गुरुवार, 28 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Ayodhya Ram Janmabhoomi controversy
Written By
Last Updated : बुधवार, 30 अक्टूबर 2019 (18:57 IST)

अयोध्या मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, मध्यस्थता समिति ने सौंपी अंतरिम रिपोर्ट

अयोध्या मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, मध्यस्थता समिति ने सौंपी अंतरिम रिपोर्ट - Ayodhya Ram Janmabhoomi controversy
नई दिल्ली। राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या के राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के सर्वमान्य हल के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति ने सीलबंद लिफाफे में अंतरिम रिपोर्ट सौंप दी है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में शुक्रवार को महत्वपूर्ण सुनवाई करेगा।
 
मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा उच्चतम न्यायालय को 6 मई को रिपोर्ट सौंप दी गई थी और इस मामले को सुनवाई के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने मामले के सर्वमान्य समाधान की संभावना तलाशने के लिए इसे 8 मार्च को मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया था।
 
इस विवाद के सर्वमान्य समाधान की संभावना तलाशने के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफ एम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति के गठन के आदेश के बाद पहली बार इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को होगी।

इस समिति के अन्य सदस्यों में आध्यत्मिक गुरू और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल थे।
 
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की 5सदस्यीय संविधान पीठ अब इस रिपोर्ट को देखेगी और आगे की कार्रवाई पर फैसला करेगी।

शीर्ष अदालत ने मध्यस्थता के लिए गठित इस समिति को बंद कमरे में अपनी कार्यवाही करने और इसे 8 सप्ताह में पूरा करने का निर्देश दिया था। 
सूत्रों के अनुसार तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति ने उच्चतम न्यायालय को सीलबंद लिफाफे में अंतरिम रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दी है। अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को करने जा रहा है, इसके बाद ही साफ हो सकेगा कि मध्यस्थता पैनल को कितनी सफलता मिली है।

संविधान पीठ ने कहा था कि उसे विवाद के संभावित समाधान के लिये मध्यस्थता के संदर्भ में कोई ‘कानूनी अड़चन’ नजर नहीं आती। पूर्व में पीठ को निर्मोही अखाड़े को छोड़कर, हिंदू संगठनों और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बताया गया कि वे अदालत के मध्यस्थता के सुझाव का विरोध करते हैं। मुस्लिम संगठनों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था।
 
मध्यस्थता के सुझाव का विरोध करते हुए हिंदू संगठनों ने दलील दी कि पूर्व में समझौते के प्रयास विफल हो चुके हैं और दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के प्रावधानों के लिए प्रक्रिया की शुरुआत से पहले सार्वजनिक नोटिस जारी करने की जरूरत है। 
 
सर्वोच्च अदालत ने निर्देश दिया था कि मध्यस्थता की कार्यवाही ‘बेहद गोपनीयता’ के साथ होनी चाहिए, जिससे उसकी सफलता सुनिश्चित हो सके और मध्यस्थों समेत किसी भी पक्ष द्वारा व्यक्त किये गए मत गोपनीय रखे जाने चाहिए और किसी दूसरे व्यक्ति के सामने इनका खुलासा नहीं किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने हालांकि इस चरण में किसी तरह की रोक लगाने का आदेश देने से परहेज किया और इसके बजाए मध्यस्थों को यह अधिकार दिया कि अगर जरूरत हो तो वे लिखित में अनिवार्य आदेश जारी करें, जिससे मध्यस्थता कार्यवाही के विवरण का प्रकाशन रोका जा सके।
सनद रहे कि निर्मोही अखाड़ा को छोड़कर दूसरे हिंदू संगठनों ने मामले को मध्यस्थता पैनल को सौंपे जाने का विरोध किया था लेकिन मुस्लिम संगठनों ने इसका स्वागत किया था।

उस वक्त रामलला विराजमान की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा था कि हम लोग किसी मस्जिद के लिए किसी अलग जगह पर बनाने के लिए फंडिंग कर सकते हैं लेकिन रामलला के जन्मभूमि को लेकर किसी तरह का कोई समझौता नहीं होगा, इसलिए मध्यस्थता से कोई हल नहीं निकलने वाला है।

शिया वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर मंदिर बनाए जाने का पक्षधर रहा है। शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने कहा था कि विवादित मस्जिद को बाबर के सेनापति मीर बकी ने बनवाया था, जो कि एक शिया मुस्लिम था इसलिए इस पर शिया वक्फ बोर्ड का हक है।

उनका कहना था कि इसके लिए शिया वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में पहले ही हलफनामा व पर्याप्त साक्ष्य दे चुका है।