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आम चुनाव 2019 : सत्ता मौन, विपक्ष कौन और मुद्दे गौण

आम चुनाव 2019 : सत्ता मौन, विपक्ष कौन और मुद्दे गौण - General Election 2019
भारत जैसे जनतांत्रिक देश में इस समय एक पर्व मनाया जा रहा है जिसे आम चुनाव कहते हैं। इस पर्व का उत्साह तो राजनीतिक लोगों और जनता दोनों में है। किंतु इस बार यह आम चुनाव कुछ खास है, क्योंकि यहां एक तरफ तो सत्ता पक्ष की हाहाकार है तो दूसरी तरफ विपक्ष की भूमिका नगण्य है। असल मायनों में इस बार चुनाव में देश हितार्थ मुद्दों की प्रासंगिकता खो गई है।

 
सच भी यही है कि कोई सेना, मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम और राष्ट्रवाद पर चुनाव लड़ रहा है तो कोई राफेल, चौकीदार चोर और हिन्दू होने के प्रमाण तक ही सीमित हो गया है। आखिर इन सबके बावजूद भारतीय और राष्ट्र का सर्वांगीण विकास, प्रगति, व्यापार, बढ़ती बेरोजगारी, आंतरिक सुरक्षा, देश का अर्थशास्त्र और विकसित राष्ट्र की तरफ बढ़ते कदमों का थम जाना किसी को दिखाई नहीं दे रहा।
 
 
सत्ता पक्ष के पास चेहरा है जिसे भुनाया भी गया और इस बार भी वही चेहरा जनता के बीच ले जाया गया किंतु इस मामले में विपक्ष थोड़ा कमजोर सिद्ध हो गया। उसके पास जो चेहरा है, वही जनता की नापसंदगी का कारण है, परंतु क्या वर्तमान में राजनीति का मकसद केवल सत्ता हथियाना ही शेष रह गया है?
 
राम मंदिर, धारा 370, चौकीदार चोर, राफेल घोटाला या साध्वी का बयान, स्त्री के अंत:वस्त्र का रंग ऐसे ही मुद्दों के बीच देश की असल समस्या और मुद्दे गौण हो चुके हैं। जनता के बीच मत मांगने जाने वाले प्रत्याशी भी इस बात का सही जवाब नहीं दे पा रहे हैं कि वे किन मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं या जीत गए तो क्या करेंगे देश के लिए?

 
हर 5 वर्षों में एक बार आए इस लोकतंत्र के महापर्व में जनता सहभागिता को जताना चाहती है किंतु वही जनता चुनाव के बाद ठगी हुई-सी रह जाती है और मलाल के सिवा जनता के हाथ कुछ नहीं बचता। लोकतंत्रीय गरिमा में सवाल पूछने का अधिकार जनता के पास भी होता है। किंतु इस बार इसमें भी वह चूक गई, क्योंकि जवाब मौन है। राजनीति का सूर्य अस्तांचल की तरफ बढ़ने लगा है, क्योंकि जनता की उपेक्षा और प्रगति का आधार खोखला होता जा रहा है।

 
अमेरिकी चुनाव का आकलन करें तो पाएंगे कि वहां राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों से चुनाव लड़ने के समय ही जनता पूछती है कि क्यों चुनें आपको? आपके पास देश की उन्नति के लिए क्या योजना है? कैसे आप वर्तमान समस्याओं पर काबू करेंगे? कैसे आप राष्ट्र का संपूर्ण विकास करेंगे? आपकी रक्षा नीति क्या है? विदेश नीति और अर्थनीति का आधार क्या है? आर्थिक सशक्तीकरण के लिए क्या ब्लूप्रिंट है? इन सवालों के जवाब के बाद ही जनता तय करती है कि कौन राष्ट्रपति बनेगा अमेरिका का?

 
इसके उलट हमारे देश में मुफ्तखोरी की योजनाएं, 72,000 वार्षिक घर बैठे जैसे वादों और 15 लाख जैसे जुमलों में ही चुनाव परिणाम आ जाता है। थोड़ा आगे बढ़ें तो अगड़ी-पिछड़ी जाति, कुल-कुनबे में ही मतदान हो जाता है। आखिर किस दिशा में जा रहा है हमारा राष्ट्र? इन सबके पीछे शिक्षा का गिरता स्तर भी उतना ही उत्तरदायी है जितना कि राष्ट्र का माहौल।
 
इस बार चुनावों में जनता भी नीरसता का अनुभव कर रही है, क्योंकि राष्ट्र मुद्दाविहीन चुनाव झेल रहा है। आम चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल के पास कोई ब्लूप्रिंट नजर नहीं आ रहा, जो देश की प्रगति का मापक तय कर सके। किसी के पास कोई विदेश नीति, वित्त नीति, रक्षा नीति जैसे गंभीर चयन का कोई आधार नहीं है। न तो सत्ताधारी दल इस पर कुछ बोल रहा है, न ही विपक्ष की तरफ से कोई पहल है। क्या ऐसे ही देश क्षणे-क्षणे अवनति के मार्ग को चुनेगा?

 
स्तरहीन बयानबाजी, कमर के नीचे की राजनीति और परियोजनारहित घोषणा पत्र वर्तमान में राजनीति का चेहरा बन चुका है। इसी तरह देश चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब भारत वैश्विक पटल पर हासिल अपने सम्मान को खो देगा।
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