Last Modified: नई दिल्ली (भाषा) ,
शुक्रवार, 7 अगस्त 2009 (15:31 IST)
दिशानिर्देशों के बावजूद रैगिंग जारी
उच्चतम न्यायालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कड़े दिशानिर्देशों के बावजूद रैगिंग को रोक पाने की दिशा में अब तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है और कड़ी निगरानी के बीच रैगिंग का दानव मासूम जिंदगियों को अपना शिकार बना रहा है।
शिक्षण संस्थानों में हर वर्ष दाखिला लेने वाले नए छात्रों के साथ परिचय के नाम पर उसी संस्थान के वरिष्ठ छात्रों द्वारा किए जाने वाले अभद्र व्यवहार को रैगिंग कहा जाता है। रैगिंग की यह प्रथा कब शुरू हुई यह बता पाना तो संभव नहीं है, लेकिन इसका विकृत स्वरूप पिछले कुछ वर्ष से ही सामने आया है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आम तौर पर रैगिंग का शिकार होने वाले छात्र ही अपने जूनियर्स की रैगिंग लेते हैं और यह सिलसिला चलता रहता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आनंद प्रकाश ने रैगिंग के मनोवैज्ञानिक पहलू के बारे में बताया,‘नए और पुराने छात्र-छात्राओं में पाठ्यक्रमों के इतर छुपी हुई प्रतिभा की पहचान और सहज सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से रैगिंग की शुरूआत हुई थी लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसमें हस होना शुरू हुआ और अब इसका स्वरूप विकृत हो गया।’