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Written By Author राम यादव
Last Updated : शनिवार, 27 अगस्त 2022 (17:00 IST)

रुश्दी पर हमले के बीच खूब बिक रही है 'शैतानी आयतें', साहित्यकारों का भी मिला साथ

रुश्दी पर हमले के बीच खूब बिक रही है 'शैतानी आयतें', साहित्यकारों का भी मिला साथ - Salman Rushdie is getting the support of Western litterateurs
सलमान रुश्दी की हत्या के 12 अगस्त को हुए निंदनीय प्रयास ने पश्चिमी जगत के ग़ैर-मुस्लिम ही नहीं, बहुत से मुस्लिम लेखकों और साहित्यकारों को भी स्तब्ध कर दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी सहित कई देशों के क्लब जैसे संगठन, सभाएं आदि आयोजित कर उनके प्रति अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर रहे हैं।

सलमान रुश्दी की हत्या के कुत्सित प्रयास को पश्चिमी देशों में किसी साहित्यकार की हत्या के प्रयास से अधिक स्वयं साहित्यिक स्वतंत्रता की हत्या के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। इसीलिए रुश्दी के स्वास्थ्य के प्रति अपनी चिंता और उनकी रचनाओं के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने की सभाओं में केवल ग़ैर-मुस्लिम लेखक, पत्रकार और साहित्यकार ही देखने में नहीं आते, बहुत से मुस्लिम कलमवीर भी रुश्दी के प्रति अपनी सद्भावनाएं व्यक्त करने से नहीं चूकते।

रुश्दी के समर्थन में पहली बहुचर्चित एक सभा शुक्रवार, 19 अगस्त को अमेरिका में न्यूयॉर्क की पब्लिक लाइब्रेरी में हुई। उसे स्टैंड विद सलमान (सलमान का साथ दें) नाम दिया गया था। सभा का आयोजन लेखकों-साहित्यकारों के अमेरिकी क्लब और रुश्दी की पुस्तकों के प्रकाशक पेंगुइन रैंडम हाउस ने मिलकर किया था। कई जाने-माने लेखकों व साहित्यकारों ने रुश्दी की पुस्तकों में से लिए गए उद्धरण पढ़कर सुनाए। किसी अप्रिय घटना को टालने के लिए कुत्तों और पिस्तौल के साथ पुलिसकर्मी भी वहां तैनात थे।

कला मनोरंजन नहीं है:  इस सभा में कई श्रोता रुश्दी की पुस्तकों के बड़े-बड़े फ़ोटो वाली तख्तियां लिए हुए थे। एक पर लिखा था- 'कला मनोरंजन नहीं है। अपने सर्वोत्तम रूप में वह क्रांतिकारी होती है।' एक दूसरी तख्ती पर लिखा था- 'यदि हम अपनी स्वतंत्रता के प्रति आश्वस्त नहीं हैं, तो हम स्वतंत्र ही नहीं हैं।'

सभा के आरंभ में उसे संबोधित करते हुए पेन अमेरिका की प्रमुख सुज़न नोसल ने कहा कि भावी हत्यारे ने सलमान रुश्दी की गर्दन में जब छुरा भोंका, तब उसने एक प्रसिद्ध लेखक के शरीर को ही नहीं कोंचा था। उसने हमें यह पहचानने का करारा झटका भी दिया था कि अतीत का संत्रास हमारे वर्तमान का भी पीछा कर रहा है। उसने हमारी सुखानुभूति को झकझोर दिया है और हमें अपनी स्वतंत्रता की भंगुरता पर मनन करने के लिए बाध्य कर दिया है। 33 साल पुराना बदला। भावी मौत का एक आदेश शब्दों के विरुद्ध युद्ध की एक अंतहीन घोषणा बनकर आज भी जीवंत है। हम सलमान के साथ खड़े हैं। उन्हें आत्मिक बल देने के लिए और अपने आपको भी सुदृढ़ बनाए रखने के निश्चय के लिए।

