Last Updated :नई दिल्ली , सोमवार, 20 अक्टूबर 2014 (17:35 IST)
बस अप्रैल तक, नहीं तो करार खत्म
यदि अप्रैल 2008 तक परमाणु समझौते को लागू नहीं किया जा सका तो यह स्वतः खत्म हो जाएगा। अमेरिका के साथ इस समझौते पर बातचीत से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने 'नईदुनिया' को यह जानकारी दी।
45 देशों के परमाणु सामग्री आपूर्तिकर्ता समूह के सभी प्रमुख देशों ने अनौपचारिक तौर पर भारत को आश्वस्त किया था कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के साथ सेफगॉर्ड समझौता होने के बाद इस करार को लागू करने में परेशानी नहीं होगी।
अभी मौका है : जानकार सूत्रों का कहना है कि यदि दिसंबर अंत तक भी यदि वामपंथी दलों के साथ सहमति बन जाती है तो एटमी करार को लागू किया जा सकता है। अमेरिका ने भारत सरकार को सूचित किया है कि इस समझौते पर संसद की मुहर लगाने के लिए तीन महीने का समय चाहिए।
करार के संदर्भ में अमेरिका ने परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के साथ विचार-विमर्श पूरा कर लिया है। जरूरत पड़ने पर आठ-दस दिन के भीतर परमाणु सामग्री आपूर्तिकर्ता देशों की बैठक बुलाई जा सकती है।
आठ दिन में : आईएईए के साथ सेफगार्ड समझौते को आठ-दस दिनों के भीतर अंतिम रूप दिया जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि वामपंथी दलों के साथ बातचीत की प्रक्रिया अंतहीन नहीं होगी।
सही तरीके से पेश नहीं : उच्च पदस्थ अधिकारी ने माना कि परमाणु समझौते को सही संदर्भ में पेश किया जाता तो इतना विरोध नहीं होता। यह केवल भारत व अमेरिका के बीच नहीं बल्कि परमाणु सामग्री के व्यापार से जुड़े 45 देशों व भारत के बीच समझौता है।
अमेरिका के साथ 123 समझौता इन 45 देशों के परमाणु खेल में शामिल होने का पासपोर्ट है। चीन के बारे में सूत्रों का कहना है कि यदि कुछ अन्य प्रमुख देश परमाणु समझौते के खिलाफ होते तो चीन भारत के खिलाफ लामबंदी करने की कोशिश करता। चूँकि भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को दुनिया के लगभग सभी प्रमुख देशों ने स्वागत किया है, इसलिए चीन ने भी तय किया कि वह भी समर्थन करने वाले देशों की सूची में ही शामिल होगा।
परमाणु उर्जा सप्लायर्स देशों में केवल आयरलैंड ने ही समझौते पर अपनी आशंकाएँ जाहिर की है। रूस व फ्रांस की कुछ परमाणु उर्जा कंपनियों ने भारत में परमाणु रिएक्टर बेचने में उत्सुता दिखाई है। अमेरिका के साथ समझौते के बाद ही भारत इस अंतरराष्ट्रीय परमाणु व्यापार का हिस्सा बन सकता है।