यह बापू के सपनों का भारत नहीं-निर्मला
जब भारत आजाद हुआ था, तब बापू ने कहा था कि यह तो राजनीतिक स्वतंत्रता है। आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता हासिल करने के लिए हमें लड़ाई जारी रखनी है। मुझे लगता है कि यह लड़ाई आज भी जारी है, क्योंकि अब तक की उपलब्धियों पर हम संतोष भले ही कर लें, सच यही है कि यह बापू के सपनों का भारत नहीं है।यह विचार हैं जानीमानी गाँधीवादी निर्मला देशपांडे के, जिन्होंने बापू के दर्शन को आत्मसात किया और आचार्य विनोबा भावे के सिद्धांतों को अपनाया है।निर्मला ने कहा कि आजादी के बाद हमारा संविधान बना और सबको अधिकार मिले, विकास भी हुआ, लेकिन जातिवाद दूर नहीं हुआ सांप्रदायिकता मजबूत होती गई, शिक्षा का सर्वव्यापी प्रसार नहीं हुआ, लिंगभेद अभी भी है। बापू ने कहा था कि हिंदुस्तान गाँवों में बसता है, लेकिन गाँव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। गाँवों से रोज पलायन हो रहा है।यह कैसा विकास है। क्या बापू ने ऐसे ही भारत का सपना देखा था। वे कहती हैं आजादी के 60 बरस पूरे हो गए, लेकिन बापू के सपनों का भारत बनाने के लिए जैसा काम होना चाहिए था, वैसा नहीं हो पाया है।निर्मला ने कहा कि देश को अपनी प्राथमिकताएँ तय करनी चाहिए थीं। पहला लक्ष्य होना चाहिए था। हर व्यक्ति को रोजगार, रोटी और इज्जतभरा जीवन मिले, यह लक्ष्य आज तक हम हासिल नहीं कर पाए, लेकिन बापू की तरह अदम्य इच्छाशक्ति हमारे अंदर उपजे तो हम यह लक्ष्य जरूर हासिल कर लेंगे। विकास के बारे में पूछे जाने पर निर्मला कहती हैं कि एक तरफ हम बात करते हैं कि परमाणु कार्यक्रम के जरिये हम ऊर्जा उत्पादन करेंगे दूसरी ओर हम परमाणु बम बनाते हैं। मैं इसके पूरी तरह खिलाफ हूँ। परमाणु बम बनना ही क्यों चाहिए? इससे ज्यादा जरूरी है भूखे बच्चों को रोटी देना।वे कहती हैं कि संयुक्त राष्ट्र ने गाँधी जयंती को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया है। यह पूरी दुनिया के लिए एक संदेश है कि गाँधी के सिद्धांतों पर चलकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। फिर परमाणु बम का क्या औचित्य रह जाता है।निर्मला याद करती हैं कि राजीव गाँधी और सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव के बीच न्यूक्लियर फ्री एंवायरर्न्मेंट पर एक समझौता हुआ था। इस दिशा में कुछ काम भी हुआ, लेकिन गंभीरतापूर्वक हमें बहुत कुछ करना होगा, वरना विनाश होते देर नहीं लगेगी।निर्मला विकास की कौन-सी पहल को बेहतर मानती हैं? उनका जवाब था, रोजगार गारंटी योजना, सूचना का अधिकार और महिला सशक्तिकरण का प्रयास सराहनीय है, लेकिन समस्याओं को देखते हुए इन्हें पर्याप्त नहीं माना जा सकता।शिक्षा में गहरे बदलाव की जरूरत रेखांकित करते हुए निर्मला कहती हैं कि इस ओर अगर गंभीर प्रयास किए जाते, तो कई समस्याएँ पैदा ही नहीं होतीं। निर्मला के अनुसार बापू ने कहा था कि हाथ, दिमाग और दिल में समन्वय हो तब ही हम आगे कदम बढ़ा पाएँगे, लेकिन आज की शिक्षा ऐसी नहीं है। आज की शिक्षा से एकांगी विकास होता है, जबकि बदलते परिप्रेक्ष्य में हमें एकांगी विकास चाहिए।