बर्लिन में भी एकजुटता सभा: बर्लिन की ओर से एक ऐसी ही सभा रविवार, 21 अगस्त को जर्मनी की राजधानी बर्लिन के प्रसिद्ध रंगमंच थिएटर बेर्लिनर अंसांबल के ऩए रंग भवन में हुई। 200 से अधिक श्रोता टिकट ख़रीदकर इस एकजुटता सभा में शामिल हुए। कोई 1 दर्जन लेखकों आदि ने उसे संबोधित किया। रुश्दी की पुस्तकों से लिए गए उद्धरण भी सुनाए गए। एक उल्लेखनीय बात यह भी रही कि वक्ताओं और श्रोताओं में बहुत से मुस्लिम भी थे।

बेर्लिनर अंसांबल के महानिदेशक ओलिवर रेज़े ने वक्ताओं और श्रोताओं का स्वागत करते हुए कहा कि सुनिश्चित इतना ही है कि समय के साथ रुश्दी ने भी अपने आपको सुरक्षित समझने का भ्रम पाल लिया था। स्वयं एक मुस्लिम, वकील और मावनाधिकारवादी, तुर्की मूल की सेयरान अती ने कहा कि उन्होंने सलमान रुश्दी की पुस्तक 'शैतानी आयतें' पढ़ी है। उन्हें तो वह किसी के लिए भी अपमानजनक नहीं लगी। अती के शब्दों में उसमें न तो अल्लाह का और न ही पैगंबर का अपमान है। अपने मुस्लिम बंधुओं को संबोधित करते हुए अती ने आग्रह किया कि हमेशा अपमानित होने का ये रोना-धोना छोड़ो!

स्वाभिमान के प्रश्नों को महत्व देना चाहिए: रुश्दी की आत्मकथा जोसेफ़ एंटन के कुछ अंश पढ़कर सुनाते हुए सेयरान अती ने रुश्दी के बारे में कहा कि वे इस्लामी धर्मभीरु भले ही न थे, थे तो इसी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के। उन्हें यही शिक्षा मिली थी कि स्वाभिमान के प्रश्नों को महत्व देना चाहिए। हमेशा किसी के पैरों पर पड़ना या छिपते फिरना कोई सम्मानजनक जीवन नहीं होता। अती ने अपनी बात का अंत इन शब्दों के साथ किया कि सलमान, तुम्हें शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं है! मैं तुम्हारे लिए सबसे अच्छे की शुभकामना करती हूं!

बर्लिन की एकजुटता सभा का शीर्षक था- 'हिंसा का जवाब शब्दों से।' इस सभा में सुनाए गए अधिकतर उद्धरण जोसेफ़ एंटन और 'शैतानी आयतें' से लिए गए थे। 1993 में रुश्दी की जान बचाने के लिए उन्हें अपने घर में छिपाने वाले जर्मनी में कोलोन शहर के निवासी और प्रसिद्ध लेखक ग्युंटर वालराफ़ ने बर्लिन की सभा को वीडियो द्वारा संबोधित किया।

उन्होंने जोसेफ़ एंटन में से लिया गया अपनी पसंद का एक अंश सुनाया। बर्लिन के जर्मनी में रहने वाले तु्र्की के मुस्लिम सदस्यों ने 'शैतानी आयतें' के अंश सुनाना अधिक पसंद किया। उन्होंने जान-बूझकर अधिकतर वे अंश चुने, जो इस्लामी कट्टरपंथियों को सबसे अधिक उत्तेजित करते हैं। 'शैतानी आयतें' तुर्की में प्रतिबंधित है।

'शैतानी आयतें' खूब बिक रही हैं: कुछ समय पूर्व तक बर्लिन के अध्यक्ष रहे तुर्कवंशी देनीस युइज़ेल ने बताया कि जर्मन भाषा में 'शैतानी आयतें' की सारी प्रतियां बिक गई हैं। पेगुइन रैंडम प्रकाशनगृह इस समय जर्मन अनुवाद की 25,000 प्रतियों का एक नया संस्कारण छपवा रहा है। 25 अगस्त से नया संस्करण दुकानों में उपलब्ध हो जाएगा।

