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  4. Pune Independent Theater carrying forward the tradition of Hindi drama

हिंदी नाटक की परंपरा को आगे बढ़ा रहा पुणे का ‘स्‍वतंत्र थियेटर’

Theater
रंगमंच की सम्मोहकता यह होती है कि वह हर घटनाक्रम को इतने नाटकीय अंदाज़ में पेश करता है कि सीधे दिल में उतर जाता है, लेकिन ऐसा करते हुए वह इतना नाटकीय भी नहीं हो सकता कि झूठ ही लगने लगे। इतिहास के पन्नों से किरदारों को उठाते हुए तो उसकी विश्वसनीयता को बरकरार रखने की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है और चुनौती भी, क्योंकि ऐतिहासिक घटनाक्रम रखते हुए नाटक की रंजकता भी रखनी होती है और ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ भी नहीं की जा सकती।

लंबे-लंबे संवाद, ऐतिहासिक तथ्य, पात्र, स्थान और परिस्थिति को रखने में उसे लिखने वाले की भूमिका अधिक सजग होती है, क्योंकि उसे तथ्य रखने हैं और पात्रों के साथ न्याय भी करना है। मराठी लेखक वसंत कानेटकर का बहुचर्चित नाटक है ‘इथे ओशाळला मृत्यु’ जिसका हिंदी अनुवाद ‘सिहर उठी थी मौत यहां’ को प्रस्तुत किया पुणे की संस्था ‘स्वतंत्र थियेटर’ ने। सांस्कृतिक कार्य संचालनालय द्वारा आयोजित 61वीं महाराष्ट्र राज्य हिंदी नाट्य स्पर्धा का और पुणे के पं. जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक भवन में इसकी प्रस्तुति हुई।

छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने अल्प शासन काल में कुल 210 युद्ध किए और हर बार विजयी रहे। उनके पराक्रम से औरंगजेब और उसकी लगभग 8 लाख की सेना बौखला उठी थी और उसने बड़ी क्रूरता से संभाजी की हत्या कर दी थी। दो पंक्तियों में समा जाए न तो यह इतना छोटा इतिहास है न संभाजी (शंभू) महाराज की मनोदशा को केवल दो पंक्तियों में समेटा जा सकता है। कानेटकर लिखित उक्त नाटक में संभाजी महाराज के साथ उनकी पत्नी येसूबाई, मित्र और सलाहकार कवि कलश और औरंगजेब तथा उनके आसपास के कई किरदारों की मनोदशा भी अभिव्यक्त होती है।

मुगलों को लगता था कि किसी मैदान में आमने-सामने युद्ध होता तो वे निश्चित जीत जाते, लेकिन युद्ध ऐसा था कि मराठों का स्थान पहाड़ के निचले हिस्से में था और पहाड़ के पास के मैदानों में मुगल डेरा जमाए थे। ऐेसे में सात सालों तक आघात-प्रतिघात का दौर चलता रहा। अंततः संभाजी और कवि कलश को बंदी बना लिया गया और मरणानंतक यातनाओं का सिलसिला चल पड़ा।

पुणे के युवराज शाह द्वारा निर्मित और अभिजीत चौधरी द्वारा निर्देशित इस नाटक का संगीत धनश्री हेबलीकर ने दिया था। पुणे में स्वतंत्र थियेटर अपने इस ध्येय वाक्य को लेकर चलता है कि कला का काम समाज में संतुलन बनाए रखना है और इस प्रक्रिया में अभिनेता मुख्य भूमिका निभाते हैं। सन् 2007 में अभिजीत चौधरी, धनश्री हेबलीकर और युवराज शाह ने इस समूह की स्थापना की थी। उससे दो साल पहले अभिजीत और धनश्री की मुलाकात हुई थी, तब पुणे में मराठी थियेटर का बोलबाला था। इन दोनों ने उसी समय केवल हिंदी में थियेटर करने का निर्णय लिया। समूह की विधिवत् स्थापना 15 अगस्त 2007 को हुई। तब से स्वतंत्र थियेटर हर साल थियेटर उत्सव तथा हर दूसरे साल बाल थियेटर फ़ेस्टिवल का आयोजन करता आ रहा है।
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