• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Yogi Adityanath, Narendra Modi
Written By Author डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

यूपी को पसंद आया मोदी-योगी का साथ

यूपी को पसंद आया मोदी-योगी का साथ - Yogi Adityanath, Narendra Modi
सपा और कांग्रेस ने जो नारे अपने लिए गढ़े थे, वे व्यवहार में अलग स्वरूप दिखा रहे हैं। गठबंधन ने राहुल व अखिलेश की दोस्ती को नारे में बदल दिया था। कहा गया कि 'यूपी को ये साथ पसंद है'। लेकिन चुनावी परिणाम आए तो तस्वीर बदल गई। गठबंधन का नारा नकार दिया गया। अब सच्चाई यह है कि यूपी को मोदी और योगी का साथ पसंद है। 
 
योगी ने शपथ ग्रहण से पहले ही जो रुख अपनाया, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि उन्हें मोदी की भांति एक्शन में रहना ही पसंद है। कांग्रेस-सपा गठबंधन ने दूसरा नारा दिया था- 'काम बोलता है'। यह नारा उनके लिए नुकसानदेह साबित हुआ। लेकिन योगी आदित्यनाथ जिस प्रकार के तेवर दिखा रहे हैं, उससे उनका काम बोलता दिखाई दे रहा है। इसकी शुरुआत शपथ ग्रहण से पहले ही हो गई थी। 
 
ऐसा लग रहा है कि संवैधानिक दायित्व के निर्वाह में योगी पूरी तरह मोदी के नक्शेकदम पर हैं। बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने जो प्राथमिकताएं तय की हैं, वह 'सबका साथ सबका विकास' पर आधारित हैं। जिस प्रकार मोदी ने गुजरात को दंगामुक्त बनाया, हिन्दू-मुसलमान सभी को विकास का समान अवसर उपलब्ध कराया, उसी प्रकार योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश के सभी वर्गों में विश्वास उत्पन्न करने का प्रयास किया है। यह अनुमान लगाया जा सकता है। वे सुशासन की स्थापना के लिए कटिबद्ध हैं। वे जातिवाद व भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन की स्थापना करेंगे।
 
नारे चुनाव को जीवंत बनाते हैं, उसमें आकर्षण उत्पन्न करते हैं और इसी के साथ मतदाताओं को विचार व आकलन का आधार भी उपलब्ध कराते हैं। इस मामले में सपा व कांग्रेस गठबंधन ने बाजी मारी थी। गठबंधन के पहले और बाद में ये खूब चर्चित हुए। बताया जाता है कि इसके लिए पेशेवर विशेषज्ञों का सहयोग लिया गया था।
 
उन्हीं के निर्देश पर कांग्रेस ने गठबंधन से पहले 'सत्ताईस साल, यूपी बेहाल' नारा अपनाया था। अभियान भी चला। नए प्रदेश अध्यक्ष व भावी मुख्यमंत्री के नाम भी घोषित हो गए लेकिन गठबंधन होने के साथ ही नारा बदल गया। कहा जाने लगा कि 'यूपी को ये साथ पसंद है' इस नारे की व्याख्या भी की गई। इसमें बताया गया कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव उप्र के लड़के हैं। ये कुछ घंटे तक परस्पर विरोधी थे। इन्होंने एक-दूसरे को नीचा दिखाने या हल्का बताने के लिए 'लड़का' शब्द का प्रयोग किया था। उसमें तंज था। 
 
जब गठबंधन हुआ तो यही अच्छा लगने लगा यूपी को साथ पसंद और यूपी के लड़के के माध्यम से विशेषज्ञों की टीम ने दो निशाने साधे थे कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह उत्तरप्रदेश के नहीं हैं। दूसरे मोदी की उम्र इन लड़कों के मुकाबले ज्यादा है। राहुल गांधी इस विचार को छिपा भी नहीं सके। उन्होंने एक सभा में मोदी को 'बुजुर्ग' बताया। ये बात अलग है कि राहुल चुनाव की थकान मिटाने विदेश चले गए और मोदी उसी मेहनत से अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं।
 
