गुरुवार, 28 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Hindu religion, all religion

हिन्दूवाद की उर्वर भूमि पर कौमी एकता की फसल!

all religion । हिन्दूवाद की उर्वर भूमि पर कौमी एकता की फसल! - Hindu religion, all religion
मध्यम दर्जे के एक ब्रिटिश लेखक डेविड प्रिंसिज ने हाल ही में प्रकाशित अपनी एक पुस्तक ‘रिलिजियस डेमोक्रेसी’ में लिखा है कि 'किसी भी लोकतांत्रिक देश में होने वाला धार्मिक टकराव उसके लिए एक दीमक की तरह होता है, जो धीरे-धीरे लोकतांत्रिक प्रणाली को नष्ट कर देता है।' मतलब यह कि धार्मिक विविधता के बावजूद कायम रहने वाली एकता लोकतंत्र को मजबूती देता है और अखंड रखता है। 
 
अब यदि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की चर्चा करें तो पता चलेगा कि यहां धर्म के नाम पर टकराव और दंगे-फसाद आम हैं। इस स्थिति को ध्यान में रखकर यदि ब्रिटिश लेखक डेविड प्रिंसिज की बातों पर गौर करें तो पता चलेगा कि हमारे इस पवित्र लोकतांत्रिक देश भारत को भी दंगे-फसाद और धार्मिक टकराव नामक दीमक धीरे-धीरे खोखला कर रहे हैं। 
 
यह चर्चा इसलिए करनी पड़ रही है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल इलाके जिसे हिन्दूवाद का गढ़ माना जाता है, वहां एक अलग तरह की बयार बह रही है। इस इलाके में मुख्यत: बनारस, आजमगढ़, गोरखपुर और बस्ती मंडल के जिले हैं। बनारस से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गोरखपुर से भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ सांसद हैं। अब इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि यहां हिन्दूवाद की जड़ें कितनी गहरी होंगी। हिन्दूवाद के लिए उर्वर पूर्वांचल के गोरखपुर की धरती से कौमी एकता की फसल लहलहाने का प्रयास किया जा रहा है। यह परस्पर विरोधी सूचना सुनने में तो अटपटा लग रहा है, पर है सौ फीसदी सत्य।
 
आपको बता दें कि डंके की चोट पर हिन्दूवाद की बात करने वाले गोरखपुर के भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के गढ़ से ही यह खबर है कि यहां से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौमी एकता यानी सर्वधर्म समभाव का अलख जगाने के लिए बिगुल बज चुका है। गोरखपुर जनपद के ही गांव भस्मा-डवरपार में एक सामाजिक संस्था ‘धरा धाम ट्रस्ट’ है। ‘धरा धाम’ के मुखिया सौरभ पाण्डेय प्रमुख समाजसेवी हैं। वे पिछले करीब 14 वर्षों से कौमी एकता यानी सर्वधर्म समभाव के प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। 
 
मीडिया की चकाचौंध और अपने कार्यों के प्रचार के विरुद्ध सोच रखने वाले सौरभ पाण्डेय ने यह तय किया था कि वे इस इलाके में सर्वधर्म समभाव का बीजारोपण करके ही रहेंगे। 33 वर्षीय सौरभ पाण्डेय के मन में यह ख्याल क्यों आया, यह अलग विषय है, पर इतना जरूर है कि इस इलाके में उन्होंने सर्वधर्म समभाव की रेखा को चटख तो कर ही दिया है। जहां हिन्दूवाद के अलावा किसी भी दूसरे वाद की चर्चा करने से लोग कतराते थे, वहां अब लोग सर्वधर्म समभाव यानी कौमी एकता की बात कर रहे हैं। 
 
दिलचस्प यह है कि गोरखपुर के गांव भस्मा-डवरपार स्थित धरा धाम ट्रस्ट के करीब 3 एकड़ में फैले मुख्यालय के एक ही परिसर में दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों का प्रतीक स्थल बनाने की प्रक्रिया आरंभ हो गई है, जो कौमी एकता की परिकल्पना को और मजबूत बना रही है।
 
जानकारों का कहना है कि ‘धरा धाम’ परिसर में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरिजाघर समेत 12-15 धर्मों के प्रतीकस्थल के अलावा एक धरतीमाता का मंदिर भी बनने जा रहा है। एक परिसर में इतने सारे धर्मों का प्रतीक स्थल शायद दुनिया में पहला होगा। यही वजह है कि आजकल इस चुनावी मौसम में भी ‘धरा धाम’ और सर्वधर्म समभाव की चर्चा जोरों पर चल रही है। 
 
धरा धाम परिवार से जुड़े लोगों का कहना है कि बॉलीवुड के चर्चित सिने स्टार राजपाल यादव द्वारा इन निर्माणाधीन प्रतीक स्थलों का शिलान्यास 8 जनवरी 2017 को करने के बाद निर्माण कार्यों में तेजी आ जाएगी। बताते हैं कि करीब 350 करोड़ की लागत से बनने वाले सभी धर्मों के प्रतीक स्थलों को यथाशीघ्र बनवाने की योजना है।
 
