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  4. Terrorism and its masters will have to be given a strong answer

आतंकवाद और उसके आकाओं को देना होगा कड़ा जवाब

terrorism
Pahalgam terrorist attack: जब निर्दोषों का लहू ज़मीन पर बहता है, तब मानवता कांप जाती है। हाल ही में पहलगाम में जो आतंकवादी घटना घटी, वह न केवल एक कायरता का उदाहरण थी, बल्कि सभ्यता और मानवीयता पर किया गया वह क्रूर प्रहार था, जो सदियों तक शर्म का कारण बना रहेगा। जिस धरती ने प्रेम, संगीत और संस्कृति को जन्म दिया, वहां आज मातम की चीखें गूंज रही हैं। यह कैसी विचारधारा है, जो मासूमों की जान लेकर अपने अस्तित्व को स्थापित करना चाहती है?
 
आतंकवाद किसी धर्म का संघर्ष नहीं, बल्कि यह बुरे लोगों का सबसे घिनौना रूप है। जो लोग हथियार उठाकर, निर्दोषों का खून बहाकर जन्नत और 72 हूरों का ख्वाब देखते हैं, वे दरअसल अपने लिए दोजख ही रचते हैं। इस दुनिया में भी और दूसरी दुनिया में भी। जो लोग यह मानते हैं कि बंदूक के दम पर विचार बदल सकते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि इतिहास ने आतंकियों को केवल घृणा और धिक्कार दी है।
 
जिस मां का बेटा तिरंगे में लिपटकर आया, उसे देखकर हर किसी का कलेजा दहल गया। जो बहन राखी का सपना संजो रही थी, उसका भाई अब लौटेगा ही नहीं। कई मांगें उजड़ गईं, बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया। क्या कभी उन लोगों की पीड़ा और सिसकियां हैं, जो आतंकवाद के समर्थक हैं? शायद नहीं, क्योंकि उनकी आत्मा तो पहले ही मर चुकी है।
 
आतंकवाद की जड़ें केवल सीमा पार से नहीं आतीं — वे उस शिक्षा, उस कट्टरता और उस मौन समर्थन से भी पोषित होती हैं, जो हमारे समाज में छिपकर सांप की तरह पली-बढ़ी हैं। यह कट्टर सोच युवाओं को ऐसे भ्रम में डाल देती है कि वे अपनी ऊर्जा को विनाश की दिशा में मोड़ देते हैं। इस विनाशकारी सोच को केवल शिक्षा और विवेक के प्रकाश से ही मिटाया जा सकता है।
 
जिन्हें लगता है कि शहीद बनने के लिए बम बांधना जरूरी है, उन्हें यह समझना होगा कि सच्चा बलिदान जीवन देने में है, जीवन लेने में नहीं। सच्चा शहीद वह है, जो दूसरों के लिए जिये, उनके दुख को बांटे और उनके सुख के लिए अपने स्वार्थों का त्याग करे। हथियार उठाना आसान है, लेकिन किसी के आंसू पोंछना, उनका दर्द समझना और उनके साथ खड़ा होना – यही सच्चे साहस और इंसानियत की पहचान है।
 
अब भारत वह देश नहीं रहा जो हर बार चुपचाप सहता रहे। आज का भारत शांत है, लेकिन कमज़ोर नहीं। हमारी सहनशीलता को हमारी कमजोरी समझना भारी भूल होगी। इतिहास ने कई बार दिखाया है — जब भारत जागता है, तो दुश्मनों की नींव हिल जाती है। हमने जंग भी जीती हैं और दुनिया को शांति का रास्ता भी दिखाया है। अब समय आ गया है कि हम आतंक को उसी भाषा में उत्तर दें, जिसे वह समझता है। कठोरता की भाषा।
 
पाकिस्तान जैसे राष्ट्र जो आतंकवाद को राजनीतिक उपकरण बना चुके हैं, उन्हें अब वैश्विक मंच पर पूरी तरह बेनकाब करना जरूरी हो गया है। उन्हें यह बताना होगा कि अब भारत केवल आंसू बहाने वाला नहीं, बल्कि उन आंसुओं का हिसाब लेने वाला देश है। यह केवल सैनिकों की नहीं, हर भारतवासी की लड़ाई है। कलम से, विचार से और संकल्प से। आतंकवादियों के साथ उनके आकाओं को भी कड़ा जवाब देना होगा। 
 
यह लड़ाई सिर्फ़ सीमाओं की रक्षा की ही नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी के भविष्य की रक्षा की भी है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंक के बीज हमारे समाज में ना पनपें। शिक्षा में समरसता, नीति में कठोरता और समाज में जागरूकता — यही आतंक के विरुद्ध सबसे बड़ा अस्त्र है। जो लोग आज राष्ट्र और धर्म के नाम पर चुप हैं, वे कल सबसे पहले निशाना बनेंगे। 
 
आज ज़रूरत इस बात की है कि हम सब एक स्वर में आतंकवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाएं। नफरत के सौदागरों को उनके ही आईने में उनका चेहरा दिखाएं। यह वक्त सिर्फ़ दुख मनाने का नहीं, बल्कि जागने और जगाने का भी है। आइए, हम संकल्प लें कि आतंकवाद को न हम सहेंगे, न उसे पनपने देंगे। यह सिर्फ़ सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि हर उस जागरूक नागरिक का धर्म है, जो मानवता में विश्वास रखता है।