-राजशेखर व्यास
सुभाष बाबू की गणना हमारे इतिहास के सर्वाधिक सम्मानित व्यक्तियों में होती है। वे कांग्रेस के भी अध्यक्ष रहे थे और आजाद हिंद फौज के अध्यक्ष भी। विचार-भेद/मत-भेद के बावजूद गांधीजी को उन्होंने हमेशा सम्मान दिया और शायद, महात्मा गांधी को सबसे पहले राष्ट्रपिता कहने वाले भी सुभाष बाबू ही थे। प्रस्तुत है 6 जुलाई, 1944 को आजाद हिंद फौज के रेडियो से प्रसारित सुभाष के अंतिम भाषण के कुछ अंश:
महात्माजी,
अब आपका स्वास्थ्य पहले से कुछ बेहतर है और आप थोड़ा-बहुत सार्वजनिक काम फिर से करने लगे हैं, अत: मैं भारत से बाहर रह रहे राष्ट्रभक्त भारतीयों की योजनाओं और गतिविधियों का थोड़ा-सा ब्यौरा आपको देना चाहता हूं। मैं आपके बारे में भी भारत से बाहर रह रहे आपके देशवासियों के विचार आप तक पहुंचाना चाहता हूं। और इस बारे में मैं जो कुछ कह रहा हूं वह सत्य है-और केवल सत्य है।
भारत और भारत के बाहर अनेक भारतीय हैं, जो यह मानते हैं कि संघर्ष के ऐतिहासिक तरीके से ही भारत की आजादी प्राप्त की जा सकती है। ये लोग ईमानदारी से यह अनुभव करते हैं कि ब्रिटिश सरकार नैतिक दबावों अथवा अहिंसक प्रतिरोध के समक्ष घुटने नहीं टेकेगी, फिर भी भारत से बाहर रह रहे भारतीय, तरीकों के मत-भेद को घरेलू मत-भेद जैसा मानते हैं।
जबसे आपने दिसंबर 1929 की लाहौर कांग्रेस में स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित कराया था, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभी सदस्यों के समक्ष एक ही लक्ष्य था। भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों की दृष्टि में आप हमारे देश की वर्तमान जागृति के जनक हैं और वे इस पद के उपयुक्त सम्मान आपको देते हैं। दुनिया-भर के लिए हम सभी भारतीय राष्ट्रवादी हैं। हम सभी भारतीय राष्ट्रवादियों का एक ही लक्ष्य है, एक ही आकांक्षा है। 1941 में भारत छोड़ने के बाद मैंने ब्रिटिश प्रभाव से मुक्त जिन देशों का दौरा किया है, उन सभी देशों में आपको सर्वोच्च सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है-पिछली शताब्दी में किसी अन्य भारतीय राजनेता को ऐसा सम्मान नहीं मिला।