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राजबाड़ा टू रेसीडेंसी

राजबाड़ा टू रेसीडेंसी - Rajbada to Residency
अरविंद तिवारी
 
बात शुरू करते हैं यहां से
सरकार तुम चलाओ संगठन हमें चलाने दो, कुछ इसी तर्ज पर इन दिनों मध्यप्रदेश भाजपा काम कर रही है। संगठन में हो रही नियुक्तियों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कोई दखल नहीं। जैसा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत चाह रहे हैं, वही हो रहा है।

पहले की तरह यहां सरकार की कोई दखलंदाजी नहीं। हां, इतना जरूर होता है कि कार्यकर्ताओं से जो फीडबैक संगठन तक पहुंचता है वह सरकार को बता जरूर दिया जाता है। सरकार भी कुछ इसी स्टाइल में चल रही है। यानी शिवराज सिंह चौहान का वन मैन शो। हां, जनता से जुड़े सरकार के अहम फैसले वे संगठन के ध्यान में जरूर ला देते हैं। इतना तालमेल तो जरूरी भी है।
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देवास जिले की कांग्रेस राजनीति में सज्जन सिंह वर्मा और राजेंद्र सिंह बघेल को एक दूसरे का घोर विरोधी माना जाता है। इन्हें एक जाजम पर लाने के तमाम प्रयास विफल हो चुके हैं लेकिन इस बार बर्फ पिघल रही है। हाटपिपलिया मैं उपचुनाव होना है और कमलनाथ के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न है। वर्मा कमलनाथ के खास सिपहसालार हैं। नेता की प्रतिष्ठा यानी उनकी प्रतिष्ठा।

यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है कि यहां से कांग्रेस के पास श्रेष्ठ विकल्प राजवीर सिंह बघेल यानी राजेंद्र सिंह बघेल के बेटे हैं। तमाम गिले-शिकवे भुलाकर वर्मा उम्मीदवारी के मामले में राजवीर की मदद कर रहे हैं। हकीकत भी यही है कि वर्मा बघेल के एक हुए बिना कांग्रेस की यहां गति नहीं है।  इसीलिए कमलनाथ ने उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे राजवीर से कहा था कि एक बार सज्जन से जरूर मिल लेना।
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2006 बैच के आईएएस सुदाम खाड़े जनसंपर्क आयुक्त और मध्यप्रदेश माध्यम के एमडी बने हैं। 2007 बैच के आईएएस ओपी श्रीवास्तव पहले से इसी विभाग में संचालक और मुख्यमंत्री के अपर सचिव भी हैं। खाड़े यहां मुख्यमंत्री की पसंद पर लाए गए हैं, इसलिए दबदबा भी उन्हीं का रहना है। जो हालात हैं उसमें श्रीवास्तव की ज्यादा रुचि यहां के बजाय मंत्रालय में होना स्वाभाविक है।

वैसे जनसंपर्क विभाग में आयुक्त आईएएस हो और संचालक विभागीय हो तो ही बेहतर तालमेल से काम चल पाता है और तभी मंत्री भी खुश रहते हैं। देखना यह है कि आने वाले समय में विभाग का कौन अधिकारी संचालक की भूमिका का निर्वहन करता नजर आता है। इंतजार इस बात का भी है कि मंत्रिमंडल विस्तार में जनसंपर्क विभाग किसके पास जाता है।          
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सीएम के सीएस या सीएस के सीएम, यह चर्चा इन दिनों वल्लभ भवन के गलियारों में जोरों पर है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि ना तो प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ना ही ओएसडी मनीष पांडे मुख्यमंत्री की पसंद के कारण पांचवी मंजिल पर पहुंचे। ऐसे ही कुछ और नाम भी हैं।

