मार्च के दूसरे सप्ताह में भारतीय नौ सेना की 'अंडमान निकोबार कमान' ने एक बहुराष्ट्रीय मेगा आयोजन 'मिलन 2018' की मेजबानी की। 'मिलन' विभिन्न देशों की तटीय नौसेना का एक समूह है, जो दो वर्ष में एक बार नौसैनिक अभ्यास करता है। 'मिलन' का उद्देश्य नौसैनिक अभ्यास और पेशेवर संवाद के माध्यम से साथी देशों के बीच नौसैनिक सहयोग बढ़ाना है।
यह आयोजन सहयोगी नौसेनाओं के बीच संबंधों को मजबूती से विकसित करने और आपसी तालमेल को बढ़ाने का एक सुअवसर होता है। 'मिलन' की शुरुआत दो दशक पूर्व सन् 1995 में हुई थी जब भारत के साथ चार अन्य देशों ने अभ्यास में भाग लिया था। कार्यक्रम में संवाद और अभ्यास की गुणवत्ता श्रेष्ठ होने से इसकी ख्याति बढ़ती गई और अन्य देशों ने इसके साथ जुड़ना आरम्भ किया।
यह उल्लेखनीय है कि इस वर्ष सोलह देशों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया। अब यह क्षेत्रीय आयोजन न होकर एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन बन चुका है। भारतीय नौसेना के प्रवक्ता कैप्टन डीके शर्मा के अनुसार कि यह मूल रूप से समान विचारधारा और एक जैसे लक्ष्यों वाली नौसेनाओं का सामूहिक सम्मलेन है। हम समुद्री सुरक्षा तथा खोज और बचाव पर एक साथ काम करेंगे और एक-दूसरे से सीखेंगे।
अपनी समुद्री सीमाओं को सुरक्षित रखने और हिन्द महासागर में निरंतर गश्त लगाने के उद्देश्य से भारत अपनी नौसैनिक क्षमताओं को बुलंद करने का प्रयास कर रहा है क्योंकि हिन्द महासागर एक महत्वपूर्ण वैश्विक व्यापारिक मार्ग है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह के तट पर 11 से 13 मार्च तक 'मिलन-2018' के तत्वाधान में सामूहिक व्यायाम का समुद्री चरण आयोजित हुआ। इस वर्ष के आयोजन का ध्येय वाक्य था- सागरों के बीच मैत्री। भारत सहित सोलह देशों के 19 जहाजों ने भाग लिया।
इस अभ्यास में भाग लेने वाले विदेशी जहाजों में ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, सिंगापुर,श्रीलंका और थाईलैंड के जहाज थे। भारत की ओर से आईएनएस सह्याद्री, ज्योति, किर्च, कुलीश, सरयू, केसरी, बारटांग, बंगारम और आईएनएलसीयूएल 51 जैसे जहाज शामिल थे। आयोजन में खोज और बचाव, दुर्घटना निकासी, हेलीकाप्टर संचालन, उच्च गति से नाव संचालन इत्यादि जैसे अभ्यास शामिल किए गए। तकनीक और क्षमता बढ़ाने वाले विचारों का आदान प्रदान हुआ।
'मिलन' में युद्धाभ्यास के आलावा अनेक रंगारंग कार्यक्रम व खेल-कूद की स्पर्धाएं भी रखी जाती हैं ताकि भाग लेने वाले देशों की सेनाओं के जवानों और उनके अधिकारियों के बीच बेहतर तालमेल हो सके। इन सब बातों से स्पष्ट है कि यह आयोजन किसी राष्ट्र अथवा किसी सामरिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जाता है, किंतु परेशानी वाली बात है यह है कि चीन और पाकिस्तान को यह आयोजन खटकता है।
चीन के अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने इस आयोजन की आलोचना करते हुए इसे भारत की एक उकसाने वाली कार्यवाही बताया और दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव कम करने के लिए एक और भारतीय प्रयास करार दिया। यह जानते हुए भी कि भारत इसका आयोजन सन् 1995 से कर रहा है, चीन का यह आरोप हास्यास्पद है। डोकलाम के बाद चीन ने भारत के ऐसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ का विरोध करने की ठान ली है। साथ ही उसे अपनी नौसेना के विस्तार के लिए दक्षिण एशिया के हर कोने में अपना एक नौसैनिक अड्डा चाहिए ताकि वह व्यापार और सामरिक गतिविधियों पर नज़र और नियंत्रण रख सके।
इस उद्देश्य को पाने के लिए वह धन और शक्ति का भरपूर उपयोग कर रहा है। हाल ही में उसने मालदीव को भारत से छीनने की कोशिश की तथा उस पर अपना प्रभाव डालकर इस आयोजन में भाग नहीं लेने दिया। मालदीव दशकों से भारत का सहयोगी रहा है, किंतु छोटे देशों का आज यही हाल है। मोटी रकम का लालच और अपनी शक्ति का भय दिखाकर चीन उन्हें अपने पॉकेट में कर रहा है।
चीन के आतंक से वे अपना बंदरगाह उसके पास गिरवी रख देते हैं। हिन्द महासागर में चीन के सामरिक युद्ध पोतों और परमाणु हथियारों से लेस पनडब्बियों का निरंतर दिखना चिंता का विषय है, वहीं उसके उलट भारत की नीति अन्य राष्ट्रों के साथ आपसी सहयोग और साफ नियत से संबंध बनाने की है। भारत के सामने चुनौती घर के अंदर हैं, जहां अलग-अलग राजनीतिक दल, भारत के हितों के लिए भी एक राय नहीं रखते।
चीन में तो शी जिन पिंग राजनीतिक रूप से जीवनपर्यन्त के लिए शक्तिशाली हो गए हैं, किंतु भारत को हर कदम उठाने के पहले सोचना पड़ता है कुछ नाकाबिल राजनीतिज्ञों के गैर जिम्मेदाराना आचरण और आलोचना के कारण। कम से कम भारत के बाहर, देश के मतभेद नहीं जाने चाहिए जो देश को कमजोर करते हैं किंतु दुर्भाग्य से ऐसा हो रहा है।
अच्छी बात केवल यह है कि महाशक्तियां चीन की इस बदनीयत को समझती हैं और अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया, भारत के साथ मिलकर एक ऐसा नौसैनिक गठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे हैं जो न केवल हिन्द महासागर बल्कि दक्षिण चीन सागर में भी चीन की आक्रामक हरकतों को चुनौती दे सकेगा। इस प्रकार भारत के लिए संभावित खतरे कम नहीं होने के बावजूद सकारात्मक पक्ष यह है कि वर्तमान सरकार की दूरदर्शी नीतियों के परिणामस्वरूप भारत के मित्र देशों से मिलने वाला सहयोग कम महत्वपूर्ण नहीं है।