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सिने स्टार राजपाल यादव ने एक राजनीतिक पार्टी बनाई है जिसका नाम 'सर्व समभाव पार्टी' (ससपा) है। राजपाल यादव अपनी पार्टी के राष्ट्रीय प्रचारक हैं। यह संभव है कि शिलान्यास कार्यक्रम के उपरांत चर्चित फिल्म अभिनेता राजपाल यादव पूर्वांचल से अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत भी कर दें, क्योंकि दावा किया जा रहा है कि धरा धाम के शिलान्यास कार्यक्रम में हर जाति-धर्म के करीब 25-30 हजार लोग पहुंच सकते हैं। यूं कहें कि धरा धाम ट्रस्ट अपने मिशन में कामयाब होता जा रहा है जिससे हिन्दूवादियों में घबराहट तो है, पर धरा धाम की आक्रामकता के आगे वे कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।
 
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान में भी कौमी एकता को मजबूत करने की बात वर्णित है, पर कुछ राजनीतिक दलों द्वारा निहित स्वार्थों की वजह से जाति-धर्म में लोगों को बांटकर वोट बटोरने का प्रयास किया जाता रहा है। लगता है, अब लोग इन बातों को समझने लगे हैं। यदि गोरखपुर के धरा धाम की आवाज देश-दुनिया में गूंजती है तो निश्चित ही जाति-धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को आघात पहुंचेगा।
 
देश में कौमी एकता की इतनी अधिक अहमियत है कि हर वर्ष 'कौमी एकता सप्ताह' यानी 'राष्ट्रीय एकता सप्ताह' पूरे राष्ट्र में हर साल 19 से 25 नवंबर तक मनाया जाता है। कौमी एकता सप्ताह के अंतर्गत हर दिन तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। कुछ कार्यक्रम जैसे बैठकों, सेमिनारों, संगोष्ठियों, विशेष रूप से महान कार्यों, सांस्कृतिक गतिविधियां इस समारोह की विषयवस्तु (राष्ट्रीय एकता या कौमी एकता सप्ताह, धर्मनिरपेक्षता, अहिंसा, भाषायी सौहार्द, विरोधी सांप्रदायिकता, सांस्कृतिक एकता, कमजोर वर्गों के विकास और खुशहाली, अल्पसंख्यकों के महिला और संरक्षण के मुद्दों) को उजागर करने के लिए आयोजित की जाती है। 
 
सप्ताह का उत्सव राष्ट्रीय एकता की शपथ के साथ शुरू होता है। कौमी एकता सप्ताह और सार्वजनिक सद्भाव अथवा राष्ट्रीय एकता की ताकत को मजबूत करने के लिए मनाया जाता है। कौमी एकता वाला एक सप्ताह तक का समारोह पुरानी परंपराओं, संस्कृति और सहिष्णुता की कीमत और भाईचारे की भारतीय समाज में एक बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक धर्मों की पुष्टि करने के लिए सभी को एक नया अवसर प्रदान करता है। ये सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए भी देश में निहित शक्ति और लचीलेपन को उजागर करने में सहायता करता है। 
 
राष्ट्रीय एकता समारोह के दौरान भारत की स्वतंत्रता और ईमानदारी को संरक्षण और मजबूत करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। प्रतिज्ञा में यह निश्चय किया जाता है कि सभी प्रकार के मतभेदों के साथ ही भाषा, संस्कृति, धर्म, क्षेत्र और राजनीतिक आपत्तियों के विवादों को निपटाने के लिए अहिंसा, शांति और विश्वास को जारी रखा जाएगा।
 
संविधान में उल्लिखित है कि कौमी एकता सप्ताह समारोह की शुरुआत चिह्नित करने के लिए प्रशासन द्वारा एक साइकल रैली आयोजित की जाती है। पूरे सप्ताह के समारोह का उद्देश्य पूरे देश में अलग-अलग संस्कृति के लोगों के बीच अखंडता, प्रेम, सद्भाव और भाईचारे की भावना का प्रसार करना होता है। साइकल रैली में पूरे देश से विभिन्न स्कूलों से छात्र और गैरसरकारी संगठनों से स्वयंसेवक भाग लेते हैं।
 
कौमी एकता सप्ताह हर साल देश की विविधता (लगभग 66 भाषाएं, 22 धर्मों, ढाई दर्जन से अधिक राज्यों और अनेक जाति) में एकता को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। ये राष्ट्र के निर्माण में मूल्यों, अल्पसंख्यकों की रक्षा और महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डालने के लिए मनाया जाता है। ये विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अल्पसंख्यकों और महिलाओं की सामाजिक स्थिति के स्तर को बढ़ाने पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करता है। आम जनता को देश में इन अहम मुद्दों लैंगिक तथा सामाजिक समानता और अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए और उनको समझना चाहिए।
 
खैर, सुप्रीम कोर्ट ने तो स्पष्ट रूप से यह कह दिया है कि जाति-धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों बख्शा नहीं जाएगा। फिर भी देखना है कि हिन्दूवाद के लिए उर्वर पूर्वांचल की इस जमीन पर सर्वधर्म समभाव की फसल कितनी लहलहा पाती है?
ये भी पढ़ें
स्मार्टफोन से बच्चों में बढ़ रहा आंखों का सूखापन