राहुल और अखिलेश यह समझ नहीं सके कि उनके नारे का लाभ भाजपा को मिलेगा। यूपी को नए लड़कों का साथ बिलकुल पसंद नहीं आया। इनको कहां पहुंचा दिया, यह बताने की जरूरत नहीं। इसके विपरीत उप्र को मोदी व योगी का साथ पसंद आया। 
 
मुख्यमंत्री पद पर योगी की नियुक्ति को अप्रत्याशित नहीं माना जा सकता। बताया जाता है कि चुनाव प्रचार में भाजपा प्रत्याशियों ने मोदी व शाह के बाद योगी आदित्यनाथ की मांग की, पर पार्टी ने उनको अलग से चार्टर प्लेन भी उपलब्ध कराया था। उत्तरप्रदेश में मोदी व योगी को जिस प्रकार पसंद किया गया, उससे स्थिति स्पष्ट हो जाती है।
 
उत्तरप्रदेश के लोगों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से बड़ी उम्मीदें हैं। यहां के लोगों को विश्वास है कि यह साथ उत्तरप्रदेश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाएगा। सपा-कांग्रेस गठबंधन का दूसरा बड़ा नारा था- 'काम बोलता है'। जिस प्रकार यूपी को साथ पसंद का नारा भाजपा को प्रकारांतर से लाभ पहुंचाने वाला साबित हुआ, उसी प्रकार 'काम बोलता है' ने भी बैक फायर किया। गठबंधन को इसका नुकसान हुआ, क्योंकि काम से ज्यादा जमीनी स्तर पर नाकामियां बोल रही थीं। इसका नुकसान तो होना ही था। 
 
योगी ने शपथ ग्रहण से पहले शीर्ष पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि जीत के जश्न में उपद्रव बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। यह बहुत बड़ा निर्देश था। यह प्रशासन ही नहीं, अपनी पार्टी के लोगों को भी संदेश था। इस आधार पर ही आदित्यनाथ और अखिलेश के बीच का अंतर समझा जा सकता है। अखिलेश के शपथ ग्रहण समारोह के समाप्त होते ही सपा कार्यकर्ताओं को सख्त निर्देश देते तो बड़ा संदेश जाता लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। सपा को नुकसान भी उठाना पड़ा। 
 
शपथ ग्रहण के बाद योगी पूरी तरह एक्शन में दिखाई दिए। वे चाहते हैं कि काम पिछली सरकार की तर्ज पर नहीं बोलना चाहिए, वरन सुशासन का काम बोलना चाहिए। मुख्यमंत्री इसके प्रति सावधान हैं। उन्होंने मंत्रियों को व्यर्थ बयानबाजी से बचने की सलाह दी। सपा सरकार में आजम खां जैसे कई मंत्री बयानबाजी के लिए चर्चा में रहते थे, योगी ऐसी स्थिति नहीं चाहते। जातिवाद और भ्रष्टाचार उत्तरप्रदेश की बड़ी समस्या बन चुकी है। पिछले डेढ़ दशक से यहां के प्रशासन में इसने गहरी जड़ें जमा ली हैं। जातिवाद और भ्रष्टाचार का काम सिर चढ़कर बोलता था। योगी इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं। नियुक्तियों में पारदर्शिता होगी भ्रष्टाचार के प्रति भी उन्होंने जीरो टॉलरेंस की बात कही है। 
 
स्पष्ट है कि योगी उत्तरप्रदेश प्रशासन को मोदी के अंदाज में चुस्त-दुरुस्त बनाना चाहते हैं। इस साथ में अन्य भी समानताएं हैं। मोदी की भांति योगी भी 18 घंटे कार्य करने में विश्वास रखते हैं। योगी ने विधिवत संन्यास ग्रहण किया है। संन्यास के बाद व्यक्ति परिवार, जाति, निजी, सुख-सुविधाओं का त्याग कर देता है। नरेन्द्र मोदी अपने आचरण से संन्यासी की भांति ही रहते हैं। इस प्रकार मोदी व योगी में अनेक समानताएं हैं। यह अच्छा साथ है तथा यूपी ने इसी को पसंद किया है।
ये भी पढ़ें
इस गर्मी के लिए बनाएं घर पर ठंडाई का शर्बत