रस्तोगी को सीएस की पसंद माना जा रहा है तो पांडे बारास्ता संघ मुख्यमंत्री सचिवालय पहुंचे। कुछ छोटे-मोटे नामों को छोड़ दिया जाए तो ओएसडी सत्येंद्र खरे की नियुक्ति को खालिस शिवराज के खाते में माना जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है और इसके पीछे कारण क्या हैं, इसकी पड़ताल शुरू हो गई है।            
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इंदौर में सेवाएं दे रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के तीन अफसर आने वाले दिनों में अलग-अलग जिलों में कलेक्टर की भूमिका में नजर आ सकते हैं। कोरोना संक्रमण के कठिन दौर में अस्पतालों से तालमेल के मामले में रात दिन एक करने वाले चंद्रमौली शुक्ला देवास कलेक्टर हो सकते हैं।

पीपीई किट्स के मामले में प्रदेश को राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान दिलाने वाले एकेवीएन एमडी कुमार पुरुषोत्तम का नाम भी मालवा निमाड़ के किसी जिले की कलेक्ट्री के लिए ही आगे बढ़ा है। तीसरे अफसर हैं कलेक्टर मनीष सिंह के विश्वस्त साथी की भूमिका निभा रहे अपर कलेक्टर दिनेश जैन। जैन जरूर मालवा निमाड़ से बाहर छलांग लगा सकते हैं।           
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महापौर रहते हुए जिनके मुंह में दही जमा होने की चर्चा आम थी लॉकडाउन के दौर में उन्ही कृष्ण मुरारी मोघे की जबरदस्त सक्रियता को उनके साथ ही राजनीति करने वाले ही समझ नहीं पा रहे हैं। सक्रियता तक तो ठीक है लेकिन इसे जिस तरह प्रचारित किया जा रहा है और इसके लिए बकायदा मैनेजमेंट को अनदेखा नहीं किया जा सकता। ऐसा कोई विषय नहीं होगा, जिसे मोघे ने इस दौर में टच नहीं किया हो। निकट भविष्य में कोई चुनाव भी नहीं होना है, हाउसिंग बोर्ड में वे एक अच्छी पारी खेल चुके हैं, संगठन में उनका जो जलवा रहा है वह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है। ऐसे में उनका अगला ठिकाना क्या होगा, यह जानना जरूरी है। वैसे किस्मत के धनी मोघे फिर कोई नया मुकाम हासिल कर लें तो ताज्जुब नहीं होगा।
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इंदौर पुलिस के आला अफसर उस मातहत की तलाश में जुटे हैं, जिसने लॉकडाउन के दौर में चिकन खाने का रिकॉर्ड तोड़ दिया। अफसरों तक जो जानकारी पहुंची है उस पर गौर किया जाए तो उक्त अफसर अपने कुछ साथियों के साथ इस दौर में 27000 रू से ज्यादा के देशी चिकन और कड़कनाथ डकार गए। जरा आप भी दिमाग लड़ाइये कि आखिर यह अफसर है कौन।              
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अब बात मीडिया की
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- पत्रिका समूह ने अपना टीवी चैनल समेटना शुरू कर दिया है।  अभी मध्य प्रदेश से शुरुआत की है फिर राजस्थान का नंबर लगेगा।
- मध्यप्रदेश की आवाज नाम से एक नया रीजनल चैनल जल्दी ही अवतरित होगा। इसके सर्वे सर्वा अतुल जैन बताए जा रहे हैं।
- स्वास्थ्य और उद्योग जैसी महत्वपूर्ण बीट पर अच्छी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ साथी प्रदीप मिश्रा अब दैनिक अग्निबाण की रिपोर्टिंग टीम का हिस्सा नहीं हैं।
- ऐसी खबर है कि बेबाक समीक्षा के लिए ख्यात आदिल सईद फिलहाल प्रभात किरण में सेवाएं नहीं दे रहे हैं।
-अच्छी मैदानी पकड़ वाले बेहद परिश्रमी साथी लखन शर्मा के पत्रिका समूह की रिपोर्टिंग टीम का हिस्सा ना रहने की खबर सामने आ रही है।
- कई चैनल्स की लांचिंग करवा चुके श्रीराम तिवारी फिर एक नया चैनल लेकर आ रहे हैं चैनल का नाम जल्दी तय हो जाएगा।
 
बस इतना ही फिर मिलते हैं, जल्दी ही...
     
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
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