बुधवार, 25 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. farmers day

किसान जाए तो जाए कहां?

किसान जाए तो जाए कहां? - farmers day
आज किसान दिवस है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की जयंती। चौधरी चरण सिंह किसानों के सर्वमान्य नेता थे। उन्होंने भूमि सुधारों पर काफी काम किया था। उनका मानना था कि खेती के केंद्र में है किसान, इसलिए उसके साथ कृतज्ञता से पेश आना चाहिए और उसके श्रम का प्रतिफल अवश्य मिलना चाहिए।
 
पर आज जब किसानों को खुद अपनी ही फसल का मुनाफा नहीं मिलता, अपनी ही मेहनत की दिहाड़ी नहीं पड़ती, तो किसान जाए कहां? जब उसकी चुनी हुईं सरकारें ही उस पर ज्यादतियां करने लगे, तमाम योजनाओं के बाद वो मन्नतें करे और घर-परिवार के भरण-पोषण के बोझ में दोहरा हो जाए तो निश्चित है, वो ऐसी जिंदगी जीना पसंद ही नहीं करेगा।
 
यही कारण है कि दिन-प्रतिदिन, साल-दर-साल किसानों की आत्महत्याएं बढ़ती जा रही हैं। नहीं तो जीना कौन नहीं चाहता? चिता पर रखे 100 साल के बुजुर्ग मुर्दे के जिस्म में यदि प्राण आ जाए और कोई इस पर ध्यान न दे तो वह खुद उठकर दूर खड़ा हो जाएगा, क्योंकि उसमें जीने की इच्छाएं शेष होती हैं जबकि वह तो संभवत: सब कुछ देख चुका होता है। फिर ये किसान क्यों अपनी आधी जिंदगी और छोटे-छोटे बच्चे छोड़कर आत्महत्याएं कर लेते हैं? इसे कोई कुछ समझे, पर यह कोई शौक नहीं बल्कि परेशानी है, जो तब कटना संभव नहीं रहती तो प्राय: यही एक कदम सूझता है। हालांकि इसमें कोई दो मत नहीं कि आत्महत्या पाप है। आज किसानों की जो स्थिति बनी है, वह बेहद दयनीय और चिंतनीय है। किसान आत्महत्या करने को विवश हैं।
 
गत वर्ष आई एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक किसानों और खेतों में काम करने वाले मजदूरों की आत्महत्या का कारण कर्ज, कंगाली और खेती से जुड़ी हुईं दिक्कतें हैं। इसके लिए सरकारी व्यवस्थाएं या लालफीताशाही तो जिम्मेदार है ही, साथ ही कई पारिवारिक फसाद भी किसानों की जान लेने का काम कर रहे हैं। ये फसाद घरेलू होने के चलते सार्वजनिक नहीं हो पाते, साथ ही अधिकांश की कोई शिकायत भी नहीं होती जिससे ये वास्तविकता सामने नहीं आती कि मूल वजह क्या है?
 
पर जो भी कारण हो, हकीकत तो सिर्फ यह है कि किसान वाकई में परेशान है। कई मामले तो ऐसे होते हैं जिनमें पुरखों की जायदाद का बंटवारा हो जाने के बाद संपन्न भाई-बंध ही अपने बेबस और असहाय किसान भाई, जिसे खुद पिता ने थोड़ी अधिक जमीन दी होती है, को इतना प्रताड़ित कर देते हैं कि वह स्वयं अपना सबकुछ इन्हीं स्वार्थियों को समर्पित कर दे। इतने पर भी यदि मन नहीं भरता तो कोर्ट-कचहरी का डर दिखा-दिखाकर उसे मरने पर विवश कर देते हैं।
 
तो आज किसान किसके भरोसे रहे? एक किसान होने के नाते इतना जरूर कहूंगा कि जो किसान की मांग होती है, वह भी बेहद कम और मामूली-सी होती है। सत्ता को चाहिए कि वह किसान के साथ खड़ी रहे। अपने लिए खुद किसान कुछ विशेष की मांग नहीं करता। पर हां, उसके साथ लालफीताशाही न बरती जाए। पारिवारिक फसाद यदि कचहरी आते हैं तो उन पर भी त्वरित फैसला हो।
 
किसान वाकई में बहुत परेशान है। उसके साथ मजाक करने की जगह उसके घावों को कोई तो सहलाकर 'किसान जयंती' को सार्थक करें।
 
'जय किसान-जय जवान'