मुश्किल वक्त, कमांडो सख्त
वे जान हथेली पर रखकर चलते हैं। तड़तड़ाती गोलियों और आसपास होते धमाकों के बावजूद उनके कदम ठिठकते नहीं हैं। ऐसे जाँबाज एनएसजी कमांडो जब अपने मिशन को पूरा कर आते हैं तो उनके अधिकारियों का सीना कितना चौड़ा होता है, इसका कुछ अंदाजा तो रविवार को यहाँ एनएसजी के हेडक्वार्टर में लग ही गया, जब मुंबई से अपने काम को बखूबी अंजाम देकर यहाँ लौटे कमांडो का जोरदार स्वागत हुआ।साथियों को आपस में गले मिलते देखना भी बड़ा सुखद अहसास दे रहा था। जब इन कमांडो ने आते ही अपने सीनियरों को सेल्यूट मारा और कहा- "गुड मॉर्निंग सर, मिशन पूरा हुआ, अगला आदेश दीजिए"। ऐसे में अपार गर्व महसूस कर रहे इन अफसरों के मुँह से सिर्फ यही निकला- "शाबाश मेरे शेरों, वेल डन, तुमने अपना काम पूरा कर दिखाया।" अनुशासन और सैन्य मर्यादा निभाने के बाद फुरसत पाते ही सबको बेताबी साहस और जाँबाजी के नए कारनामे की दास्ताँ सुनने की होती है। जब कमांडो ने यह सुनानी शुरू की थी तो हरेक उन्हें घेरकर खड़ा हो गया।आतंकियों और दुश्मनों को चुटकियों में मसल देने का जज्बा रखने वाले मेजर बी. भरतसिंह साथियों में अपने चुटकलों के लिए मशहूर हैं। यहाँ पर भी नहीं चूके। ओबेरॉय होटल में आतंकियों से लोहा लेने वाले मेजर ने कहा कि ये देख रहे हो मेरे बाएँ कान पर चोट लगी है। जानते हो मैंने खुद ही अपने को जख्मी किया है। अब थोड़े दिन मेरी बीवी तो मेरे कान नहीं खींच पाएगी।वो बात अलग है कि 51 स्पेशल एक्शन फोर्स के उनके साथी कमांडो ने भी पलटवार कर दिया। उन्होंने कहा- "तब तो आपको अपने दाएँ कान पर भी चोट मारनी चाहिए थी। भाभी अब भी तुम्हारा एक कान तो खींच ही लेगी।" चारों ओर जोरदार ठहाका लगता है। शायद इस बातचीत का यही मकसद भी था।जब ये कमांडो अपनी कार्रवाई को सफलता से अंजाम देकर लौटे तो मुंबईवासियों ने इनका जोरदार स्वागत किया था। साथियों ने भी उन्हें बधाई संदेश भेजे। अन्य कमांडो मेजर आरके शर्मा भी ओबेरॉय होटल में किए गए ऑपरेशन में शामिल थे जिसमें दो आतंकियों को मार गिराया गया।गोलियों और धमाकों के कारण होटल को बड़ा नुकसान पहुँचा। मेजर शर्मा मानते हैं कि बड़ा खूबसूरत होटल था, निश्चित रूप से इस कार्रवाई में उसे नुकसान पहुँचा है, पर क्या करें हमें यह कार्रवाई कर आतंकियों को उनके किए की सजा देनी थी और बेकसूर लोगों की जानें बचानी थीं।