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Last Updated :नई दिल्ली , मंगलवार, 13 मार्च 2018 (15:24 IST)

11 साल में साफ्टवेयर का विकास नहीं कर पाया अंतरिक्ष विभाग

11 साल में साफ्टवेयर का विकास नहीं कर पाया अंतरिक्ष विभाग - cag report
नई दिल्ली। अंतरिक्ष विभाग अपनी डिजिटल कार्यवाहक प्रणाली के लिए 11 साल में 2 करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च करने के बावजूद सॉफ्टवेयर विकसित नहीं कर पाया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
 
रिपोर्ट के मार्च 2017 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की अपनी प्रतिवेदन रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने कहा कि अंतरिक्ष विभाग द्वारा डिजिटल कार्यवाहक प्रणाली के विकास हेतु शुरू की गई परियोजना में 11 साल से अधिक समय में 2.27 करोड़ रुपए के खर्च के बावजूद सॉफ्टवेयर का विकास नहीं हुआ।
 
प्रतिवेदन रिपोर्ट में कैग ने इसकी वजह परियोजना के कार्यान्वयन और समुचित निगरानी में विफलता को इस नाकामी की वजह बताया है। इसके अनुसार अंतरिक्ष विभाग ने अपने प्रशासन, वित्त, वेतनपत्रक, खरीद और स्टोर कार्यों के कंप्यूटरीकरण के लिए प्रशासनिक क्षेत्र में कंप्यूटरीकृत कार्य नामक एक आंतरिक पैकेज विकसित किया और साल 2002 के बाद इसका अपने सभी केन्द्रों में चरणबद्ध तरीके से परिचालन किया। परियोजना के सुचारु संचालन को सुनिश्चित करने और निगरानी के लिए अप्रैल 2006 में एक अंतरकेन्द्र समिति का गठन किया गया।
 
परियोजना के विभिन्न चरणों में काम की गति को धीमा बताते हुए कैग ने इसके अंतर्गत तैयार किये जाने वाले कई मॉड्यूल विकसित करने का काम अब तक शुरू नहीं हो पाने का खुलासा किया है।
 
रिपोर्ट के अनुसार, परियोजना में कार्यरत विभिन्न टीमों ने कहा कि आंतरिक विशेषज्ञता के अभाव, समर्पित विकास दल की तैनाती नहीं होना और कार्यप्रवाह आवश्यकताओं के लिए डोमेन विशेषज्ञों की पहचान नहीं किये जाने के कारण परियोजना की प्रगति बाधित रही।
 
कैग रिपोर्ट में इन्हीं कारणों के परिणामस्वरूप मार्च 2017 तक सॉफ्टवेयर का विकास नहीं हो सका। जबकि इस अवधि में परियोजना के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के विकास पर 2.27 करोड़ रुपए भी खर्च हो गए। इतना ही नहीं परियोजना के ऑडिट में पाया गया कि अंतरिक्ष विभाग द्वारा गठित विभिन्न समीक्षा समितियों ने लक्षित कार्यों का निष्पादन ही नहीं किया।
 
रिपोर्ट में निष्कर्ष स्वरूप परियोजना की खराब निगरानी और कार्यान्वयन में विफलता के परिणामस्वरूप इसके आरंभ होने से 11 वर्ष से अधिक अवधि में 2.27 करोड़ रुपए के व्यय के बावजूद सॉफ्टवेयर विकसित नहीं हो पाया। इस मामले को अंतरिक्ष विभाग के पास अक्टूबर 2017 में भेजा गया लेकिन दिसंबर 2017 तक उत्तर प्रतीक्षित था। (भाषा)