आज बाजार में एक धड़ी (लगभग 5 किलो मात्रा) गेहूं की कीमत 90 से 120 रुपए (शानदार क्वालिटी के गेहूं की कीमत और अधिक) तक है। इसी प्रकार 5 लीटर केरोसिन बाजार में 250-300 रुपए में आता है। इसी प्रकार चावल, दाल, शकर आदि इत्यादि के भाव आज आसमान पर हैं और जिन्हें खरीदना किसी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले के नसीब में नहीं है।
इसीलिए सरकार गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों यानी बीपीएल राशनकार्डधारियों के लिए कंट्रोल दुकान बनाम सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से 1-2 रुपए किलो गेहूं, 5 रु. किलो चावल, 2 रु. किलो दाल, 2 रु. लीटर केरोसिन और अन्य अनाज रस्ते के भाव में सस्ता दे रही है, फिर भी इतना सस्ता कंट्रोल दुकान का अनाज पाकर भी गरीब रो रहा है।
गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वालों को सस्ते और कम दाम के खाद्यान्न की मिल रही सुविधा का धड़ल्ले से दुरुपयोग हो रहा है। इसमें अन्य लोगों की मिलीभगत के साथ-साथ खुद बीपीएल कार्डधारी भी इस गोरखधंधे में शामिल हैं। बीपीएल कार्डधारियों का अनाज, केरोसिन आदि इत्यादि उनके घरों की बजाए बाजार या गैर बीपीएल कार्डधारियों के यहां आ जाता है। बीपीएल कार्डधारियों का अनाज कुछ पैसे ज्यादा देकर गैर बीपीएल कार्डधारी या व्यापारी खरीद लेते हैं या खुद कंट्रोल दुकान वाले इन बीपीएल कार्डधारियों को बाजार का रास्ता बता देते हैं।
कौन गरीब, कौन अमीर?
इसकी चर्चा से पेशतर इस बात को देख लिया जाए कि आज एक मजदूर को भी 150-200 रुपए मजदूरी मिल जाती है। मोबाइल फोन की कीमत भी 500 से लेकर अधिकतम है यानी मोबाइल रखना उसके लिए मुश्किल नहीं। ऐसे में सरकार द्वारा जारी मापदंड आज की स्थिति के मान से बिलकुल विपरीत लगते हैं। ऐसे में कौन गरीबी रेखा के नीचे है? और कौन ऊपर? ये तय करने का मापदंड ही बदलना पड़ेगा।
आज के दौर में गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाली आबादी में से लगभग 2-7 प्रतिशत के ही बीपीएल राशनकार्ड बने हैं जबकि लगभग 60-70 प्रतिशत ऐसे लोगों के बीपीएल कार्ड बने हैं, जो पहले से ही संपन्न हैं। गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों का सही ढंग से सर्वे करना बड़ा मुश्किल कहा जा सकता है, क्योंकि बढ़ी आबादी और कम कर्मचारियों के चलते शायद नामुमकिन हो।
गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों की तलाश केवल झोपड़ों में की गई। किराए के मकानों में रहने वालों को छोड़ दिया गया। जिसके पास मोबाइल मिला उसे भी गरीबी रेखा से नीचे नहीं माना गया। आज एक भिखारी भी कम से कम 50-100 रुपए कमा लेता है वहीं जिनके पास मोटरसाइकल थी उन्हें बीपीएल कार्ड थमा दिया गया। (भ्रष्टाचार की 'कृपा' से)
बीपीएल कार्ड में धांधली व अनाज-केरोसिन की बिकवाली
गरीबी रेखा के असमझ मापदंड के चलते बीपीएल कार्ड बनाए गए जिनमें वास्तविक रूप से कम आय वाले लोगों की संख्या अनुमानत: 5-7 प्रतिशत मानी जा सकती है जिनके बीपीएल कार्ड बने जबकि अनुमानित आंकड़ों के हिसाब से लगभग 40-55 प्रतिशत से अधिक उन लोगों के कार्ड बने, जो 'गरीबी रेखा से ऊपर' सवार हैं।
सरकार ने सार्वजनिक प्रणाली के माध्यम से बीपीएल कार्डधारियों को सस्ता अनाज खाद्यान्न और केरोसिन कंट्रोल दुकानों से देना प्रारंभ किया गया। इसमें भी खास यह है कि बीपीएल कार्डधारियों में से लगभग 70 प्रतिशत हितग्राही अपना अनाज वगैरह कुछ ज्यादा दाम लेकर बाजार में या अन्य लोगों को बेच देते हैं, मसलन कंट्रोल दुकान से मिलने वाला 5 रु. धड़ी (5 किलो) गेहूं ये बीपीएल कार्डधारी 50-75 रुपए धड़ी में अन्य लोगों को बेच देते हैं। इसी प्रकार चावल, केरोसिन, नमक आदि भी इसी प्रकार कुछ ज्यादा दाम में बिक जाते हैं।
सरकार ने गरीबों के हित के लिए यह योजना जरूर बनाई है, मगर इसका लाभ नेता, अधिकारियों व कर्मचारियों के अपनों और कुछ मौकापरस्तों ने लिया है। बीपीएल कार्डधारियों को दिया जाने वाला ये अनाज उनके भरण-पोषण के लिए दिया जाता है कि ये लोग महंगा खाद्यान्न नहीं खरीद सकते। लेकिन इसके विपरीत ये लोग सस्ते अनाज, केरोसिन वगैरह का खुद इस्तेमाल नहीं करते हुए 'बेच' देते हैं!