रुश्दी की पुस्तकों में उनके अनुवादकों के नाम देना बंद हो गया है, क्योंकि कई अनुवादकों पर जानलेवा हमले हो चुके हैं। उदाहरण के लिए 1991 में जापानी भाषा के अनुवादक हितोशी इगाराशी की हत्या कर दी गई थी। 1993 में इतालवी भाषा के अनुवादक एत्तोरे काप्रिओलो को और नॉर्वे के एक प्रकाशक विलियम नीगार्द को घायल कर दिया गया था।

तुर्की में एक सबसे अधिक बिक्री वाले 'दैनिक जम्हूरियत' के प्रधान संपादक रह चुके और अब जर्मनी में निर्वासित जीवन बिताने पर मजबूर जान द्युंदार ने बताया कि वहां के 'अयदिनलीक' नाम के अख़बार के प्रकाशक रहे अज़ीज़ नेसीन, सलमान रुश्दी की पुस्तकों का अनुवाद करवाने की तैयारी कर रहे हैं।

द्युंदार ने बर्लिन की सभा में यह रहस्योद्घाटन भी किया कि 2 जुलाई 1993 के दिन तुर्की के सीवास नगर के एक होटल में एक सांस्कृतिक सभा हो रही थी। अज़ीज़ नेसीन भी उसमें भाग ले रहे थे। सभा पर धार्मिक कट्टरपंथियों की एक भीड़ ने हमला बोल दिया। कई कलाकारों, लेखकों और साहित्यकारों सहित 37 लोग मारे गए थे।

एकजुटता की भी एक सीमा है: बर्लिन में एकत्रित लेखकों, साहित्यकारों और पत्रकारों को दुख इस बात का था कि वे सलमान रुश्दी की सीधे-सीधे कोई सहायता नहीं कर सकते, उनके प्रति अपनी केवल भावनात्मक एकजुटता
दिखा सकते हैं, अभिव्यक्ति की उनकी स्वतंत्रता पर बल दे सकते हैं, लोगों को उनकी पुस्तकें पढ़ने और सच्चाई खुद जानने की सलाह दे सकते हैं।

रुश्दी के प्रति एकजुटता और समर्थन दिखाने के लिए बर्लिन में हुई सभा की ओर से कुछ समय पूर्व तक बर्लिन के अध्यक्ष रहे देनीस युइज़ेल ने बताया कि रुश्दी को इस सभा के आयोजन से अवगत करा दिया गया था। और उन्होंने इस पर अपनी प्रसन्नता जताई थी।

सुनी-सुनाई और सच्चाई: सलमान रुश्दी का शारीरिक और मानसिक दुख-दर्द तो फ़िलहाल कोई ले नहीं सकता, पर उनकी हत्या के प्रयास और उस प्रयास की निंदा में हो रहे स्वत:स्फूर्त आयोजन उनकी पुस्तकों के प्रति जिज्ञासा और पुस्तकों की बिक्री बढ़ाने में भरपूर सहायक अवश्य हो रहे हैं। इससे सुनी-सुनाई पर आंख मूंदकर विश्वास करने की प्रवृत्ति को कुछ-न-कुछ आघात भी अवश्य लगेगा।

कुछ लोग यह भी ज़रूर सोचेंगे कि जिस अल्लाह को अकबर (परम् महान) कहा जाता है, क्या वह इतना दीन-हीन भी है कि किसी के कुछ कहने या कोई पुस्तक लिख देने भर से आहत और अपमानित हो जाए! क्या अल्लाह नाम की उस शाश्वत व अलौकिक सत्ता के मान-सम्मान को हम अशाश्वत व पूर्णत: लौकिक लोग कोई सुरक्षा प्रदान सकते हैं जिससे हम खुद ही दिन-रात अपनी ही सुरक्षा की प्रार्थना करते रहते हैं?

(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)