद्देश्य है कि इस नवाचार के माध्यम से राजधानी की हवा को स्वच्छ और वातावरण को संतुलित बनाया जा सके। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि यदि परिस्थितियां अनुकूल रहीं, तो 29 अक्टूबर को दिल्ली पहली कृत्रिम बारिश का अनुभव करेगी।
कैसे होती है क्लाउड सीडिंग : कृत्रिम बारिश, जिसे क्लाउड सीडिंग भी कहते हैं, एक वैज्ञानिक तरीका है जिसका उपयोग बारिश कराने या बारिश की मात्रा बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले मौसम वैज्ञानिक उन बादलों की पहचान करते हैं जिनमें पर्याप्त नमी होती है लेकिन वे खुद से बारिश नहीं कर पाते। इसके बाद विशेष प्रकार के रसायनों (जिन्हें सीडिंग एजेंट्स कहते हैं) को हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर, या ड्रोन की मदद से इन बादलों में छिड़का जाता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala